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नवरात्र में मां भगवती के लिए बन जाते हैं भगीरथ, हरिद्वार के गंगाजल से मां को कराते हैं आचमन

पूर्वोत्‍तर रेलवे का मुख्‍यालय गोरखपुर में स्‍थापित होने के साथ ही 1948 में बडी संख्‍या में बंगाली गोरखपुर आए थे। तभी से उन्‍होंने अपनी परंपरा सजों कर रखी है। खासकर दुर्गा पूजा की परंपरा अच्‍छुण बनी हुई है। पूजा के लिए यह लोग हरिद्वार से गंगाजल लाते हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 08:05 AM (IST)Updated: Mon, 11 Oct 2021 08:05 AM (IST)
नवरात्र में मां भगवती के लिए बन जाते हैं भगीरथ, हरिद्वार के गंगाजल से मां को कराते हैं आचमन
एनई रेलवे बालक ि‍विद्यालय परिसर में बनी स्‍थाई बेदी। जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। वर्ष 1948 से पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर में तैनात बंगाली समाज के कर्मचारियों ने जो परंपरा रखी थी वह आज भी न सिर्फ कायम है, बल्कि भारत की संस्कृति को और समृद्ध बना रही है। पीढिय़ां बदल गई हैं लेकिन न पूजा की पद्धति बदली है और न लोकाचार। बंगाली समाज व एनई रेलवे दुर्गा पूजा कमेटी के पदाधिकारी प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र में मां भगवती के लिए भगीरथ बन जाते हैं।

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जटेपुर के रेलवे बालक इंटर कालेज में स्‍थापित होती है मां की प्रतिमा

जटेपुर स्थित रेलवे बालक इंटर कालेज में स्थापित मां दुर्गा हरिद्वार के गंगाजल से ही आचमन और स्नान करती हैं। 73 वर्ष से सप्तमी से नवमी तक तीन दिन चलने वाले पूजन- अर्चन और भोग सहित हर विधान में हरिद्वार के गंगाजल का ही प्रयोग होता आ रहा है। इस साल मां की पूजा के लिए 300 लीटर गंगाजल लाया गया है।

विद्यालय परिसर में मां के लिए बनी है स्‍थाई वेदी

67 वर्षीय दिलीप कुमार चक्रवर्ती बताते हैं रेलवे बालक इंटर कालेज परिसर में मां की स्थापना भी एक ही वेदी पर होती आ रही है। वह रेलवे बालक इंटर कालेज के दुर्गोत्सव को देखते और प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए ही बड़े हुए हैं। आज रेलवे से सेवानिवृत्ति के बाद भी मां की सेवा में लगे हैं। कहते हैं, हमारी परंपरा ही हमारी धरोहर है। नौकरी की तलाश में गोरखपुर पहुंचे हमारे पूर्वजों ने बंगाली समाज की परंपरा को भी सहेजे रखा।

ढोल बजाने के लिए बंगाल से आते हैं ढाकी

पूजा समिति से जुड़े श्रद्धालु आज भी उत्तराखंड से गंगाजल लाकर मां की अराधना करते हैं। बंगाल के पुजारी ही विधि-विधान से पूजा कराते हैं। बंगाल के ही ढाकी ढोल बजाते हैं। पुजारी और ढाकी गोरखपुर पहुंच गए हैं। सोमवार से मां की अराधना भी शुरू हो जाएगी। कमेटी की महासचिव व पूर्वोत्तर रेलवे की पूर्व वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी डा. रत्ना बनर्जी कहती हैं कि पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक ही मां का पट खोलते हैं। उनके ही हाथों दुर्गोत्सव का शुभारंभ होता है।

चामुंडा देवी की पूजा में चढाए जाते हैं कमल के 108 फूल

अष्टमी और नवमी की मध्य रात्रि चामुंडा देवी की पूजा में 108 कमल के फूल चढ़ाए जाते हैं। भथुआ, केला और गन्ने की बलि दी जाती है। दशमी के दिन महिला श्रद्धालु सिंदू खेला करती हैं। कमेटी की परंपराएं तो नहीं बदलीं लेकिन कार्यक्रमों के स्वरूप में जरूर विस्तार हुआ। हालांकि, कोविड काल के चलते गाइड लाइन के तहत पिछले साल से कार्यक्रमों में कटौती की जा रही है। पंडाल और मां की मूर्ति का आकार भी छोटा हो गया है।

बच्‍चों व महिलाओं के लिए क्विज, कला और शंख ध्वनि प्रतियोगिता

रेलवे बालक इंटर कालेज के दुर्गोत्सव में बाहर के कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं होते। तीन दिन तक चलने वाले उत्सव में कमेटी व आसपास के रहने वाले श्रद्धालु ही सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। कमेटी के सचिव देवेंद्र पांडेय के अनुसार मेला परिसर में बच्‍चों के लिए ट्वाय ट्रेन चलती है। बच्‍चों और महिलाओं के लिए क्विज, कला और शंख ध्वनि प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। बच्‍चे और महिलाएं बढ़चढ़कर हिस्सा लेती हैं। विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत कर सम्मानित भी किया जाता है।


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