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कुशीनगर में पारंपरिक पिड़िया गीत से हुआ लोकरंग का आगाज

कुशीनगर के फाजिलनगर के जनूबी पट्टी गांव में पारंपरिक ढंग से लोगरंग कार्यक्रम का आयोजन हुआ इस मौके पर अतिथियों ने लोकरंग पत्रिका का विमोचन किया कार्यक्रम में देसी कलाकारों के अलावा विदेशों से भी बड़ी संख्या में कलाकार पहुंचे हैं विद्वानों ने लोक संस्कृति को नदी की तरह बताया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Apr 2021 11:36 PM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 11:36 PM (IST)
कुशीनगर में पारंपरिक पिड़िया गीत से हुआ लोकरंग का आगाज
कुशीनगर में पारंपरिक पिड़िया गीत से हुआ लोकरंग का आगाज

कुशीनगर : लोकरंग सांस्कृतिक समिति के तत्वावधान में फाजिलनगर के जोगिया जनूबी पट्टी गांव में शनिवार देर रात 14 वें आयोजन का आगाज गांव की महिला मतिरानी देवी व बालिकाओं पूजा, अंशु, प्रीति व अमृता के पिड़िया गीत से हुआ।

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मुख्य अतिथि हिन्दी पत्रिका के संपादक रामजी यादव ने कहा कि लोक संस्कृति नदी की तरह है, जो लोकजीवन को हरा-भरा करती है। जनमानस के भीतर की संवेदनाओं को बचाने के लिए लोकरंग का आयोजन जरूरी है। मारीशस, गयाना, सूरीनाम और नीदरलैंड से भोजपुरी गिरमिटिया गायकों की टीमें अपने स्वयं के व्यय पर पूर्वांचल के एक सामान्य से गांव में आती रही हैं।

इसके बाद लोकरंग पुस्तक का विमोचन हुआ। मुख्य अतिथि के अलावा विद्या भूषण रावत, सुभाष चंद कुशवाहा, आशा कुशवाहा, केम चंद लाल, डा. राजकुमार सिंह आदि मौजूद रहे।

इस बार के लोक रंग का आयोजन भोजपुरी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर भोलानाथ गहमरी और मशहूर लोक गायक मुहम्मद खलील की याद में किया गया है। इनके गाए गीत आज भी जनमानस में रचे-बसे हैं- कवना खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई..।

इस अवसर पर असम का बीहू नृत्य, नटरंग कल्चरल एसोसिएशन द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसका नेतृत्व असम की प्रमुख सिने कलाकार संगीता वर्मन ने किया। जैसलमेर से मांगणियार कलाकारों की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त टीम ईमामदीन के नेतृत्व में राजस्थानी लोक कलाओं की अद्भुत झांकी प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। कालबेलिया नृत्य देख दर्शक मुग्ध हो गए। बुंदेलखंड से आयी टीम ने राई नृत्य प्रस्तुत किया तो उर्मिलेश थपलियाल का नाटक-'तुम सम पुरुष न मो सम नारी,' परिवर्तन रंग मंडली, जीरादेई, सिवान की टीम ने प्रस्तुत किया। डा. राजकुमार सिंह के नेतृत्व में 12 सदस्यीय टीम ने लोकरंग परिसर को अद्भुत रंगों से संवारा।

गुमनाम लोक कलाकार रसूल की खोज करने का श्रेय लोकरंग संस्था को जाता है।

संस्था ने 'लोकरंग-दो' एवं 'लोकरंग-तीन' पुस्तक का प्रकाशन भी किया है, जिसमें कई शोधपत्रों को शामिल किया गया है। ये दोनों ही पुस्तकें छपरा विश्वविद्यालय के आगामी एमए (भोजपुरी) पाठ्यक्रम में शामिल कर ली गई हैं। कवि व रीवा विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष दिनेश कुशवाह ने कार्यक्रम का संचालन किया। आयोजक सेवानिवृत्त आरटीओ सुभाषचंद्र कुशवाहा ने सभी अतिथियों के प्रति अभार प्रकट किया। दक्षिण अफ्रीका से पधारे केमलाल, चानलाल गिरमिटिया वंशजों की चौथी पीढ़ी के हैं। उन्होंने विदेशी धरती पर बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा को अपने गीतों से जीवंतता प्रदान की। पूरे गांव को कलाग्राम में तब्दील करने का काम गाजीपुर के संभावना कला मंच की टीम ने किया है।

भुनेश्वर राय, विष्णुदेव राय, हदीश,अंसारी, संजय कुशवाहा, नितांत सिंह, इसरायल अंसारी, मंजूर अंसारी, अमजद अली, राजकुमार, जमशेद, सुधीर कुशवाहा, अनुभव राय आदि उपस्थित रहे।


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