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Coronavirus: कैसे होगी कुर्बानी, उलेमा से पूछे जा रहे सवाल Gorakhpur News

वे अधिक परेशान हैं जिनकी माली हालत लंबे समय तक चले लॉकडाउन से खराब हो गई है। ऐसे में उलेमा ने उन्हें शरीयत मे हवाले से समझा रहे हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 18 Jul 2020 02:36 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jul 2020 02:36 PM (IST)
Coronavirus: कैसे होगी कुर्बानी, उलेमा से पूछे जा रहे सवाल  Gorakhpur News
Coronavirus: कैसे होगी कुर्बानी, उलेमा से पूछे जा रहे सवाल Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। ईद-उल-अजहा (बकरीद) में चंद रोज बचे हैं, लेकिन कोरोना काल में कुर्बानी की रवायत कैसे जारी रहेगी, इसे लेकर मुस्लिम भाइयों के मन में तमाम सवाल है। वे अधिक परेशान हैं, जिनकी माली हालत लंबे समय तक चले लॉकडाउन से खराब हो गई है। ऐसे में उलेमा ने उन्हें शरीयत मे हवाले दे सवालों के संकट से उबारने की कोशिश की है। यह बताया है कि अल्लाह को कुर्बानी तो प्यारी है लेकिन यह उनके लिए ही अनिवार्य है जो मालिके निसाब यानी मालदार हैं। बाकी लोगों की सच्ची इबादत भी खुदा शिद्दत से स्वीकार कर वही बरकत देते हैं जो कुर्बानी करने वालों को मिलता है।

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यह माने जाते हैं मालिके निसाब

मालिके निसाब यानी कुर्बानी की हैसियत रखने वाला। मौलाना मो. असलम रजवी के मुताबिक जिस शख्स या औरत के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या इतनी ही नकदी या फिर इसके बराबर संपत्ति है, तो उस पर कुर्बानी अनिवार्य है।

न कर पाएं कुर्बानी तो क्या करें

मालिके निसाब अगर किसी वजह से अपने नाम से कुर्बानी न कर सका और कुर्बानी के दिन गुजर गए तो एक बकरे की कीमत उस पर सदका करना जरूरी है। तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के सदर मुफ्ती मो. अजहर शम्सी के मुताबिक जिनके पास पैसे नहीं हैं, उन्हें कुर्बानी न करने की छूट है। मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने बताया कि खूब महंगा बकरा खरीदकर कुर्बानी को शोहरत का जरिया न बनाएं।

हजरत इब्राहिम से शुरू हुई परंपरा

प्रमुख पैगंबरों में से हजरत इब्राहिम ने कुर्बानी देने की परंपरा शुरू की। मान्यता है कि अल्लाह ने एक बार ख्वाब में आकर उनसे सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा। इब्राहिम को अपना एकमात्र पुत्र सबसे अजीज था। इब्राहिम बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे। रास्ते में एक शैतान कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्यों कुर्बान कर रहे हैं? शैतान की बात पर उनका मन डगमगाने लगा, लेकिन तभी उन्हें अल्लाह से किया अपना वादा याद आ गया।

आंखों पर बांध ली पट्टी

कुर्बानी देते वक्त बेटे के प्रति लगाव आड़े न आए, इसके चलते इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली। कुर्बानी देने के बाद जैसे ही उन्होंने पट्टी हटाई तो बेटा जिंदा उनके सामने खड़ा था। जबकि बेटे की जगह दुंबा (एक जानवर) लेटा हुआ था। इस तरह इब्राहिम का बेटा बच गया और दुंबे की कुर्बानी हो गई। तभी से कुर्बानी देने का रिवाज चल पड़ा।


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