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धरोहर : यहां जमीन फाड़कर निकला था मां काली का मुखड़ा Gorakhpur News

मान्‍यता है कि गोरखपुर के गोलघर में स्थि‍त कॉली मंदिर में मां काली का मुखड़ा जमीन को फाड़कर निकला था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 12:48 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 01:02 PM (IST)
धरोहर  : यहां जमीन फाड़कर निकला था मां काली का मुखड़ा Gorakhpur News
धरोहर : यहां जमीन फाड़कर निकला था मां काली का मुखड़ा Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर गोलघर के उत्तरी छोर पर मौजूद मां काली मंदिर में हर दिन उमडऩे वाली श्रद्धालुओं की भीड़ उस देवी स्थान के प्रति लोगों की गहरी आस्था की गवाही है। इस देवी स्थल के बारे में जनश्रुति है कि आज के गोलघर का यह हिस्सा कभी पुर्दिलपुर गांव था और यह देवी उस गांव की कुलदेवी थीं। उन दिनों गांव के लोग एक नीम के पेड़ के नीचे देवी का चौरा बनाकर पूजा-अर्चना करते थे।

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पहले जंगल जैसी थी यहां की स्थिति

मंदिर की देखभाल मंदिर से कुछ दूरी पर रहने वाला माली परिवार किया करता था। उस समय शहर का यह हिस्सा जंगली क्षेत्र सा साथ दिखता था। देवी स्थल के रूप में इस स्थल को मान्यता कब से मिली, इस संबंध में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं मिलता, लेकिन इसकी प्राचीनता को लेकर किसी को कोई संदेह नहीं।

'आइने-गोरखपुर' में है उल्‍लेख

देवी स्थल के स्थापित होने को लेकर मान्यता है कि यहां मां काली का मुखड़ा जमीन को फाड़कर निकला था। जब यह सूचना पुर्दिलपुर गांव के लोगों तक पहुंची तो श्रद्धालुओं की भारी भीड़ वहां उमडऩे लगी। मुखड़ा निकलने वाले स्थल पर पूजा-अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया। इस तथ्य का जिक्र स्व. पीके लाहिड़ी और डॉ. केके पांडेय ने अपनी पुस्तक 'आइने-गोरखपुर' में भी किया है। मंदिर की मान्यता बढ़ती गई और उसके साथ ही श्रद्धालुओं के उमडऩे का सिलसिला भी अनवरत बढ़ता गया।

1968 में बनी मां काली की भव्य प्रतिमा

भक्तों का विश्वास है कि यह मां काली, मां सिद्धिदात्री स्वरूप हैं, जो हर भक्त की सभी मुरादों को पूरी करती है। बाद में मां काली के एक भक्त जंगी लाल जायसवाल ने 1968 में देवी स्थल पर मां काली की एक भव्य प्रतिमा स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया। यूं तो देवी के दरबार में हर दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है लेकिन नवरात्र के दौरान तो यहां मेले सा माहौल रहता है।


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