बड़े बदलावों से अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव लाजिमी : प्रो. हिमांशु राय
बेरोजगारी की वर्तमान दशा को लेकर हम जितने चिंतित हैं उस लिहाज से समाधान के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। आर्थिक मंदी के को भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम) इंदौर के निदेशक प्रोफेसर हिमांशु राय अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव मानते हैं। प्रोफेसर राय दो दिन के गोरखपुर दौरे पर हैं। बुधवार को दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने आर्थिक मंदी पर काफी खुलकर बातचीत की।
प्रोफेसर राय देशव्यापी आर्थिक मंदी के लिए सरकारी नीतियों को जिम्मेदार नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक यह स्थिति वैश्विक है और एक खुली अर्थव्यस्था वाला देश होने के नाते भारत इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। प्रो. राय देश में पढऩे-पढ़ाने के तौर-तरीकों में बड़े बदलाव की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि देश में बेरोजगारी की वर्तमान दशा को लेकर हम जितने चिंतित हैं, उस लिहाज से समाधान के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। देश के शीर्षस्थ प्रबंधन गुरुओं में शुमार प्रो. राय से बुधवार को 'जागरण' ने विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से वार्ता की।
देश में बेरोजगारी की वर्तमान हालत को कैसे देखते हैं?
-इसमें दो राय नहीं कि देश में रोजगार की स्थिति अच्छी नहीं है। बेरोजगारों की तादात बढ़ रही है, लेकिन यहां यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि बेरोजगारों की इस कतार में कितने ऐसे हैं जो नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन उनकी क्षमता के अनुसार नौकरी नहीं मिल रही। दूसरे वे जो अलग-अलग कारणों से जॉब करना ही नहीं चाहते। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो योग्य नहीं हैं। ऐसे में उन्हें नौकरी कहां मिलेगी। बहुत ऐसे भी हैं जो जॉब चाहते ही नहीं। अगर हम इन दोनों को अलग-अलग करें तो अभी जो बेरोजगारी के भयावह आंकड़े सामने हैं, वह उतने नहीं डराएंगे।
आने वाले समय में रोजगार के पैरामीटर पर कितनी उम्मीदें देखते हैं?
- समय बदल रहा है, अगले चार-पांच वर्षों में जॉब मॉर्केट का दृश्य बदलने वाला है। स्किल की परिभाषा बदलेगी। क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स का दौर आ रहा है। हमें अपने युवाओं को इन पैरामीटर पर तैयार करना होगा। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं कि परंपरागत मानव संसाधन की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन वर्तमान की अपेक्षा उसमें कमी जरूर आ जाएगी।
स्टडी पैटर्न में क्या किसी तरह के बदलाव की जरूरत है?
- बदलाव बहुत जरूरी है। कोर्स को भी और पढ़ाने-प्रशिक्षण का तरीका भी। आप इंजीनियङ्क्षरग और मैनेजमेंट के टियर-1 व टियर-2 के कॉलेजों को देख लीजिए, बहुत अंतर है। इस अंतर को खत्म करने की जरूरत है और यह तब होगा जब फैकल्टी अच्छी होगी। ट्रेनिंग का पैटर्न समय के अनुसार अपडेट होता रहेगा। आप मैनेजमेंट की पढ़ाई क्लासरूम में नहीं करा सकते। बेहतर यही है कि उन्हें केस स्टडी दी जाए, लाइव प्रोजेक्ट दिए जाएं। उन्हें अधिक से अधिक रीयल वल्र्ड से मुखातिब होने का मौका मिले। युवाओं में किसी विषय को सोचने-देखने का नजरिया डेवलप हो। फैकल्टी की ट्रेनिंग भी बहुत जरूरी है। सरकार को पीएचडी प्रोग्राम, रिसर्च एंड एनालिसिस पर जोर देना होगा। साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट पर फोकस करना चाहिए।
आर्थिक मंदी को लेकर बड़ी चिंता है, आप इसे कैसे देखते हैं?
- देखिए, जब भी कोई बड़ा बदलाव होता है, इकोनॉमी में उतार-चढ़ाव लाजिमी है। अभी जो दौर है, वह इसी की परिणाम है। हाल के दिनों में जीएसटी, एंजेल टैक्स सहित कई ऐसी नई नीतियां आई हैं जो देश में बड़े बदलाव की नींव रख रही हैं। इसलिए इससे घबराने की जरूरत नहीं है और फिर सरकार लगातार इस पर नजर रखे हुए है। यह भी ध्यान रखें कि भारत एक खुली अर्थव्यवस्था वाला देश है। बहुत से देशों के साथ हमारे व्यापारिक संबंध हैं। ऐसे में जब वहां स्थिति खराब होगी, तो उसके असर से आप कैसे बचे रह सकते हैं? वर्तमान में ऐसे ही हालात हैं।
स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसे प्रोग्राम कितने सफल हैं?
- अटल इनोवेशन सेंटर जैसे कई नूतन प्रयास हो रहे हैं। खूब पैसा भी खर्च हो रहा है, लेकिन न तो सही गाइडेंस है न ही जरूरी प्रोत्साहन। प्रशिक्षण की व्यवस्था के साथ-साथ हमें यह भी बताना होगा कि अमुक प्रोजेक्ट को कैसे रफ्तार दी जा सकती है। उसमें किस तरह के बदलाव की जरूरत है? इस दिशा में हम कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहे। ऐसे में क्वांटिटी तो बढ़ रही है पर क्वालिटी नहीं मिल रही। हमने आइआइएम में बिग डाटा एनालिसिस, क्लाउड टेक्नालॉजी, मशीन लर्निंग जैसे कोर्स शुरू किए हैं।