हाल बेहाल - चाचा को पिलानी ही पड़ी कॉफी Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्ताहिक कॉलम..
गोरखपुर, जेएनएन। मजबूत डीलडौल वाले साफ-सफाई महकमे के छोटे माननीय भीड़ में भी अपना काम कराने के लिए जूझते रहते हैं। यह इनकी खास पहचान है। जिस अफसर के पास पहुंचे, तय है कि काम की लंबी लिस्ट सामने रखेंगे। लेकिन इन माननीय की एक और पहचान भी है। यह दूसरे माननीयों के मुंहबोले चाचा भी हैं। चाचा इसलिए बोले जाते हैं क्योंकि यही वह शब्द है जिसे बोलकर इन्हें भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया जा सकता है। एक दिन कुछ काम से एक अफसर के पास पहुंचे। वहां एक और माननीय और कुछ अफसर पहले से ही मौजूद थे। देखते ही चाचा-चाचा बोलकर रुपये मांगने लगे। चाचा ने उन्हें झिड़कना शुरू कर दिया। चाचा भारी भी पड़ रहे थे कि इसी बीच एक अफसर ने भी चाचा बोल दिया। अब तो ना की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। चाचा ने कॉफी का तो ऑर्डर दिया ही, नमकीन भी मंगाई।
टी सिरीज से ना टकराना रे
साफ-सफाई वाले महकमे में इन दिनों टी सिरीज की तूती बोल रही है। काम कोई भी हो, टी सिरीज ने हाथ डाला तो गारंटी लेकिन यदि गलती से किसी ने दूसरी लाइन पकड़ ली तो काम भूल जाइए, बेइज्जत अलग से होंगे। अक्लमंद पहले ही टी सिरीज के पास पहुंचते हैं। महकमे में हाल-फिलहाल सेकंड मैन की भूमिका पाने वाले माननीय को कई मोर्चों के साथ टी सिरीज के सिंडीकेट से भी जूझना पड़ रहा है। माननीय अपनी वाली करने के लिए कसमसा रहे हैं पर कोई तीर निशाने पर नहीं लग रहा है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि कभी भी विस्फोटक स्थिति बन सकती है। टी सिरीज में एक साहब वह भी हैं जिनके बिना अफसर खुद को असहाय मानते हैं। हर ताले की चाबी बने यह साहब खटक तो सबको रहे हैं लेकिन टी सिरीज के प्रभाव में कोई कुछ कर नहीं पा रहा है।
शातिर अपराधी और अफसर की परिभाषा
क्या आप शातिर अपराधी और शातिर अफसर की परिभाषा बता सकते हैं। आपसे यह सवाल पूछा जा सकता है कि शातिर अपराधी और शातिर अफसर में क्या समानता है। दिमाग चकरघिन्नी बन जाएगा लेकिन जवाब नहीं सूझेगा। वजह कहां अपराधी और कहां अफसर लेकिन साफ-सफाई वाले महकमे ने दोनों में समानता की परिभाषा बता ही दी। कुछ अफसर बैठे थे। आपस में चर्चा चल रही थी। अचानक एक साहब के हमेशा शांत रहने पर बात चलने लगी। कोई इसे साहब का स्वभाव बता रहा था तो कोई इसे काम के दबाव से जोड़ते हुए उनका गुणगान कर रहा था। तभी एक साहब सवाल पूछ पड़े, 'शातिर अपराधी को कभी आपने आपा खोते हुए देखा है।' दूसरों ने जवाब दिया, 'अब तक तो नहीं।' सवाल पूछने वाले साहब और उत्साहित हुए और बोले यही जवाब अफसर पर भी लागू होता है। यानी शातिर अफसर और शातिर अपराधी हमेशा कूल रहते हैं।
मैं तो अकेला रहा गया था
महकमा कोई भी हो, अफसर हों या कर्मचारी जैसे ही बिना सुरक्षाकर्मी चलने वाले माननीय का नाम सुनते हैं परेशान हो जाते हैं। परेशान होने की वजह भी है। माननीय कब किसको किस तरह अपनी बातों से रगड़ दें कहा नहीं जा सकता। पिछले दिनों उन्होंने कुछ अफसरों को ऐसा रगड़ा था कि वह छुट्टी पर चले गए थे। माननीय ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा और राजधानी तक ऐसा माहौल बना दिया कि अफसरों को काम पर लौटना पड़ा। हाल ही में माननीय को जलभराव वाली कॉलोनी का निरीक्षण करना था। शिकायत महिलाओं ने की थी। साफ-सफाई वाले महकमे के एक साहब को उनके साथ लगा दिया गया। माननीय जब बोलने लगे तो और लोग पीछे से खिसकने लगे। साहब किसी तरह हां-हां कर वापस आए। कुर्सी पर बैठकर लंबी सांस खींची फिर बोले, मैं तो अकेला रह गया था, फिर भी शुक्र है कि कुछ नहीं हुआ।