गोरखपुर में भी दस्तक अभियान में ढूंढे जाएंगे कालाजार के मरीज
अब तय हुआ है कि कालाजार के दृष्टीकोण से संवेदनशील जिलों में इसके मरीजों को भी चिह्नित किया जाए। हालांकि गोरखपुर जिला इस दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील नहीं है। लेकिन पड़ोसी जिलों में कालाजार के मामलों को देखते हुए यहां विशेष सतर्कता रखी जा रही है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। दस्तक अभियान में बुखार के रोगियों के अलावा कालाजार के मरीज भी चिह्नित किए जाएंगे। आगामी 12 से 25 जुलाई तक दस्तक अभियान चलाया जाएगा। इस बारे में राज्य स्तरीय वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित किया गया ,जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया। कार्यशाला विश्व स्वास्थ्य संगठन और पाथ के सहयोग से आयोजित की गई थी। कार्यशाला में बताया गया कि दो हफ्ते से ज्यादा बुखार वाले मरीजों की कालाजार की जांच अवश्य कराई जाए।
कालाजार के मरीजों के बारे में नहीं था कोई निर्देश
जिला मलेरिया अधिकारी डा. एके पांडेय ने कहा कि अभी तक दस्तक अभियान में सिर्फ कोविड, जेई-एईएस, टीबी रोगियों और कुपोषित बच्चों को चिह्नित करने का दिशा-निर्देश था। कालाजार के मरीजों के चिह्नित करने का कोई निर्देश नहीं था। अब तय हुआ है कि कालाजार के दृष्टीकोण से संवेदनशील जिलों में इसके मरीजों को भी चिह्नित किया जाए। हालांकि गोरखपुर जिला इस दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील नहीं है। लेकिन पड़ोसी जिलों में कालाजार के मामलों को देखते हुए और जिले में भी कुछ मामले सामने आने के कारण यहां विशेष सतर्कता रखी जा रही है।
पांच साल पहले मिला था काजाजार का पहला मामला
कालाजार का पहला मामला वर्ष 2016 में सरदारनगर क्षेत्र में मिला था। वह मरीज भी बिहार के सिवान जिले से आया था। प्रोटोकाल के मुताबिक संबंधित आबादी को वर्ष 2017, 2018 और 2019 में दवा का छिड़काव करवा कर प्रतिरक्षित किया गया। इस बीमारी का प्रकोप मुख्यतया कुशीनगर और देवरिया जनपद में पाया जाता है। उसके बाद जिले के पिपरौली ब्लाक के भौवापार गांव में वर्ष 2019 में कालाजार का मरीज सामने आया था जो मूलत: कुशीनगर का निवासी था। इस गांव में दो वर्ष के भीतर तीन चक्र का छिड़काव कराया जा चुका है। गांव के कुल 1784 घरों में छिड़काव किया गया। कालाजार रोधी कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी सहयोग कर रहा है।
कालाजार को जानिये
जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कालाजार बालू मक्खी से फैलने वाली बीमारी है। यह मक्खी नमी वाले स्थानों पर अंधेरे में पाई जाती है। यह तीन से छह फीट ऊंचाई तक ही उड़ पाती है। इसके काटने के बाद मरीज बीमार हो जाता है। उसे बुखार होता है जो चढ़ता-उतरता है। लक्षण दिखने पर मरीज को चिकित्सक को दिखाना चाहिए। इस बीमारी में मरीज का पेट फूल जाता है, भूख कम लगती है और शरीर पर काला चकत्ता पड़ जाता है।