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यहां लोग खुद तोड़ रहे अपना आश‍ियाना, हथौड़े की हर चोट पर छलक रहे आंसू

कहते हैं सब कुछ देखै जात तो आधा लीजिए बांट यही हाल है संतकबीरनगर में सरयू नदी के किनारे पर बसे गायघाट निवासियों का। यहां का मंजर इसी तरह का है। खुद ही लोग अपने घरों पर हथौड़ा चला रहे हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Tue, 09 Nov 2021 06:48 PM (IST)Updated: Wed, 10 Nov 2021 09:10 AM (IST)
यहां लोग खुद तोड़ रहे अपना आश‍ियाना, हथौड़े की हर चोट पर छलक रहे आंसू
खुद ही अपना घर तोड रहे ग्रामीण। जागरण

गोरखपुर, गिरधारी लाल। कहते हैं सब कुछ देखै जात तो आधा लीजिए बांट, यही हाल है संतकबीरनगर में सरयू नदी के किनारे पर बसे गायघाट निवासियों का। यहां का मंजर इसी तरह का है। खुद ही लोग अपने घरों पर हथौड़ा चला रहे हैं। अपना घर टूटता देखकर महिलाएं और बच्चे फूट-फूटकर रोते दिख रहे हैं तो वहीं एक-एक हथौड़ा मारते समय गांव निवासियों के दिल से आंसुओं की चीख निकल रही है।

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कुदरत के कोप से बचने के लिए गिरा रहे घर

दिन में दो बजे जागरण संवाददाता ने गायघाट निवासियों का हाल जानने का प्रयास किया। इंद्रजीत अपने घर को गिराने में लगे मिले। पसीने से तर-बतर हालत में उन्होंने बताया कि साहब मेरे पिता ने यह मकान बनवाया था। अब कुदरत के कोप का शिकार होकर इसे खुद गिराने का कार्य कर रहा हूं। इसी प्रकार संजना देवी ने कहा कि घर को टूटता देखकर भूख-प्यास बंद हो गई है, बच्चे भी रो-रोकर खुद का घर छिनने के साथ ही बचपन के साथियों से दूर जाने की पीड़ा सहन कर रहे हैं।

सरिया, ईंट, फाटक निकालने में जुटे हैं लोग

रमावती ने कहा कि दुल्हन बनकर जिस घर मेंं 30 वर्ष पहले आई आज उसी घर को मिटाकर ईंट और सरिया, फाटक, दरवाजों को निकालने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। इष्टदेव ने कहा कि उनके हाथों का बल ही खत्म हो चुका है। सुबह एक रोटी खाकर सब्बल लेकर वह ईंटों को निकालने में लगे हैं। रोना आ रहा है पर परिवार के लोगों का हाल और भी बुरा हो जाएगा, इसे लेकर अपने दिल में ही वह दर्द को दफन किए हैं। दिलीप ने कहा कि दीवारों पर हथौड़े की चोट का दर्द दिल में महसूस हो रहा है। मजबूर हैं, गंगा मइया के कोप के आगे कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

नहीं थम रही सरयू की कटान, खतरे में गायघाट का अस्तित्व

धनघटा तहसील क्षेत्र में सरयू नदी की कटान थमने का नाम ही नहीं ले रही है। लगभग नौ वर्ष पहले क्षेत्र के आधा दर्जन गांवों को निगलने के बाद अब नदी की धारा गायघाट गांव को चपेट में लेने लगी है। इस बार सरयू नदी का जलस्तर खतरे के निशान को तीन बार पार कर गया। जलस्तर घटने के साथ ही कटान और भी तेज होती गई। बचाव के लिए प्रशासनिक स्तर से प्रयास भी किया जा रहा परंतु सफलता नहीं मिल पा रही है। सरयू की धारा गायघाट गांव में अब मकानों तक पहुंच चुकी है। घर बचने की कोई राह नहीं दिखने पर लोग सुरक्षित ठिकानों पर जाने से पहले अपने घरों को गिराकर ईंट और अन्य सामग्री एकत्र करने में लग गए हैं।

पहले हुए भूमिहीन अब हो गए बेघर

गायघाट निवासी इंद्रजीत, इष्टदेव, नंदू , बुधिराम, सुरेंद्र, दिनेश, गामा आदि ने कहा कि एक वर्ष के अंदर ही उनके खेत नदी की धारा में समा गए, इससे वह लोग भूमिहीन हो गए हैं। अब बाढ़ कम होने के बाद घरों को भी नदी काटने में लगी है। बचाव का कोई रास्ता नहीं होने से अपने घरों को गिराकर बेघर होना पड़ रहा है।

साहब यहीं पैदा होकर बूढ़े हो गए, अब कहां जाएं

गायघाट निवासियों की पीड़ा दर्दनाक है। गांव में पहु्ंचने वाले हर बाहरी व्यक्ति को घेरकर सभी सिर्फ एक सवाल कर रहे हैं कि जिस घर में जन्म लेने के बाद बुढ़ापे तक का सफर तय किया, अब उन्हें कहां ठौर मिलेगा। सभी ने शासन और प्रशासन से उन्हें बसाने की व्यवस्था करने की मांग की।

नौ वर्ष पहले भी सरयू में समा चुके हैं आधा दर्जन गांव

धनघटा क्षेत्र में सरयू की विनाशलीला नई नहीं है। वर्ष 2012 में क्षेत्र के अशरफपुर, भिखारीपुर, सोखापुरवा, चपरा आंशिक, मिस्त्रीपुरवा आदि गांव नदी की धारा में समा गए थे। उस समय कटान रोकने के लिए सरकारी स्तर से जियो ट्यूब आदि भी लगवाया गया था परंतु कोई लाभ नहीं मिल पाया था।

गांव खाली करने का दिया गया है निर्देश

तहसीलदार रत्‍नेश तिवारी ने बताया कि कटान को देखते हुए पहले ही नदी व बांध के बीच स्थित गांवों को खाली करने का निर्देश दिया गया था। गायघाट में कटान रोकने के लिए कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है, ऐसे में गांव को खाली करके सभी को सुरक्षित ठिकानों पर चले जाना चाहिए।


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