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गोरखपुर का दिनेश समोसा वाला, यहां समोसे से ज्यादा चटनी की मांग- स्वाद के दिवानों की लगती है लाइन

गोरखपुर में धर्मशाला बाजार के दिनेश के समोसे वाले की चर्चा पूरे गोरखपुर में होती है। दिनेश समोसा वाला के नाम से चर्चित पांच दशक इस पुरानी दुकान पर समोसे से ज्यादा मांग उसकी चटनी की होती है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 07:02 AM (IST)Updated: Sun, 22 May 2022 10:49 PM (IST)
गोरखपुर का दिनेश समोसा वाला, यहां समोसे से ज्यादा चटनी की मांग- स्वाद के दिवानों की लगती है लाइन
गोरखपुर के दिनेश समोसे वाले की चर्चा पूरे गोरखपुर में होती है। - फाइल फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। गरम-गरम समोसे का स्वाद हो और खास किस्म की चटनी की मिठास हो। यह जिक्र होते ही दिमाग सीधा धर्मशाला चौराहे पहुंच जाता है। ऐसा हो भी क्यों न, पांच दशक से इस चौराहे की मशहूर समोसे की दुकान खानपान के शौकीन लोगों की जुबां पर राज जो कर रही है। संकरी सी दुकान में कद्रदानों की उमड़ने वाली भीड़ इस बात की गवाह है कि खानपान के इस ठीहे का जलवा आज भी कायम है। आज इस दुकान पर केवल समोसे के शौकीन ही नहीं आते बल्कि यहां कचौड़ी और बालूशाही का स्वाद भी अब लोगों की जुबां पर चढ़ गया है।

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पांच दशक से चली है दुकान

कभी पोले की दुकान के नाम से जाना जाने वाला यह प्रतिष्ठान आज दिनेश समोसा के नाम से लोगों के बीच पहचान बना चुका है। प्रतिष्ठान का संचालन करने वाले दिनेश गुप्ता बताते हैं कि पांच दशक तक उनकी दुकान के समोसे की साख बनी रहने की वजह गुणवत्ता से समझौता नहीं करना है। बिना लहसुन-प्याज का उनका समोसा लोगों को तब भी भाता था और अब भी भाता है। आम की कली से बनी रोस्टेड मीठी चटनी उनके समोसे के स्वाद को दोगुना कर देती है।

यहां की चंटनी की होती है चर्चा

बहुत से लोग तो चटनी की दीवानगी में ही दुकान की ओर खिंचे चले जाते हैं। बिना लहसुन-प्याज का समोसा बनाने की वजह के सवाल पर दिनेश बताते हैं कि शुरुआती दौर में उनके ज्यादातर ग्राहक मारवाड़ी समाज से थे। उनकी डिमांड पर ही लहसुन-प्यास के बना समोसा बनाना शुरू किया। स्वाद पर कोई फर्क नहीं पड़ा तो सिलसिला चल पड़ा, जो आज भी कायम है।

ऐसे बढ़ता गया व्यापार

दिनेश बताते हैं कि दुकान की शुरुआत चाय-लस्सी से हुई, जिसे उनके पिता गोमती प्रसाद बनाते थे। दुकान की कमान जब उन्होंने संभाली तो कारोबार बढ़ाने के क्रम में समोसा और बालूशाही बनाना शुरू किया। लोगों को नया उत्पाद पसंद आया, सो उसी पर फोकस हो गया और दुकान की पहचान चाय-लस्सी की जगह समोसे से होने लगी। छोटे भाई का नाम पोले था, इसलिए पहले प्रतिष्ठान को लोग पोले की दुकान के नाम से पहचानते थे।

भाई का 2015 में निधन हो गया तो दुकान का नाम मेरे नाम पर यानी दिनेश समोसा हो गया। दिनेश के मुताबिक ग्राहकों के मानक पर खरा उतरने की प्रतिबद्धता ही उन्हें खानपान में आए बड़े बदलाव के बावजूद व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा मेें बनाए रखे हुए है।


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