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गोरखपुर विश्वविद्यालय लाखों का घोटाला, कैंटीन है नहीं और मरम्मत पर खर्च हो गए पांच लाख Gorakhpur News

गोरखपुर विश्वविद्यालय में जो रुपये खर्च हुए उसमें से ज्यादातर के बंदरबांट होने के सुबूत मिल रहे हैं। कैंटीन की मरम्मत के नाम पर पांच लाख रुपये खर्च किए गए जबकि प्रशासनिक भवन में कोई कैंटीन है ही नहीं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 15 Mar 2021 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 16 Mar 2021 07:38 AM (IST)
गोरखपुर विश्वविद्यालय लाखों का घोटाला, कैंटीन है नहीं और मरम्मत पर खर्च हो गए पांच लाख Gorakhpur News
गोरखपुर विश्वविद्यालय में लाखों का घोटाला सामने आया है।

गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। विश्वविद्यालय के विकास एवं छात्रों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए  प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के अंतर्गत करीब 18 करोड़ रुपये प्रदान किया था। इसमें से 16 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि रुपये अनाप-सनाप कार्यों में खर्च किए गए हैं। प्रशसनिक भवन की कैंटीन की मरम्मत पर पांच लाख रुपये खर्च कर दिए गए, जबकि प्रशासनिक भवन में कैंटीन है ही नहीं।

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शासन ने दिया था 18 करोड़, अनाप-सनाप कार्यों में खर्च हुए रुपये

विश्वविद्यालय प्रशासन ने रूसा के अंतर्गत 2015 में करीब 24 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा था। इसमें छात्राओं के लिए छात्रावास, छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय के लिए दो-दो करोड़, नई किताबों, खेल के लिए उपकरण, प्रयोगशाला, कंप्यूटर की खरीद आदि के लिए 13 करोड़ रुपये मांगे गए थे। इसके अलावा परिसर, छात्रावास व शौचालय की मरम्मत व सुंदरीकरण के लिए सात करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा गया था। 2018 में सरकार ने स्वीकृत करते हुए 18 करोड़ रुपये प्रदान भी कर दिया। तत्कालीन कुलपति ने धनराशि खर्च करने के लिए एक कमेटी का गठन किया और प्रो. रजवंत राव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। कमेटी में चार अन्य शिक्षक भी शामिल थे।

कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने गत पांच सितंबर 2020 को कार्यभार करने के कुछ दिन बाद ही छात्रावासों का निरीक्षण किया। बेहद खराब स्थिति में शौचालय मिला। टाइल्स उखड़े हुए थे। नल में टोटियां नहीं थीं। जबकि भवन की मरम्मत में डेढ़ करोड़ और शौचालय की मरम्मत में 30 लाख रुपए खपा दिए गए थे। कमियां मिलने के बाद निर्माण की देखरेख के लिए बनाई गई कमेटी की कमान भी अब भूगोल विभाग के प्रो. शिवाकांत ङ्क्षसह को दे दी गई है। पुरानी टीम के दो शिक्षक अभी कमेटी में शामिल हैं।

इस तरह किया गया रुपयों का बंदरबांट

जो रुपये खर्च हुए, उसमें से ज्यादातर के बंदरबांट होने के सुबूत मिल रहे हैं। कैंटीन की मरम्मत के नाम पर पांच लाख रुपये खर्च किए गए, जबकि प्रशासनिक भवन में कोई कैंटीन है ही नहीं। एक शिक्षक के घर लाखों रुपए की टाइल्स लगा दी गई। कुछ प्रभावशाली शिक्षकों ने अपने विभागों में मनमाना कार्य कराया। रसायन विज्ञान विभाग में लगभग 30 लाख रुपये की लागत से आधुनिक लैब बननी थी। आधा कार्य करने पर भी कार्यदायी संस्था को पूरा भुगतान कर दिया गया। गृह विज्ञान विभाग की छत पर 48 लाख रुपए से बाथरूम में इस्तेमाल होने वाली टाइल्स लगवा दी गई और ठीकेदार को पूरा भुगतान भी कर दिया गया। जिम्मेदारों ने भुगतान से पहले काम की जांच तक नहीं की। इसके अलावा वाणिज्य संकाय में मानक से अधिक शौचालय बना दिए गए हैं।

तीन स्तरों पर हो रही जांच

शिकायत मिलने पर राजभवन ने बाहरी एजेंसी से जांच कराने का निर्देश दिया है। उसके साथ सरकार द्वारा गठित कमेटी भी जांच कर रही है। अब डीएम ने भी जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है, जिसमें क्षेत्रीय उच्चशिक्षा अधिकारी, मुख्य कोषाधिकारी व पीडब्लूडी के अधिशासी अभियंता शामिल हैं।

रूसा के कार्यों में गड़बड़ी की शिकायत पर राजभवन ने स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने का निर्देश दिया था। कार्य परिषद सदस्य की अगुआई में कमेटी गठित की गई है। जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराई जा रही है। मुझे भी निरीक्षण में खामियां मिली थी। जांच टीम को एक महीने का समय दिया गया है। - प्रो. राजेश सिंह, कुलपति, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय।


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