एक वर्ष से अपनों की तलाश रही बंदियों की आंखें, बाहर से सामान लाकर जेल प्रशासन को सौंप देते हैं स्वजन Gorakhpur News
कोरोना का सर्वाधिक असर जेल पर पड़ा है। कोरोना संक्रमण के चलते एक साल से जिला कारागार में बंदियों की मुलाकात पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में बंदियों की अपने स्वजन से मुलाकात नहीं हो पा रही है और न उनका चेहरा देख पा रहे हैं।
गोरखपुर, जेएनएन : कोरोना का सर्वाधिक असर जेल पर पड़ा है। कोरोना संक्रमण के चलते एक साल से जिला कारागार में बंदियों की मुलाकात पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में बंदियों की अपने स्वजन से मुलाकात नहीं हो पा रही है और न उनका चेहरा देख पा रहे हैं। उम्मीद जगी थी कि मई से मुलाकात शुरू हो जाएगी, लेकिन कोरोना संक्रमण ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ने के चलते उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
सर्वाधिक इनको हो रही परेशानी
अप्रैल, 2020 में शासन ने निर्देश दिया कि जो बंदी सात साल से कम की धारा में बंद है और जो कैदी सात साल से कम की सजा में बंद हैं, उन्हें पेरोल दे दिया जाए। इस नियम के तहत लगभग तीन सौ बंदी व कैदी देवरिया कारागार से कुशीनगर व देवरिया के लिए छोड़ दिए गए। सजाफ्ता कैदी तो वापस हो गए हैं, लेकिन अभी भी बंदी अपने घरों पर हैं। सर्वाधिक परेशानी उन बंदी को उठानी पड़ रही है, जो सात साल से अधिक की धारा में बंद हैं। एक साल से ऐसे बंदी व कैदी अपने स्वजन का चेहरा तक नहीं देख सके हैं।
ऐसे पहुंचता है उनका सामान
बंदियों व कैदियों के सामान उन तक पहुंचाने की व्यवस्था जेल प्रशासन ने कर दी है। स्वजन जेल गेट पर अपना सामान ला कर रख देते हैं और उसमें बंदी के नाम की पर्ची लग जाती है। चौबीस घंटे तक सामान को भी क्वारंटाइन किया जाता है। इसके बाद उस सामान को बंदियों तक पहुंचाया जाता है।
टेलीफोन से कराई जाती है बात
अब जेल प्रशासन ने एक नई सुविधा इन बंदियों को मुहैया कराया है। बंदियों को स्वजन से बात करने के लिए टेलीफोन की सुविधा दी गई है। बंदी सप्ताह में पांच दिन अपने स्वजन से बातचीत कर सकते हैं।
मुलाकात पर लगाई गई है रोक
जेल अधीक्षक केपी त्रिपाठी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते मुलाकात पर रोक लगाई गई है। उनके स्वजन से टेलीफोन से बात करा दी जाती है और सामान भी उन तक पहुंचा दिया जाता है।