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खेती से गढ़ रहे भविष्य, घर बैठे प्रतिदिन बेच रहे तीन हजार रुपये की सब्जी Gorakhpur News

बस्ती जिले के बहादुरपुर विकास क्षेत्र का एक गांव हैं नारायणपुर। यहां आधुनिक खेती के युवा कौशलेंद्र पांडेय नजीर बन गए हैं। शार्ट टर्म व लांग टर्म खेती से वह घर बैठे एक लाख रुपये कमा रहे हैं।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sun, 07 Feb 2021 10:30 AM (IST)Updated: Sun, 07 Feb 2021 10:30 AM (IST)
खेती से गढ़ रहे भविष्य, घर बैठे प्रतिदिन बेच रहे तीन हजार रुपये की सब्जी  Gorakhpur News
नारायणपुर गांव में शिमला मिर्च की खेती दिखाते कौशलेंद्र पांडेय।

अनूप सिंह, गोरखपुर : बस्ती जिले के बहादुरपुर विकास क्षेत्र का एक गांव हैं नारायणपुर। यहां आधुनिक खेती के युवा कौशलेंद्र पांडेय नजीर बन गए हैं। टिशू कल्चर विधि से खेती कर वह अपना भविष्य गढ़ रहे हैं। शार्ट टर्म व लांग टर्म फसल की खेती से वह घर बैठे प्रति माह एक लाख रुपये कमा रहे हैं। इकलौते पुत्र कौशलेंद्र पांडेय बीएससी गणित से उत्तीर्ण करने के बाद वर्ष 2005 में नौकरी की दौड़ में शामिल हो गए। रिलायंस कंपनी में अवसर मिला और दस साल तक नौकरी की। नौकरी से नफा नुकसान और पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए वर्ष 2016 में घर लौट आए।

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केले की खेती के बारे में किया मनन

इंटरनेट मीडिया और यूट्यूब से केले की खेती के बारे में अध्ययन एवं मनन किया। इसी साल उन्होंने बारह बीघा में केले की खेती शु़रू की। दो साल में केले से पांच लाख रुपये कमाए। इससे उनका हौसला बढ़ गया और खेती में मन लग गया। पांडेय ने बताया कि अब वह केले के साथ बहुफसली खेती कर रहे हैं। वर्तमान में दो बीघा टमाटर व दो बीघा शिमला मिर्च के साथ 17 बीघे में केले की फसल लहलहा रही है। कमाई बराबर बनी रहे, इसके लिए लांग टर्म केले की खेती के अलावा शार्ट टर्म की फसल टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, लौकी करेला व तरबूज का उत्पादन शुरु कर दिया। इनकी खेती के चर्चे आम हुए तो बड़े व्यापारी सीधे खेतों मे खरीदारी के लिए पहुंचने लगे। बताया कि प्रतिदिन तीन से साढ़े तीन हजार रुपये सब्जी की बिक्री से उन्‍हें मिल रहे हैं। छह माह की इस फसल से पांच लाख रुपये प्रति एकड़ लाभ मिल जाता है, इससे प्रेरित होकर गांव के अन्य किसान भी अब परंपरागत खेती के साथ ही केले व सब्जी की खेती कर रहे हैं ।

ड्रिप सिंचाई व मल्चिंग का प्रयोग

फसल के उत्पादन में खर्च कम और लाभ अधिक हो, इसके लिए ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था बनाई है। इस विधि से जहां पानी की 60-70 फीसद बचत होती है। वहीं उत्पादन में 20-30 प्रतिशत का लाभ मिलता है तो दूसरी तरह मल्चिंग विधि का उपयोग करने से खरपतवार नियंत्रित, उत्पादन में बढ़ोतरी तथा पौधे सुरक्षित रहते हैं।

खुद की नर्सरी में तैयार होता है पौधा

प्रजाति अच्‍छे उत्‍पादन वाली तथा रोग रहित हो, इसके लिए स्वयं लखनऊ से बीज लाकर खुद के पाली हाउस में नर्सरी तैयार करते है। ऐसा करने से प्रति पौधा कम खर्च पड़ता है तथा प्रतिकूल मौसम में भी तैयार हो जाता है। उनके पाली हाउस में लौकी, खीरा, नेनुआ कद्दू व ग्रीष्मकालीन टमाटर की नर्सरी तैयार हो रही है।

अन्य को भी मिल रहा रोजगार

खेती से खुद को आत्मनिर्भर बनाया, इसके साथ ही अन्य लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे है। पहले स्वयं दूसरे के यहां नौकरी कर रहे थे। आज इनके खेत में आधे से अधिक लोगों काम कर रहे हैं, जिसके इनके साथ ही काम करने वाले मजदूरों का भी परिवार दो पैसा कमा रहा है।


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