बिंब-प्रतिबिंब : आदमी तो हूं, अब क्या बना रहे?
कोरोना का रहस्य अब भय के साथ-साथ हास्य भी पैदा करने लगा है। बीते दिनों इस बीमारी को लेकर एक डाक्टर की प्रतिक्रिया इसकी बानगी है। हुआ यूं कि सर्दी-जुकाम और हल्के बुखार से पीडि़त एक युवक उन डाक्टर साहब के क्लीनिक में पहुंचा।
गोरखपुर, डा. राकेश राय। इस बार के चुनाव में वर्चुअल प्रचार का फंडा फूल वाली पार्टी के कुछ पुराने नेताओं के गले नहीं उतर रहा। तकनीकी दिक्कत तो उन्हें आ ही रही है, कई बार तकनीकी शब्द न समझ पाने के चलते युवाओं के बीच हंसी का पात्र भी बन जा रहे। एक नेताजी से यही गलती हो गई तो कई दिनों तक युवा उनका मजा लेते रहे। ऐसा हुआ कि एक आइटी कार्यकर्ता ने प्रचार के लिए वाट््सएप ग्रुप बनाया। नेताजी सीनियर थे, सो उन्हें भी ग्रुप एडमिन बना दिया। नेताजी वाट्सएप तो जानते थे, लेकिन एडमिन शब्द से वाकिफ नहीं थे। कार्यकर्ता ने जब उन्हें एडमिन बनाने की जानकारी दी तो अंग्रेजी न आने के चलते वह एडमिन को आदमी समझ बैठे। बोले, आदमी तो हूं हीं, अब तुम लोगों ने मुझे क्या बना दिया? जब उन्हें एडमिन का मतलब पता चला तो झेंप गए। बोले, यह ससुरा वर्चुअल प्रचार भी बड़ा झमेला है।
असली कोरोना! नया वैरिएंट आया है क्या?
कोरोना का रहस्य अब भय के साथ-साथ हास्य भी पैदा करने लगा है। बीते दिनों इस बीमारी को लेकर एक डाक्टर की प्रतिक्रिया इसकी बानगी है। हुआ यूं कि सर्दी-जुकाम और हल्के बुखार से पीडि़त एक युवक उन डाक्टर साहब के क्लीनिक में पहुंचा। खांसते-छींकते देख डाक्टर साहब ने जब उसे मास्क लगाने की सलाह दी तो युवक के मुंह से तत्काल निकला, डाक्टर साहब हमको कोरोना है क्या? डाक्टर ने कोई जवाब देने की बजाय उसे इत्मिनान से बैठाया और रोग का लक्षण पूछा। जैसे ही युवक ने सर्दी-जुकाम और बुखार की बात की, डाक्टर तुरंत निर्णय पर पहुंच गए, बोले- है तो कोरोना ही, पर परेशान होने की जरूरत नहीं। जब सांस वगैरह फूलेगी तो मानना कि असली कोरोना है। डाक्टर के मुंह से जैसे ही यह निकला, क्लीनिक में बैठे एक अन्य मरीज ने मजाकिया लहजे में कहा, यह कोई नया वैरिएंट आया है क्या? सुनकर सभी हंस पड़े।
मामला बिगड़ा तो पान थूका, पालीथिन गिरी
विभाग में किसी ने पान या गुटखा खाया या फिर पालीथिन लेकर कोई आया तो उसकी सजा विभागाध्यक्ष को भुगतनी होगी। बड़े गुरुजी का यह फरमान इन दिनों शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में चर्चा का विषय है। 'करे कोई और भरे कोईÓ वाले इस फरमान को विभागाध्यक्ष तो पचा नहीं पा रहे, गुरुजी के गले भी यह नहीं उतर रहा। इसे लेकर गुस्सा मिश्रित हास-परिहास परिसर में इन दिनों खूब चल रहा। पान या गुटखा हमेशा मुंह में दबाए रखने और पालीथिन में ऐसी सामग्री गठिया कर चलने वाले एक गुरुजी से उनके साथी गुरुजी यह कहकर मजा लेते नजर आए कि अब तो आपके हाथ में विभागाध्यक्ष की लगाम है। मामला बिगड़ा तो पान थूका और पालीथिन गिराई। पहले तो इसे लेकर हंसी-मजाक हुआ, लेकिन बाद में गुरुजी एक और गुटखा दबाकर बोले, गुरु! मत कहो, नहीं तो झूठे बवाल हो जाएगा।
प्रत्याशी बनना है, कलाकारी चाहिए
चुनाव में टिकट की दावेदारी अब आसान नहीं। प्रत्याशी बनने से पहले कलाकार बनना पड़ता है। फूल वाली पार्टी के कार्यालय के बाहर चाय की दुकान पर जब टिकट के दावेदार एक नेताजी ने यह बयान दिया तो वहां खड़े लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े। हंसते हुए ही एक व्यक्ति ने जब इस निर्णय पर पहुंचने की वजह पूछी तो नेताजी ने तत्काल आपबीती बयां कर अपने कथन को पुष्ट किया। बोले, टिकट के लिए कार्यालय पर अपनी हाजिरी लगाने आया था, पता चला कि दावेदारी के लिए पहले बायोडाटा जमा करना होगा। उदाहरण के तौर पर एक दूसरे दावेदार का बायोडाटा थमा भी दिया गया। उस बायोडाटा का रंग-रोगन देखकर यह समझ गया कि अब प्रत्याशी बनने से पहले कलाकार होना भी जरूरी है। वरना, दावेदारी ही कमजोर हो जाएगी, टिकट क्या खाक मिलेगा। नेताजी की द्विअर्थी बात ने वहां बैठे-खड़े सभी को फिर से हंसने को मजबूर कर दिया।