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Agriculture and farming: बीज शोधन पर दें ध्यान, मालामाल होंगे आलू किसान

सब्जी बनाने से लेकर चाट समोसा अन्य खाद्य सामग्रियों में आलू की बड़े पैमाने पर खपत होती है। गोरखपुर जिले में ही आलू की डिमांड बाराबंकी व कानपुर जिलों से पूरी होती है। इस जिले में भी करीब 15 हजार एकड़ में आलू की खेती होती है।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 04:22 PM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 04:22 PM (IST)
Agriculture and farming: बीज शोधन पर दें ध्यान, मालामाल होंगे आलू किसान
बीज शोधन पर दें ध्यान, मालामाल होंगे आलू किसान। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। सब्जी बनाने से लेकर चाट, समोसा अन्य खाद्य सामग्रियों में आलू की बड़े पैमाने पर खपत होती है। गोरखपुर जिले में ही आलू की डिमांड बाराबंकी व कानपुर जिलों से पूरी होती है। इस जिले में भी करीब 15 हजार एकड़ में आलू की खेती होती है। ऐसे में किसान यदि थोड़ा सा ध्यान दे दें तो यहां आलू का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

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दो बीमारियों की वजह से कम होता है आलू का उत्‍पादन

आलू का उत्पादन कम होने की बड़ी वजह है कि आलू में दो बीमारियां पूर्वांचल में बड़े पैमाने पर लगती हैं। पहली बीमारी अगैती झुलसा है। आलू में यह बीमारी अल्टरमेरिया सोलोनाई नामक फफूद से होती है। दूसरी बीमारी पछैती झुलसा फाइटोथोरा इन्फेसटेंस नामक फफूद से यह बीमारी होती है। अगैती झुलसा में पौधे के शाकीय भाग में विशेषकर पत्तियों पर गोल-गोल धब्बेनुमा संरचना बनती है। इसके प्रभाव से पौधे में भोजन निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है। कम मात्रा में भोजन बनने से आलू के कंद में भोजन संचयन कम होता है। जिससे आलू के कंद का आकार छोटा हो जाता है। इससे उत्पादन 10 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकता है।

झुलसा रोग की वजह से कम होती है पैदावार

वहीं दूसरी तरफ पछैती झुलसा में बीमारी का लक्षण पछैती झुलसा में भी बीमारी के लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं। इसमें पत्तियां ऐसे झुलसती हैं, जैसे इसे आग में जलाया गया हो। लक्षण प्रकट होते ही संपूर्ण पौधा अधिकतम एक सप्ताह के भीतर नष्ट हो जाताहै। साथ-साथ यह भी जानना आवश्यक है कि पत्तियों में लक्षण प्रकट होने के पहले ही यह बीमारी संपूर्ण पौधे में फैल चुकी होती है। ऐसे में पौधे पर किसी दवा का छिड़काव करके उसे नहीं बचाया जा सकता है।

इन रोगों से प्रभावित होती है आलू की गुणवत्‍ता

इन रोगों में आलू के उत्पादन से लेकर उसकी गुणवत्ता तक प्रभावित होती है। इसी लिए यह आलू की सबसे भयानक बीमारी मानी जाती है। अतीत में देखा जाए तो इसके प्रभाव से आयरलैंड में 1845 में अकाल जैसी स्थिति आ गई थी। ऐसे में आलू की खेती करते समय किसानों बड़ी सावधानी अपनानी चाहिए। इन बीमारियों की तीव्रता वातावरण के प्रभाव पर निर्भर करती है। इस बीमारी के लिए निम्न तापमान, आसमान में बादल, बूंदाबांदी अथवा हल्की वर्षा अनुकूल वातावरण है।

बोआई से पहलेकरें बीज शोधन

यदि यह स्थिति तीन दिन से लेकर 10 दिन तक बनी रहे तो बीमारी कई गुना तीव्र हो जाती है। ऐसे में धन का भी अपव्यय होता है और बीमारी भी नहीं खत्म होती है। ऐसे में बालू की बोआई से पहले बीज शोधन अनिवार्य रूप से करा लें। इससे आलू के पौधे में बीमारी भी नहीं लगती और उत्पादन में लागत भी कम आती है। आलू के बीज शोधन के लिए 2.5 ग्राम कार्बेंडा जिम 50 प्रतिशत प्रति किलो बीज दर से उपचारित कर रात भर छाया में सुखाकर रखें। उसके बाद बोआई करें। यिद खेत को जैविक विधि(ट्राइकोडरमा) 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि शोधन कर लिया जाए तो आलू की खेती पूर्ण रूप से सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त होती है।


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