Coronavirus in Gorakhpur: गोरखपुर में सिस्टम पूरी तरह से फेल, एक तरफ दवाओं की कालाबाजारी दूसरी तरफ एम्बुलेंस वालों की वसूली
मरीज के स्वजन की आर्थिक स्थिति और मौके की नजाकत को देखते हुए एंबुलेंस चालक निश्चित दूरी का मनमाना किराया वसूल रहे हैं। मेडिकल कालेज या जिला अस्पताल से राजघाट स्थिति श्मसान तक जाने का किराया भी एंबुलेंस वाले जो मर्जी आए वसूल रहे हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। आपदा के इस भयानक दौर में जब हर परिवार का कोई न कोई सदस्य बीमार है या जिंदगी-मौत के बीच जूझ रहा है, उस हालात में भी कुछ अवसरवादी अपनी फितरत से बाज नहीं आ रहे। आक्सीजन सिलेंडर और दवाओं की कालाबाजारी आरोप-प्रत्यारोपों के बीच एंबुलेंस चालकों की करतूत परेशानहाल लोगों के जख्म पर नमक रगड़ रही है। मरीज के स्वजन की आर्थिक स्थिति और मौके की नजाकत को देखते हुए एंबुलेंस चालक निश्चित दूरी का मनमाना किराया वसूल रहे हैं। मेडिकल कालेज या जिला अस्पताल से राजघाट स्थिति श्मसान तक जाने का किराया भी एंबुलेंस वाले जो मर्जी आए वसूल रहे हैं। खास बात यह है कि पुलिस-प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक के अधिकारियों को इससे कोई मतलब ही नहीं है। वह अब तक एंबुलेंस वालों के लिए दूरी के हिसाब से किराए की न तो कोई दर तैयार कर सके न ही उसे लागू करा सके हैं।
गोरखपुर में एम्बुलेंस वाले बेलगाम शवों को ले जाने के नाम पर जबरदस्त वसूली
गोलघर के अवधेश कुमार दंग रह गए थे जब एंबुलेंस वाले ने पांच किलोमीटर दूरी का किराया पांच हजार रुपये बताया। वह समझ ही नहीं पा रहे थे कि तड़पते बेटे को सहला कर दिलासा दिलाएं या एंबुलेंस चालक को इस मनमानी का सबक सिखाएं। मजबूरी में उसी एंबुलेंस को दस हजार रुपये में तय करके बेटे को अस्पताल पहुंचाया लेकिन बदनसीबी थी कि बेटे को बचा नहीं सके। हद तो तब हो गई जब एंबुलेंस वाले ने अस्पताल से श्मशान घाट ले जाने के दस हजार रुपये अलग से मांग लिए।
शहर की कैंसर पीडि़त महिला का इलाज मुंबई में चलता है। इस बीच तबीयत बिगड़ी तो स्वजन ने मुंबई अस्पताल में बात की। वहां से वाराणसी स्थित अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी गई। स्वजन ने एंबुलेंस चालकों से बात की तो उसने 50 हजार रुपये की डिमांड की। स्वजन ने कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव होने का हवाला भी दिया लेकिन एंबुलेंस चालक टस से मस नहीं हुए। थक-हारकर स्वजन को अपने वाहन से ही कैंसर पीडि़त महिला को लेकर जाना पड़ा।
गोलघर निवासी अवधेश बताते हैं कि दिल्ली से आए बेटे को बुखार हुआ तो बेटे ने किसी डाक्टर से बात करके दवाएं ले लीं और खाने लगा। तबीयत में सुधार होने की बजाय आक्सीजन स्तर गिरने लगा तो वह बेटे को मेडिकल कालेज में भर्ती कराने के लिए जुगाड़ लगाने में लग गए। इस दौरान एक एंबुलेंस वाले से गोलघर से मेडिकल कालेज जाने की बात की तो सात किलोमीटर के 10 हजार रुपये मांगने लगा। मजबूरी का हवाला देते हुए अवधेश गिड़गिड़ाने लगे लेकिन एंबुलेंस वाला मरीज के कोरोना संक्रमित होने का हवाला देकर रुपये कम नहीं किए। दूसरे एंबुलेंस वालों ने भी यही किराया बताया। मजबूरी में एंबुलेंस तय करके वह मेडिकल गए, लेकिन बेटे को नहीं बचा सके।
एंबुलेंस चालकों पर किसी का नियंत्रण नहीं
पिछले दिनों बाबा राघवदास मेडिकल कालेज से मरीज को निजी अस्पतालों में भर्ती कराने में एंबुलेंस चालकों की संलिप्तता की पुष्टि हुई तो प्रशासन ने मेडिकल कालेज के सामने से सभी एंबुलेंस वालों को हटा दिया था। लेकिन कोरोना के मामले बढऩे और स्वास्थ्य विभाग के पास एंबुलेंस की अ'छी व्यवस्था न होने के कारण इन एंबुलेंस चालकों पर कार्रवाई रोक दी गई। इसके बाद से इनकी वसूली और बढ़ गई।