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Paddy Farming: धान की खेती में इन चीजों का रखें ध्‍यान, खूब होगी कमाई

Paddy Farming बीते वर्ष हल्दिया रोग के किसानों की 30-40 फीसद फसल प्रभावित हुई थी। जिला कृषि रक्षा अधिकारी संजय यादव का कहना है कि इस रोग से बचाव के तीन माध्यम है। पहला माध्यम है बीज शोधन व दूसरा मिट्टी शोधन। इसके लिए अब समय निकल चुका है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 01:30 PM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 01:30 PM (IST)
Paddy Farming: धान की खेती में इन चीजों का रखें ध्‍यान, खूब होगी कमाई
धान की खेती में कुछ सावधानी बरत कर किसान अच्‍छी कमाई कर सकते हैं। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। सप्ताह भर बाद धान की फसल में फूल आने लगेंगे। खेतों में नमी खूब है। ऐसे में फूलों पर विशेष ध्यान होगा, अन्यथा फसल पर हल्दिया (कंडवा) अर्थात फाल्स स्मट रोग का खतरा है। ऐसे में हल्दिया से बचाव के लिए किसानों को अभी से अपने खेतों में दवा का छिड़काव करना होगा।

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नमी से लगता है रोग, समय से करना हो फसल पर दवा का छिड़काव

खेतों में अधिक नमी के चलते किसान हल्दिया रोग को लेकर चिंतित भी दिख रहे हैं। तमाम किसानों ने कृषि विभाग से गुहार लगाई है कि वह फसलों को हल्दिया से बचाव के लिए अभी से सतर्कता बरतें। ताकि किसान अपनी फसलों में दवा का छिड़काव कर सकें। फंफूदी जनित इस रोग का धान की बालियों में दाना पड़ते ही असर दिखने लगता है। इसके चलते धान की बाली के चावल का हर दाना पीले पाउडर में बदल जाता है तथा बाली के दाने का आवरण फटने से पीला पाउडर बाहर निकलने लगता है। खेतों में हवा के साथ फैलकर यह अन्य पौधों को प्रभावित करता है। समय रहते यदि इस रोग पर ध्यान न दिया गया तो यह प्रभावित फसल के साथ आस-पास के क्षेत्रों पर भी प्रभाव डालता है।

फूल आने के समय धान में रहता है हल्दिया रोग लगने का खतरा

बता दें बीते वर्ष हल्दिया रोग के किसानों की 30-40 फीसद फसल प्रभावित हुई थी। जिला कृषि रक्षा अधिकारी संजय यादव का कहना है कि इस रोग से बचाव के तीन माध्यम है। पहला माध्यम है बीज शोधन व दूसरा मिट्टी शोधन। इसके लिए अब समय निकल चुका है। ऐसे में किसानों के पास वर्तमान में फसलों पर दवा छिड़काव करने के अलावा कोई चारा नहीं है। बचाव के लिए किसानों धान की फसल पर हेक्साकोनाजोल/प्रोपीकोनाजोल/ट्यूबाकोनाजोल एक ग्राम प्रति लीटर के साथ, थायमेथाक्साम तथा टेट्रासाइक्लीन दवा एक ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इसके प्रकोप को रोका जा सकता है।

झुलसा रोग भी धान के लिए मुसीबत

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक शैलेंद्र सिंह बताते हैं, कि जनपद गोरखपुर में धान का जीवाणु झुलसा रोग धान की फसलों में लगने वाला एक महत्वपूर्ण रोग है। झुलसा रोग धान की पत्तियों पर ही लगता है। इस रोग के चलते पत्तियों के उपरी सिरो पर हल्के हरे व पीले रंग के 5 से 10 मिलीमीटर तक धब्बे पड़ जाते हैं। इसके चलते पौधा सूख जाता है।

इस रोग के बचाव के लिए खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए। जहां तक संभव हो खेत में नाइट्रोजनिक उर्वरको का कम से कम प्रयोग किया जाए। बीजों को बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना चाहिए जिससे कि इस रोग के रोगजनक को नष्ट किया जा सके। रोग का प्रकोप दिखाई देने पर कापर आक्सिक्लोराइड की 30 ग्राम दवा के साथ स्टेप्टोसाइकिलइन की 1 ग्राम दवा को प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।


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