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Disabled day: हुनर के सहारे दे रही दिव्यांगता को मात, सिलाई कढ़ाई से हुई आत्मनिर्भर

हौसले और हुनर के बलबूते सिद्धार्थनगर एक महिला पिछले 14 वर्षों से दिव्यांगता को मात दे रही है। जिस उम्र में आजकल युवतियों का विवाह हो रहा उसी उम्र में भारतभारी की एक दिव्यांग बेटी विधवा हो गई। उसने अपने हुनर को जीविका का हथियार बनाया।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Fri, 03 Dec 2021 09:05 AM (IST)Updated: Fri, 03 Dec 2021 09:05 AM (IST)
Disabled day: हुनर के सहारे दे रही दिव्यांगता को मात, सिलाई कढ़ाई से हुई आत्मनिर्भर
हुनर के सहारे दे रही दिव्यांगता को मात, सिलाई कढ़ाई से हुई आत्मनिर्भर। जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। हौसले और हुनर के बलबूते सिद्धार्थनगर एक महिला पिछले 14 वर्षों से दिव्यांगता को मात दे रही है। जिस उम्र में आजकल युवतियों का विवाह हो रहा उसी उम्र में भारतभारी की एक दिव्यांग बेटी विधवा हो गई। लेकिन उसने थक हारकर बैठने की जगह अपने हुनर को जीविका का हथियार बनाया। आज उसी के सहारे लड़की की शादी हुई और घर खर्च भी आराम से चल रहा है।

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पैर से‍ दिव्‍यांग हैं सुभावती

भारतभारी निवासिनी सुभावती की शादी 20 वर्ष पहले पड़ोस के गांव अहिरौली में हुई थी। सुभावती पैर से दिव्यांग है। शादी के बाद दो बेटियां भी हुई, लेकिन 14 वर्ष पहले पति की मौत हो गई। महिला पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, क्योंकि ससुराल में उसके हिस्से में कोई जमीन नहीं थी। बेटियों को लेकर वह मायके चली आई। बचत के पैसों से सिलाई-कढ़ाई मशीन खरीद लिया। उसे सिलाई और कढ़ाई का अच्छा ज्ञान था तो इसे ही आजीविका का माध्यम बनाया।

देखते ही देखते बजने लगा हुनर का डंका

वह महिलाओं व युवतियों के कपड़े सिलने लगी। देखते ही देखते उसके हुनर का डंका बजने लगा और सिलाई का काम अधिक मिलने लगा। सुभावती ने इसके बाद गांव की लड़कियों को ट्रैनिंग देने का सिलसिला भी शुरू किया। आज भी वह लगभग 20 युवतियों व महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं। उनसे सीखने के बाद कई लड़कियां उनके साथ ही काम भी कर रही हैं। सुभावती बताती हैं कि इस समय उनकी प्रतिदिन की कमाई एक हजार रुपये से अधिक हे। इसी कमाई से वह एक बेटी की शादी कर चुकी हैं, और घर खर्च भी चल जाता है। शुरुआती दौर में कुछ तकलीफ जरूर हुई, लेकिन हौसला नहीं छोड़ा उसका फायदा अब मिल रहा है।

आंखों से रोशनी गायब, हौसलों की उड़ान जारी

मंजिलें उन्ही को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती हैं। किसी शायर की यह लाइनें बहुत लोगों ने पढ़ी और सुनी होगी, लेकिन सिद्धार्थनगर जिले में रंगरेज पुर गांव के रवि ने इसे खूब ठीक से साबित कर दिया है। 28 वर्षीय रवि गौतम जब कक्षा 2 का छात्र था तभी उसकी एक आंख लाल हुई उसके कुछ ही दिन बाद दोनों आंख लाल हो गई। इलाज के लिए बहराइच स्थित एक निजी क्लीनिक ले जाया गया जहां सुधार नहीं होने पर स्वजन पड़ोसी राष्ट्र नेपाल स्थित भैरहवां ले गए। जहां पर रवि के दोनों आंखों की रोशनी बिल्कुल ही चली गई।

मोबाइल रीचार्ज की दुकान चला रहे आजीविका

गरीबी की मार झेल रहे रवि के पिता सूत्तुर जो की ठेला चला कर परिवार का जीवन यापन करते थे दोनों आंखों से दिखाई न देने के बाद भी रवि अपने परिवार पर बोझ न बनकर गांव के सड़क पर ही एक टंकी खोल कर मोबाइल रिचार्ज की दुकान खुलवा दी। इसी आमदनी से वह अपना जीवन यापन कर रहा है। आंखें न होने के बाद भी रवि सिक्के से लेकर छोटे बड़े सभी नोटों की पहचान आसानी से कर लेता है। इतना ही नहीं की-पैड वाली मोबाइल के प्रयोग से वह मोबाइल रिचार्ज भी करता है।


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