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बतकही- थानेदारी का टेंडर ठीकेदार के पास Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से सतीश कुमार पांडेय का साप्‍त‍ाहिक कालम- बतकही...

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 03:01 PM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 03:01 PM (IST)
बतकही- थानेदारी का टेंडर ठीकेदार के पास Gorakhpur News
बतकही- थानेदारी का टेंडर ठीकेदार के पास Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। सरकारी विभागों में करोड़ों का ठीका लेने और मैनेज करने वाले ठीकेदार ने एक थाने का थानाध्यक्ष बनाने का भी टेंडर हासिल कर लिया है। महराजगंज जिले की सीमा से सटे थाने पर इनका जबरदस्त रसूख है। यहां पुलिस कप्तान की बात एक बार कट सकती है, लेकिन ठीकेदार का फरमान टालना किसी के लिए आसान नहीं है। ऐसा हो भी क्यों न। इस थाने में एसओ की तैनाती आदेश पर दस्तखत भले पुलिस अधिकारियों की होती हो, लेकिन मुहर तो ठीकेदार की ही लगती है। महज दो दशक पहले तक दूसरे व्यक्ति की बस-जीप चलाने वाले इस ठीकेदार ने 'मायावीÓ राज में एक मंत्री को ऐसा साधा कि उन्होंने जंगल के रास्ते चंद वर्षों में ही इसे करोड़पति बना दिया। जब आका मंत्री थे, तब तो ठीकेदार की तूती बोलती थी। अब मालिक सिर्फ विधायक हैं तो भी ठीकेदार का मामला भोलेनाथ की कृपा से बम-बम बोल रहा है।

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साहब के दांव से मातहत चित

दक्षिणांचल के एक थानेदार को उनके इलाकाई साहब ने ऐसी लंगड़ी मारी कि मातहत संभलने से पहले ही चारो खाना चित हो गए। मातहत का दोष बस इतना था कि वह शिकायतों का निपटारा गुण-दोष के आधार पर करना चाहते थे, जबकि साहब परिचय और भाई-भतीजावाद के पैरामीटर पर इसका निस्तारण चाहते थे। साहब की तीन-चार सिफारिशों को मानने में मातहत ने असमर्थता जता दी तो अफसर ने उन्हें सबक सिखाने का नायाब रास्ता ढंूढ निकाला। सारे फरियादियों की परेड प्रदेश के मुखिया के समक्ष करा दी। एक ही थाने की एक के बाद एक शिकायतें सामने आने लगीं तो मुखिया का नाराज होना लाजिमी था। उनके मुंह से निकला एक-एक शब्द शासनादेश होता है, सो इस पर अमल में देरी का तो प्रश्न ही नहीं उठता। साहब की गणित में उलझे मातहत चित तो हुए ही, निलंबित भी हो गए। महकमे में इस बात की चर्चा जोरो पर है।

अपुन को बस दलाल मांगता

शहर की पुरानी और प्रशासनिक अधिकारियों वाली पॉश कालोनी के पुलिसिया मुखबिर नए साहब से परेशान हैं। अब तक चोर-उचक्कों, मनचलों की रेकी और सूचनाएं रखने वाला मुखबिर तंत्र अचानक एकदम से खाली हो गया है। दरअसल साहब को बदमाश, जेब कतरे और लुटेरे नहीं पकडऩे। उन्हें तो बस दलाल चाहिए। वह भी सरकारी अस्पताल और नर्सिंग होम के। दारोगा जी न केवल अपनी बल्कि सिपाहियों और मुखबिर की पूरी ऊर्जा उन दलालों को पकडऩे में लगा रहे हैं, जो अस्पतालों से मरीजों को नर्सिंग होम या जांच सेंटरों पर ले जाते हैं। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, इसकी वजह उन्होंने अपने खास कारिंदे से बताई। अपराध नहीं होगा तो क्या हम कोई काम भी नहीं करेंगे। दलालों की कमाई जबरदस्त है। रोजाना हजारों रुपये पीट रहे हैं। ऐसे में हमारा चुपचाप बैठना ठीक नहीं है। दारोगा की मंशा जानने के बाद मातहत भी तलाश में जुट गए हैं।

किरकिरी होने पर वांटेड को पकड़ा

दो साल से फरार चल रहे गैरइरादतन हत्या के आरोपित को पीडि़त के रिश्तेदारों ने चार दिन पहले शहर में पकड़ लिया। शोर-शराबा मचने पर पुलिस पहुंची। वांटेड के पकड़े जाने की खबर पर इलाके के चौकी प्रभारी भी पहुंच गए और आरोपित को थाने उठा लाए। फोन से इसकी जानकारी सीओ और थानेदार को दी। कार्रवाई शुरू होती इससे पहले एक एडिशनल एसपी का फोन आ गया। फोन कटते ही पुलिस बैकफुट पर आ गई। दो साल से जिसकी सरगर्मी से तलाश चल रही थी उसे बाइज्जत छोड़ दिया गया। समाचार पत्रों में यह खबर प्रकाशित हुई। आरोपित को दौड़ाकर पकडऩे वाले लोग फरियाद लेकर महकमे के आला अधिकारी के पास पहुंचे। उन्होंने जांच कराई तो आरोपित को थाने से छोडऩे की बात सच साबित हुई। साहब के फटकार लगाने पर थानेदार ने आरोपित को गिरफ्तार कर लिया। इससे वह साहब खासा परेशान हैं, जिन्होंने थाने से छुड़ाया था।


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