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ख‍िचड़ी मेला 2022: यहां दुकानों के साथ सजता है यादों का मेला

गोरखनाथ मंदिर के खिचड़ी मेले में बर्तन की दुकान सजा रहे लखनऊ के उस्मान का उत्साह उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहा है। इस उत्साह में उनकी तीन पीढ़ियों का वह विश्वास छिपा है जो पहले महंत अवेद्यनाथ और अब योगी आदित्यनाथ के दुलार-प्यार से हासिल हुआ है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 28 Dec 2021 07:30 AM (IST)Updated: Tue, 28 Dec 2021 10:22 AM (IST)
ख‍िचड़ी मेला 2022: यहां दुकानों के साथ सजता है यादों का मेला
गोरखपुर ख‍िचड़ी मेले में दुकानें सजने लगी हैं। - फाइल फोटो

गोरखपुर, डा. राकेश राय। गोरखनाथ मंदिर के खिचड़ी मेले में बर्तन की दुकान सजा रहे लखनऊ के उस्मान का उत्साह उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहा है। इस उत्साह में उनकी तीन पीढ़ियों का वह विश्वास छिपा है, जो पहले ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और अब योगी आदित्यनाथ के दुलार-प्यार और ख्याल रखने से हासिल हुआ है। पूछने पर उस्मान बताते हैं कि उनके दादा हाजी शौकत अली चार दशक पहले इस मेले में पहली बार दुकान लगाने आए थे। पहले उन्हें दुकान के लिए छोटी सी जगह मिली पर जब महंत जी ने उनके बर्तनों की क्वालिटी देखी तो इतनी जगह दिलवा दी, जितनी शायद ही किसी को मिलती है। पिता रमजान ने दादा की परंपरा को आगे बढ़ाया और जब पिता भी नहीं रहे तो उन्होंने इसे कायम रखा है।

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दादा से शुरु हुई परंपरा को निभा रहे पोते, मंदिर के प्रति आस्था है वजह

उस्मान अकेले नहीं हैं, जो तीन पीढ़ी से मेले में आ रहे हैं। यहां दुकान सजाने वाले ऐसे दर्जनों दुकानदार हैं, जिनके दादा और पिता आए तो उन्हें यहां इतना लगाव मिला की फिर आने का सिलसिला नहीं टूटा। आज उनके बेटे और पोते भी अपनी दुकान सजा रहे हैं। पांच दशक से मेले में गन शूटिंग की दुकान लगाने वाले बूढ़े रमजान का किस्सा भी मंदिर के प्रति आस्था की बानगी है। बताते हैं कि 1970 में जब वह पहली बार मेले में दुकान लगाने आए तो यहां उन्हें इतना अपनापन मिला कि वह मंदिर के होकर रह गए।

पूरा पर‍िवार चलाता है मौत का कुआं

मेले से अपने लगाव की वजह की चर्चा में रमजान बताते हैं कि बाबा गोरखनाथ के आशीर्वाद से ही उनके पहले बेटे को 32 साल बाद और दूसरे बेटे को 18 साल बाद संतान की प्राप्ति हुई। उसके बाद तो उनके दोनों बेटे गुड्डू और मुन्नू भी मेले में आने लगे हैं। मौत के कुएं का खेल सजाने वाले धर्म प्रकाश वर्मा की दो पीढ़ी बीते ढाई दशक से मेले में आ रही हैं। यहां की सुविधा उन्हें इतनी भायी कि वह किसी वर्ष गैप नहीं करते। चार दशक पहले मेले में लकड़ी का खिलौना और सामान बेचने आए शहाबुद्दीन तो अब नहीं हैं लेकिन उनके पुत्र माेहम्मद खालिद और पौत्र सलमान पूरे उत्साह के साथ मेले में मौजूद हैं। खालिद मंदिर के मेले में दुकानदारों की सुरक्षा के कायल हैं। कहते हैं कि यही वह मेला है, जिसमें उनसे कोई रंगदारी नहीं ले पाता। हम पर महाराज जी का साया जो रहता है। इस क्रम में उन्होंने 2007 में गोरखपुर में लगे कफ्र्यू का भी जिक्र किया, जब मेले में होने की वजह से वह और उनके साथी पूरी तरह सुरक्षित रहे।

ऐसे बहुत से दुकानदार हैं, जो दशकों से मेले में लगातार अपनी दुकान सजा रहे हैं। कई दुकानों की तो तीसरी पीढ़ी भी अब यहां दुकान लगाने के लिए आने लगी है। महाराज जी भी पुराने दुकानदारों को प्राथमिकता देते हैं। जब कोई पुराना दुकानदार नहीं आता, तभी नए दुकानदारों को अवसर दिया जाता है। - शिवशंकर उपाध्याय, मेला प्रबंधक, खिचड़ी मेला।


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