बेघर हुए पूर्व विधायक के घर पहुंचे डीएम, आवास की व्यवस्था करने का दिया प्रस्ताव Gorakhpur News
बरसात में खपरैल का मकान गिरने से बेघर हुए पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय के घर डीएम के. विजयेंद्र पाण्डियन पहुंचे और उन्हें शहर में आवास देने की पेशकश की।
गोरखपुर, जेएनएन। मानीराम के पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय के घर जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पाण्डियन एवं ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल पहुंचे। जिलाधिकारी ने उनका हाल पूछने के साथ बरसात में कहीं और आवास की व्यवस्था करने का प्रस्ताव दिया। पर, पूर्व विधायक ने गांव पर ही रहने की इच्छा जताई है।
शहर का निरीक्षण करने के दौरान दोनों अधिकारी पूर्व विधायक के आवास पहुंचे। गत दिनों पूर्व विधायक का खपरैल का मकान ध्वस्त हो गया था। जिलाधिकारी ने कहा कि प्रशासन उनका हर तरह से सहयोग करेगा। कहा कि बरसात में मकान पूरी तरह गिर सकता है, जिससे परिजनों को खतरा भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि यदि वह चाहें तो उनके रहने की व्यवस्था कहीं और कर दी जाए। महेसरा के पास एक स्थान का जिक्र भी किया गया लेकिन पूर्व विधायक गांव पर ही रहना चाहते हैं। प्रशासन की ओर से मिलने वाली सहायता भी जल्द दिलाने का भरोसा दिया। पूर्व विधायक ने कहा कि जिलाधिकारी आए थे। करीब 15 से 20 मिनट घर पर रहे। उन्होंने कहीं रहने की व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है लेकिन गांव पर ही रहना उचित है। कांग्रेस के पूर्व विधायक ने कहा कि पार्टी पूरी तरह से उनकी सहायता कर रही है।
बरसात में ध्वस्त हो गया था खपरैल मकान
मानीराम के पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय का पुस्तैनी खपरैल का मकान 12 जुलाई की रात बारिश में गिर गया था। हरिद्वार पांडेय मानीराम गांव स्थित अपने पुस्तैनी खपरैल के मकान में परिवार के साथ रहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह के करीबी लोगों में शुमार पांडेय 1980-85 में मानीराम विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश महासचिव ने बताया कि पूर्व विधायक गरीबी में जीवन काट रहे हैं। इस बारे में जिला आपदा विशेषज्ञ गौतम गुप्ता ने बताया कि पूर्व विधायक का घर गिरने की जानकारी नहीं है। अगर घर गिरा है तो उन्हें 95100 रुपये की सरकारी सहायता मुहैया कराई जाएगी। 1980 से 85 तक कांग्रेस से मानीराम से विधायक रहे हरिद्वार पांडेय हाई स्कूल पास हैं। हरिद्वार पांडेय के मुताबिक उनके मां-बाप की इच्छा थी कि उनका बेटा पढ़ लिखकर इंजीनियर बने, इसलिए घरवालों का पूरा जोर साइंस व मैथ पढ़ाने पर था लेकिन हरिद्वार पांडेय नौकरी से दूर भागते रहे। उन्होंने तुर्कमानपुर स्थित रावत पाठशाला से हाई स्कूल की परीक्षा 1957 में प्राइवेट पास की। वह इंजीनियर नहीं बनना चाहते थे इसलिए आगे की पढ़ाई छोड़ दी। बावजूद इसके गोलघर में उस वक्त के मशहूर वीनस बुक स्टाल पर बैठकर घंटों पढ़ाई किया करते थे। उसी दौरान उन्होंने अमृत पत्रिका में लिखना भी शुरू कर दिया।
वीर बहादुर सिंह ने दिल्ली बुलाकर टिकट दिलवाया
पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय बताते हैं कि चुनाव लडऩे के बारे में स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा उनसे पूछा गया तो उन्होंने मना कर दिया। जब इसकी जानकारी वीरबहादुर सिंह को हुई तो उन्हें दिल्ली तलब किया गया। वीर बहादुर सिंह ने पूछा, कि चुनाव लडऩे से क्यों मना कर रहे हो? इस पर हरिद्वार पांडेय ने कहा कि चुनाव लडऩे के लिए पैसे नहीं हैं और हम संगठन में ही रहकर पार्टी की सेवा करना चाहते हैं, लेकिन वीर बहादुर सिंह ने एक न सुनी। उन्होंने कहा कि तुम्हें वहां से चुनाव लडऩा है, जाकर तैयारी करो। इस तरह वीर बहादुर सिंह के मनाने पर चुनाव लडऩे को राजी हुए। दो दिन बाद दिल्ली से लौटकर आए तो पर्चा दाखिले की तैयारी शुरू की। पूर्व विधायक कहते हैं कि उनके पास जमापूंजी के नाम पर चार बीघे की खेती है जिसे उनके बड़े लड़के घनानंद संभालते हैं। छोटे बेटे कृष्णानंद पांडेय की आठ साल पूर्व मौत हो चुकी है ऐसे में छोटे बेटे की पत्नी, तीन बेटियां व एक बेटे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। बड़े बेटे का परिवार भी पूर्व विधायक के साथ रहता है। पूर्व विधायक बताते हैं कि उन्हें 33 हजार रुपये पेंशन मिलती है उसी से पूरे परिवार का खर्च चलता है। खेती भी भगवान भरोसे होती है, बाढ़ आने पर पूरी फसल डूब जाती है। कुछ बचता है तो घर आता है नहीं तो खरीदकर खाना पड़ता है।