तीस एकड़ भूमि के क्षेत्रफल में रोप दिया फलदार पेड़ Gorakhpur News
संतकबीरनगर के धर्मसिंहवा थाना क्षेत्र के हरैया निवासी और अधिवक्ता अखंड प्रताप सिंह ने एक दशक पूर्व अपनी पैतृक भूमि पर लगभग 30 एकड़ क्षेत्रफल में फलदार पौधों को रोपित किया है। बाग में सैकड़ों की संख्या में आम के पेड़ लहलहा रहे हैं।
अतुल मिश्र, गोरखपुर : पर्यावरण प्रदूषण के दौर में अगर कोई पर्यावरण संरक्षण के साथ- साथ खुद की तरक्की व लोगों को रोजगार दे पा रहा है तो निश्चित ही वह समाज के लिए बेहतर भूमिका का निर्वहन कर रहा है। खेती व बागवानी भी तरक्की का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, बस ईमानदारी से काम करने की जरूरत है। संतकबीरनगर के धर्मसिंहवा थाना क्षेत्र के हरैया निवासी और अधिवक्ता अखंड प्रताप सिंह ने एक दशक पूर्व अपनी पैतृक भूमि पर लगभग 30 एकड़ क्षेत्रफल में फलदार पौधों को रोपित किया है। बाग में सैकड़ों की संख्या में आम के पेड़ लहलहा रहे हैं। गौरजीत, दशहरी, कर्पूरी, चौसा, लंगड़ा आदि किस्म के आम लगे हैं। लीची, कटहल के साथ ही अन्य फलदार पौधे भी हैं। बाग से प्रतिवर्ष 25 लाख रुपये की आमदनी फल की बिक्री करते हैं। क्षेत्र के 25 लोगों को पूरे वर्ष रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं।
हर वर्ष रोपते हैं 500 पौधे
अखंड प्रताप पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष 500 पौधे खाली जगहों पर रोपते हैं। उसकी सुरक्षा करते हैं और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी करते हैं। वह कहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनके पिता स्व. देवेंद्र सिंह भी कार्य करते थे। उन्हीं के बताए रास्ते पर चलकर वह पर्यावरण को मजबूती दे रहे हैं। बागवानी में हार्वेस्टर तकनीकी का प्रयोग भी उनके द्वारा किया जाता है। उनके बाग का आम काफी प्रसिद्ध है। बागवानी की तकनीकी सीखने के लिए वह अक्सर दूसरे राज्यों में भी जाते हैं। उनको विभिन्न मंचों से कई बार सम्मान भी प्राप्त हो चुका है।
बागवानी के साथ करते हैं मछली पालन
वह बागवानी के साथ लोलैंड भूमि पर पोखरे की खुदाई कराकर मत्स्य पालन भी करते हैं। इनके पास वर्तमान में दो पोखरे हैं, जिससे यह प्रतिवर्ष पांच लाख रुपये आय भी कर रहे हैं। उनके पोखरे में रोहू, ग्रास रोहू, भाकूर व कुछ अन्य प्रजाति की मछलियां हैं। मत्स्य पालन से यह बागवानी का खर्चा निकाल लेते हैं।
स्थानीय लोगों को मिल रहा रोजगार
अखंड का बगीचा दूर-दूर तक बाबू साहब के बगीचे के नाम से प्रसिद्ध है। उनकी बाग में 25 लोग नियमित काम करते हैं। आम के सीजन में यह संख्या 50 तक पहुंच जाती है। सूखी टहनियां, सूखे पत्ते निकालने का काम अनवरत चलता है। पेड़ों को सेहतमंद बनाने के लिए जुताई व पानी चलाने का काम भी लगातार होता है।
तकनीकी व सही रोडमैप से मिल रही सफलता
अखंड बताते हैं कि पैतृक भूमि पहले खाली पड़ी थी। खेती करने से लाभ बहुत कम होता था। पिता ने बागवानी कराने का निर्णय लिया तो उनके बताए रास्ते पर चलकर आज बागवानी से लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। इस तरक्की में तकनीकी का बड़ा रोल है। दवा, बीज का चुनाव व तकनीकी का तालमेल सफलता को आसान बना रहा है।