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इस जिले में 20 किसान केले की खेती से अपनी आमदनी को बना रहे हैं बेहतर, जानिए कैसे Gorakhpur News

अधिकतर किसान जहां परंपरागत खेती पर ही निर्भर होते हैं वहीं सिद्धार्थनगर जिले के खुनियांव ब्लाक क्षेत्र के करीब आठ से दस गांवों के किसान केले की खेती से समृद्ध हो रहे हैं। यहां के केले की आपूर्ति आसपास के जिलों में भी होती है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 03:10 PM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 03:10 PM (IST)
इस जिले में 20 किसान केले की खेती से अपनी आमदनी को बना रहे हैं बेहतर, जानिए कैसे Gorakhpur News
पेड़ के नीचे नर्सरी पुट्टी काटते किसान शाहिद हुसैन। जागरण

रवि वर्मा, गोरखपुर : अधिकतर किसान जहां परंपरागत खेती पर ही निर्भर होते हैं, वहीं सिद्धार्थनगर जिले के खुनियांव ब्लाक क्षेत्र के करीब आठ से दस गांवों के किसान केले की खेती से समृद्ध हो रहे हैं। यहां के केले की आपूर्ति जनपद में ही नहीं, बल्कि आसपास के बस्ती, संतकबीरनगर, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती जैसे जिलों में होती है। करीब 20 किसान इस खेती से जुड़कर अपनी आमदनी को बेहतर बना रहे हैं।

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खेती है मुख्‍य व्‍यवसाय

खुनियांव ब्लाक अंतर्गत मुहम्मद नगर, डोकम, टेऊवां ग्रांट, बेलवा, मिश्रौलिया खलसा, बेलवा, कठेला का क्षेत्र कभी मिनी भुसावल के नाम से जाना जाता था। संसाधनों की कमी एवं बढ़ती महंगाई के चलते किसानों का रूझान थोड़ा कम जरूर हुआ, परंतु आज भी बहुत सारे किसान इसी खेती को अपना मुख्य व्यवसाय बनाए हैं। मुहम्मद नगर निवासी शाहिद हुसैन करीब 10 वर्ष से केले की खेती कर रहे हैं। वर्तमान में पांच बीघा खेत में केले की फसल लगाएं हैं। एक बीघा में करीब 500 पौधे लगाए जाते हैं। सिंचाई, मजदूरी मिलाकर 60 हजार रुपये प्रति बीघे पर खर्च आता है। फसल तैयार होती है तो करीब एक लाख रुपये का केला बिक जाता है। पांच बीघा खेत में दो लाख की आमदनी हो जाती है। कुछ साल पहले मुनाफा और अधिक था। एक बीघा खेत में 25-30 हजार रुपये खर्च होते थे और आमदनी एक लाख रुपये ऊपर हो जाती थी।

सऊदी अरब छोड़ शुरू कर दी केले की खेती

डोकम निवासी जमाल अहमद रोजगार के सिलसिले में सऊदी अरब रहते थे। केले की खेती बारे में जानकारी हुई तो अपने गांव चले आए। छह वर्ष से अपने पांच बीघा खेत में केले की खेती कर इसी को अपना रोजगार बनाए हुए हैं।

केले की खेती से यह भी हैं जुड़े

केरवनिया निवासी सत्ती लोहार तीन बीघा, अब्दुल माबूद तीन, मुहम्मद नगर हयात अली चार, बेलवा के इसराइल चार, यहीं के सुदर्शन मौर्या 10, टेऊवा के मतलूब पांच, भगवतपुर के हाजी वकील तीन बीघा में केले की खेती कर रहे हैं। परिवार के जीविकोपार्जन के साथ बच्चों की पढ़ाई, सब कुछ इसी खेती से चल रही है।

बने केले की मंडी तो फैल जाए व्यवसाय

यूरिया सहित डीजल की बढ़ती कीमतों ने केले की आमदनी पर असर डाला है। आसपास केले की मंडी का न होना भी समस्या पैदा करता है। तूफानी बारिश में फसल गिरती है तो भी नुकसान होता है। यहं कमियां दूर हो जाए और एक मंडी बन जाए तो व्यवसाय और बड़े पैमाने पर फैल सकता है।

क्या कहते हैं प्रगतिशील किसान

प्रगतिशील किसान मुहम्मद शाहिद कहते हैं कि केले की खेती आसपास के आठ-दस जनपदों में मशहूर थी, परंतु अब इसका दायरा सिमट रहा है। पहले जहां किसान 10-15 बीघा खेत में पौधे लगाते थे, वहीं अब चार-पांच बीघे तक खेती को सीमित कर दिए हैं। शासन-प्रशासन के जिम्मेदार ध्यान दे दें और समुचित व्यवस्था बन जाए तो केले की खेती फिर से नया आयाम छूने लगेगी।


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