गोरखपुर विश्वविद्यालय : पहले मिलेगा प्रमोशन, टेस्ट में पास नहीं हुए तो होंगे रिवर्ट
गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कोरोना काल में विद्यार्थियों की पढ़ाई जारी रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी फिलहाल प्रमोट कर दिए जाऐंगे। पढ़ाई जारी रहे इसके लिए जुलाई से आनलाइन कक्षाएं भी शुरू कर दी जाएंगी।
गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कोरोना काल में विद्यार्थियों की पढ़ाई जारी रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी फिलहाल प्रमोट कर दिए जाऐंगे। पढ़ाई जारी रहे, इसके लिए जुलाई से आनलाइन कक्षाएं भी शुरू कर दी जाएंगी। इसके लिए जल्द ही समय-सारिणी जारी की जाएगी।
जुलाई से आनलाइन कक्षाओं के संचालन की तैयारी
विश्वविद्यालय प्रमोट किए गए विद्यार्थियों का बाद में एक टेस्ट लेगा। आनलाइन या आफलाइन मोड मेंं होने वाला टेस्ट उन्हें पास करना होगा। फेल होने वाले विद्यार्थियों को पिछली कक्षा में रिवर्ट कर दिया जाएगा। यह सभी कार्य तीन महीने में पूर्ण कर लिए जाएंगे। इन सबके बीच विश्वविद्यालय को प्रमोशन को लेकर शासन के निर्देश का इंतजार भी है।
विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को बनाए रखना बेहद जरूरी है। साथ ही अध्ययन की गुणवत्ता को भी परखते रहना होगा। इसको ध्यान में रखते हुए ही प्रमोशन और उसके बाद टेस्ट की प्रक्रिया अपनाने का निर्णय लिया गया है। जुलाई से आनलाइन कक्षाएं हर हाल में शुरू कर दी जाएंगी। इसे लेकर तैयारी शुरू कर दी गई है। - प्रो. राजेश सिंह, कुलपति, दीदउ गोरखपुर विवि।
आरटीई : दूसरे चरण में आवेदन के लिए तीन दिन है मौका
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत जिले के निजी स्कूलों में निश्शुल्क प्रवेश के लिए 10 जून तक आवेदन कर सकते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते बेसिक शिक्षा विभाग ने दूसरे चरण के लिए आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ा दी है। नए कार्यक्रम के मुताबिक 11 व 12 जून को बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से दस्तावेजों का सत्यापन कराया जाएगा। 13 जून को लाटरी के माध्यम से आनलाइन चयन होगा। 30 जून तक चयनित विद्यालय में प्रवेश की प्रक्रिया पूरा करने का समय निर्धारित है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत जिले के प्राइवेट स्कूलों की 25 फीसद सीटों पर कक्षा एक या पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों का प्रवेश लेना होता है। इन बच्चों की पढ़ाई का खर्च शासन की ओर से स्कूलों के खातों में भेजा जाता है। वहीं कापी-किताब के लिए पांच-पांच हजार रुपये अभिभावकों के खाते में प्रेषित किए जाते हैं।