षट्तिला एकादशी को तिलों के प्रयोग से नष्ट होते हैं पाप, जानें- क्या है पूजन विधि Gorakhpur News
षट्तिला एकादशी को सूर्योदय 640 बजे व एकादशी तिथि रात 326 बजे तक है। यह माघ कृष्ण एकादशी व्रत है। इस दिन छह प्रकार से तिलों का व्यवहार किया जाता है इसीलिए इसे षट्तिला कहते हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। षट्तिला एकादशी व्रत सोमवार को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय 6:40 बजे व एकादशी तिथि रात 3:26 बजे तक है। यह माघ कृष्ण एकादशी व्रत है। इस दिन छह प्रकार से तिलों का व्यवहार किया जाता है, इसीलिए इसे षट्तिला कहते हैं।
तिल युक्त जल से स्नान करने का है विधान
ज्योतिषाचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र के अनुसार इस दिन काले तिल और काली गाय के दान का भी विशेष महत्व है। जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान से करता है, उसे बुरे कर्मों व पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन सुखमय बनता है। इस दिन तिल युक्त जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान, तिल का भोजन और तिल के दान का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि ऐसा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अभाव व कष्ट दूर होते हैं।
पूजन विधि
इस एकादशी को शरीर पर तिल के तेल की मालिश करना, तिल के जल का पान एवं तिल के पकवानों का सेवन करने का विधान है। सफेद तिल से बनी वस्तुओं के खाने का महत्व अधिक बताया गया है। इस दिन विशेष रूप से श्रीहरि विष्णु की तिलों से पूजा करें। तिल के लड्डू अर्पित करें। तिल का फलाहार करें। रात्रि जागरण करें। ब्राह्मण या विष्णुभक्त को भरा हुआ घड़ा, छाता, जूतों का जोड़ा, काली गाय, काले तिल और उससे बने व्यंजन, वस्त्रादि का दान करें।