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इस जिले में कभी लकड़ी के पुल पर दौड़ती थी ट्रांम-वे, अब उपेक्षा का शिकार है ऐतिहासिक धरोहर

महराजगंज के लक्ष्मीपुर क्षेत्र में कभी लकड़ी के पुल पर ट्रांम-वे रेल दौड़ती थी। आज बदहाली का दंश झेल रही है जिसका अस्तित्व इतिहास के पन्नों में सिमटता जा रहा है। इसे संवारने के लिए अब तक कोई कारगर पहल नहीं हुई।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 08:50 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 08:50 AM (IST)
इस जिले में कभी लकड़ी के पुल पर दौड़ती थी ट्रांम-वे, अब उपेक्षा का शिकार है ऐतिहासिक धरोहर
रोहिन नदी के पुल का वर्षों से खड़ा ट्रामवे रेल पुल का लकड़ी का पीलर । जागरण

गोरखपुर, करुणानिधि मिश्र। महराजगंज के लक्ष्मीपुर क्षेत्र में कभी लकड़ी के पुल पर ट्रांम-वे रेल दौड़ती थी। आज बदहाली का दंश झेल रही है, जिसका अस्तित्व इतिहास के पन्नों में सिमटता जा रहा है। इसे संवारने के लिए अब तक कोई कारगर पहल नहीं हुई। रेलवे की पटरियां भूमि में दबकर समाप्त हो रहे हैं और पुल भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। शासन के निर्देश पर ट्रांंमवे की अन्य लौह संपदा को संरक्षित किया गया है।

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अंग्रेजों ने स्‍थापित की थी भारत की पहली ट्रामवे परियोजना

सोहगीबरवा वन्यजीव प्रभाग की बहुमूल्य वनसंपदा को दुर्गम वन क्षेत्रों से मुख्य रेल लाइन तक लाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वर्ष 1924 में लक्ष्मीपुर रेलवे स्टेशन के निकट भारत की पहली ट्रांंमवे रेल परियोजना स्थापित की थी। जिसमें लक्ष्मीपुर रेंज और उत्तरी चौक रेंज के जंगल में चौराहा नामक स्थान तक 22.4 किमी दूरी तक रेल लाइन बिछाईं गई। निरंतर 55 वर्षो की सेवा करके आठ लाख घाटे के बाद 1982 में भारत की पहली ट्राम-वे रेल परियोजना को बंद करना पड़ा।

लखनऊ के चिड़ियाघर घर में है संरक्षित

ट्राम-वे रेल में प्रत्येक 40 अश्व शक्ति के चार इंजन, 26 बोगियां व सैलून, दो निरीक्षण ट्राली सहित तमाम उपकरणों को लक्ष्मीपुर एकमा डिपो में रखा गया था। वर्ष 2009 में सरकार के निर्देश पर एक इंजन, एक सैलून एवं एक बोगी को लखनऊ चिड़ियाघर में रखवा संरक्षित करा दिया गया है।

लकड़ी के तीन पुलों से होकर गुजरती थी रेल

ट्रांम-वे रेल परियोजना का निर्माण अंंग्रेजों ने लकड़ी का व्यापार करने के मकसद से कराया था। जंगलों की कीमती लकड़ियों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचकर धन एकत्रित करना था। लोहे के रेल ट्रैक और जितने पुल थे, वह केवल लकड़ी के होते थे। जिसमें तीन पुल में पहला रोहिन नदी, दूसरा प्यास नदी व तीसरा जिगिनिहवा घाट पर बनाए गए थे। जिस पर से होकर ट्रामवे रेल दौड़ती थी।

ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने में जिम्मेदार उदासीन

शासन के निर्देश पर बार्डर एरिया डबलपमेंट वर्ष 2015-16 के तहत विरासत स्थल के रूप में ट्राम-वे रेल परियोजना लक्ष्मीपुर चयनित है। ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के शासन के निर्देश पर जिम्मेदार अधिकारी उदासीन दिखाई दे रहे हैं। जिसका जीवित उदाहरण जंगल के बीच जंग खाकर भूमि में सड़ रही रेल की पटरियां हैं। कोल्हुआ ढाला, अचलगढ़, टिनकोनिया, जंगल गुलहरिया, कजरी, टेढ़ीघाट वन विश्रामालय के सामने के ट्राम-वे रेल लाइन पटरी नाम मात्र की रह गई है।


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