नमाज अदा करते वक्त शहीद हुए थे हजरत अली
हजरत अली की शहादत 21 वीं रमजान को है। मुसलमानों में शिया वर्ग 19 वीं रमजान से 21 वीं रमजान तक हजरत अली की शहादत पर तीन दिवसीय शोक मनाता है। इस दौरान कस्बा हल्लौर सहित क्षेत्र के विभिन्न शिया बाहुल्य ग्रामों में घर घर मजलिस मातम का आयोजन होता है।
सिद्धार्थनगर : हजरत अली की शहादत 21 वीं रमजान को है। मुसलमानों में शिया वर्ग 19 वीं रमजान से 21 वीं रमजान तक हजरत अली की शहादत पर तीन दिवसीय शोक मनाता है। इस दौरान कस्बा हल्लौर सहित क्षेत्र के विभिन्न शिया बाहुल्य ग्रामों में घर घर मजलिस मातम का आयोजन होता है। शिया समुदाय के पहले इमाम तथा मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली की खासियत यह रही कि इनका जन्म जहां पवित्र काबे में हुआ, वहीं शहादत मस्जिद में नमाज के दौरान हुई। शासन रहते हुए भी इनका जीवन सादगी से भरा रहा। अध्यात्मवेत्ता होने के साथ वे एक कुशल सेनानी भी थे। दिन में तमाम विवादों को निपटाने में न्यायमूर्ति थे, तो रात के अंधेरे में पीठ पर रोटियां लादकर निरीह एवं असहाय लोगों की मदद करते थे।
पैगंबर-ए- इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के चचेरे भाई व दामाद हजरत अली का जन्म अरबी महीना रजब की तेरह तारीख को काबे के अंदर हुआ। जहां आज दुनिया भर के मुसलमान हज करने जाते हैं। मुसलमान हजरत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया मुसलमान उन्हें अपना पहला इमाम मानते हैं। सूफी मत का तो आरंभ और अंत सबकुछ हजरत अली से ही है। पैगंबर-ए-मोहम्मद में जो ईश्वरी गुण थे, उन सब गुणों और ज्ञान को पैगंबर ने हजरत अली को सिखा दिया था। प्रसिद्ध फ्रांसीसी साहित्यकार ओविल्सनर कहते हैं कि अली का व्यक्तित्व पैगंबर मुहम्मद के जीवन का दर्पण था। हजरत अली का शौर्य और पराक्रम अतुलनीय था। धर्म के उत्थान एवं जन कल्याण में सतत प्रयासरत रहे इस महान धर्म पुरुष को रमजान की 19 वीं तारीख को कूफा की मस्जिद में नमाज पढ़ते हुए इब्ने मुल्जिम नामक अधर्मी ने ठीक सजदे की हालत में जहर भरी तलवार से सिर पर वार किया। जिसके चलते 21 वीं रमजान को उनकी शहादत हुई।