संक्रमण बढ़ा तो खाली हुआ पेंट्रीकार, बेपटरी हुई ट्रेन में खानपान की व्यवस्था
गोरखपुर और भागलपुर से जम्मूतवी जाने वाली अमरनाथ एक्सप्रेस की पेंट्रीकार में न नाश्ता बन रहा और न भोजन। चाय भी नहीं बन रही। कुशीनगर दादर कोचीन एक्सप्रेस की तीनों ट्रेन की पेंट्रीकार भी शो पीस बनकर रह गई हैं।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कोविड की दूसरी लहर के बाद स्थिति सामान्य होने पर पूर्वोत्तर रेलवे रूट पर चलने वाली दर्जन भर ट्रेनों में पेंट्रीकार तो लग गईं, लेकिन यात्रियों को राहत नहीं मिल पाई। तेजी से बढ़ते संक्रमण ने खानपान व्यवस्था को फिर से बेपटरी कर दिया है। एक तो रेलवे को यात्री नहीं मिल रहे, जो सफर कर रहे हैं वह भी बाहर के खाने से परहेज करने लगे हैं। इसका असर खानपान व्यवस्था पर पड़ा है। पेंट्रीकारों को संचालित करने के लिए निजी कंपनियां आगे नहीं आ रहीं। बिक्री नहीं होने से वेंडर नहीं मिल रहे। ट्रेनों में लगी पेंट्रीकार खाली ही दौड़ रही हैं। रेलवे को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
अमरनाथ एक्सप्रेस में न खाना बन रहा है न ही नाश्ता
गोरखपुर और भागलपुर से जम्मूतवी जाने वाली अमरनाथ एक्सप्रेस की पेंट्रीकार में न नाश्ता बन रहा और न भोजन। चाय भी नहीं बन रही। कुशीनगर, दादर, कोचीन एक्सप्रेस की तीनों ट्रेन की पेंट्रीकार भी शो पीस बनकर रह गई हैं। उनमें भी स्टेशनों पर मौजूद बेस किचेन से नाश्ता और भोजन तैयार होकर आ रहा है। पेंट्रीकार में सिर्फ उन्हें गर्म कर यात्रियों को परोसने का कार्य किया जा रहा है। जानकारों के अनुसार यात्रियों को सुरक्षा प्रदान करने के उददेश्य से आइआरसीटीसी ने यह निर्णय लिया है।
प्रभावित हो रही नाश्ते और भोजन की गुणवत्ता
पेंट्रीकार में जगह की कमी के चलते नाश्ता और भोजन गुणवत्ता के साथ साफ-सफाई भी प्रभावित होती है। ऐसे में वेंडर बेस किचेन में तैयार नाश्ता और भोजन पेंट्रीकार में गर्म करके परोस रहे हैं। हालांकि, यात्रियों को चाय बनाकर दिया जा रहा है। पेंट्रीकार संचालित करने वाली संस्थाओं ने गोरखपुर सहित सभी प्रमुख स्टेशनों पर अपना बेस किचेन तैयार कर लिया है। जल्द ही गोरखपुर स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर स्थित जन आहार में रेलवे का बेस किचेन भी बनकर तैयार हो जाएगा।
ठंड में चाय भी नहीं
सफर में अधिकतर यात्री घर से ही नाश्ता और खाना लेकर चलने लगे हैं। लेकिन चाय के लिए तरस जा रहे हैं। पेंट्रीकार में चाय भी नहीं बनने से यात्रियों को परेशानी उठानी पड़ रही है। ठंड में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।
Edited By Navneet Prakash Tripathi