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हिंदी-भोजपुरी के आदि कवि हैं गुरु गोरक्षनाथ : डॉ राजनारायण

उत्‍तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा संचालित गुरू श्री गोरक्षनाथ शोध एवं अध्ययन केन्द्र के तत्त्वाधान में लोकभाषा के संवर्धन में नाथपंथ का योगदान विषय पर संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 04:02 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 04:02 PM (IST)
हिंदी-भोजपुरी के आदि कवि हैं गुरु गोरक्षनाथ : डॉ राजनारायण
हिंदी-भोजपुरी के आदि कवि हैं गुरु गोरक्षनाथ : डॉ राजनारायण

गोरखपुर, (जेएनएन)। नाथपंथ के प्रवर्तक महायोगी गुरु गोरक्षनाथ हिन्दी एवं भोजपुरी के आदिकवि हैं। संस्कृत के आदिकवि महर्षि वाल्मिकी की तरह ही हिन्दी के प्रथम कवि के रूप में प्रमाणित और प्रतिष्ठित गुरू गोरक्षनाथ और उनके दर्शन अकादमिक जगत की उपेक्षा के शिकार रहे। भक्त कवियों के अलावा लोकभाषा को नाथपंथ के योगियों ने जितना समृद्ध किया शायद ही कोई पंथ, सम्प्रदाय अथवा भारत के अन्य धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन ने किया हो। पाठ्यक्रम और अकादमिक क्षेत्र में उन्हें उपयुक्त स्थान न मिलने के कारण हिन्दी सहित लोकभाषा के संवर्धन में महायोगी गोरखनाथ एवं नाथपंथ के योगियों का योगदान अब तक कुछ विद्वानांे के मौलिक शोधों और पुस्तकों के अलावा सामान्य जगत में रेखांकित नहीं किया जा सका।

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उक्त बातें उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के अध्यक्ष हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार डाॅ. राजनारायण शुक्ल ने कही।  यह महाराणा प्रताप पी.जी. काॅलेज, जंगल धूसड़ में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान एवं महाविद्यालय द्वारा संचालित गुरू श्री गोरक्षनाथ शोध एवं अध्ययन केन्द्र के तत्त्वाधान में ‘लोकभाषा के संवर्धन में नाथपंथ का योगदान’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि  सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी, ब्रिग्स, डाॅ. भगवती सिंह, प्रो. रामचन्द्र तिवारी जैसे यदा-कदा विद्वानों के शोध-पूर्ण कार्य जो आगे न बढ़ सका उसे यह संगोष्ठी गति देगी। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आमंत्रण पर संगोष्ठी के विषय पर देश भर में विद्वानों की अनुपलब्धता भी इस बात की प्रमाण है कि धर्म-संस्कृति एवं भाषा के इतने महत्त्वपूर्ण अध्याय पर विद्वान उदासीन रहे हैं। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लोक भाषाओं के संवर्धन एवं विकास में नाथपंथ सहित विविध धाराओं के योगदान पर देश भर में विविध अकादमिक आयोजनो की श्रृंखला प्रारम्भ कर रही है।

शोधात्मक कार्य करने की आवश्यकता : प्रो. रामदेव शुक्ल

राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा कि महायोगी गोरखनाथ हिन्दी एवं भोजपुरी दोनों के आदिकवि ही नहीं अपितु लोकभाषा में गद्यविधा के प्रथम प्रयोगकर्ता हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय में गोरखनाथ सार संग्रह तैयार कराने के साथ गोरखनाथ जी पर पहला शोध हिन्दी विभाग में मेरे निर्देशन में कराया गया। इसमे सन्देह नही कि 8 वी 10वीं शताब्दी में भारत में दो ऐसे महापुरुष शंकर और गोरख हुए जिन्होंने भारत राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति को एकाकार किया। शंकराचार्य ने पूरे देश का चार बार भ्रमण किया जबकि गोरखनाथ ने कितनी बार भ्रमण किया कहना कठिन है। गोरख ऐसे आध्यात्मिक नेता हैं जिन्हें भारत का हर क्षेत्र अपनी भूमि में उन्हे पैदा हुआ मानता है और उन पर गर्व करता है। भाषा का जहां तक प्रश्न है गोरखनाथ की गोरखनाथ की गोरखबानी में भाषा आकार लेने लगी थी। लोकभाषा वही बनती है जिसमें गद्यात्मक रचना प्रारम्भ हो। गोरखपनाथ और नाथपंथर गद्यात्मक रचनाएं 1333 ई. में प्राप्त हो जाती हैं। इस प्रकार गोरखनाथ और उनके नाथपंथ ने हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के आदि रचनाकार थे और उसके विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी की पहली रचना गोरखनाथ की सबदा है। देश का कोई प्रान्त कोई भाषा ऐसी नही जिनके गोरखनाथ और उनके उपदेश का उल्लेख न हो। इस दिशा में बहुत से शोधात्मक कार्य करने की आवश्यकता है।

प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा कि योग भारत का प्राचीनतम द्वार है। यह योग जब पतन और परिभ्रष्‍ट हो रहा था, मृतपाय हो रहा था गोरखनाथ और उनके पंथ के योगियों ने योग को पुनर्जीवित किया और उसके क्रियात्मक पक्ष को सबके समक्ष प्रस्तुत कर योग को जन-सामान्य के बीच लोकप्रिय बनाया। लोकभाषा के उपयोग और उसके विकास के बगैर यह संभव नही था।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि महायोगी गोरखनाथ और उनका नाथपंथ भारत के धार्मिक-आध्यात्मिक-सामाजिक परिवर्तन की धुरी है। भारत में योग ने सामाजिक समरसत को धर्म-अध्यात्म का आधार बनाया। नाथपंथ साहित्य और योगियो की बसियाॅ लोकभाषा में नाथपंथ के अवदान का प्रमाण है। इन विषयो पर स्थापित शोध पीठों को स्रोत संग्रह, व्याख्या एवं नई दृष्टि से शोधपूर्ण कार्य कराने की चुनौती स्वीकारनी होगी।

भाषा मनुष्य की श्रेष्ठतम् खोज : डाॅ. यूपी सिंह

इससे पहले बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष डाॅ. यूपी सिंह ने कहा कि प्रारम्भ में हिंदी साहित्य का लेखन ऐसे हाथो मे था जिन्होंने भारतीय संस्कृति के विविध पक्ष के समझ नही पाए अथवा जान बूझकर उपेक्षित किया। भाषा मनुष्य की श्रेष्ठतम् खोज है। महायोगी गोरखनाथ ने सामाजिक परिवर्तन एवं आध्यात्मिक पुनर्जागरण का जो अभियान चलाया वह इसीलिए जन-जन को जोड़ पाया, क्योकि वे लोकभाषा का उपयोग कर रहे थे। लोकभाषा को नाथपंथ के योगियों ने समृद्ध किया एवं विकसित किया। उद्घाटन समरोह का संचालन, डाॅ. अविनाश प्रताप सिंह ने तथा स्वागत एवं प्रसताविकी प्राचार्य डाॅ. प्रदीप राव ने किया।

संगोष्ठी में डाॅ. कन्हैया सिंह, डाॅ. अनुज प्रताप सिंह, योगेन्द्र प्रताप सिंह, डाॅ. आद्या प्रसाद द्विवेदी,  डाॅ. वेदप्रकाश पांडेय, डाॅ. अच्छेलाल, डाॅ. अनुज प्रताप सिंह, डाॅ. फूलचन्द प्रसाद गुप्त, डाॅ. पृथ्वीराज सिंह, डाॅ. शैलेन्द्र उपाध्याय, डाॅ. आरपी सिंह, प्रो. सुमित्रा सिंह,  डाॅ. शैलेन्द्र प्रताप सिंह, नरिंग बहादुर चन्द, डाॅ. मान्धाता सिंह सहित बड़ी संख्या में महानगर के प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


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