कसौटी-ऑनलाइन के चक्कर में बन रहे 'घनचक्कर Gorakhpur News
पढ़ें- गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्ताहिक कालम-कसौटी---
गोरखपुर, जेएनएन। शहर में विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग से आजकल लोग परेशान हैं। परेशानी भवन निर्माण को लेकर है। शहर के बड़े क्षेत्र में मकान बनाने की अनुमति पहले से ही प्रतिबंधित है, जहां मिल सकती है, वहां भी 'आधुनिकता के चक्कर में मामला फंसा है। निर्माण के लिए विभाग की सहमति लेने को अब ऑनलाइन आवेदन करना होता है। ऑनलाइन ही आवेदन को पास और निरस्त करने का प्रावधान है। इस प्रक्रिया को और सुलभ बनाने के लिए हाल ही में सॉफ्टवेयर में बदलाव किया गया, लेकिन फिलहाल इससे सुविधा कम समस्या अधिक हो रही है। लोग आवेदन कर रहे हैं पर अनुमति पाने में कामयाब नहीं हो रहे। अधिक संवेदनशील क्षेत्र में अधिकार पाने के लिए आवेदन स्वीकार ही नहीं हो रहे। ऐसे में आवेदक ऑनलाइन व्यवस्था के चक्कर में 'घनचक्करÓ बनकर घूमने को मजबूर हैं। वे इस व्यवस्था को कोस कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
ये क्या बात होती है साहब?
शहर में सुनियोजित विकास पर निगरानी रखने वाले विभाग के एक साहब कुछ दुखी चल रहे हैं। नियम विरुद्ध निर्माण और उपयोग करने वालों पर कार्रवाई करने में ये हमेशा आगे रहे हैं। कार्रवाई के दौरान मार-पिटाई की नौबत आए तब भी मौके से डिगते नहीं, पर आजकल अपने ही विभाग की व्यवस्था ने उनके दिल पर गहरी चोट पहुंचाई है। वाकया कुछ यूं है किसाहब को एक शिकायत मिली थी, जिसमें उनके कार्यालय के कुछ दूरी पर हुए एक आवासीय निर्माण के व्यवसायिक उपयोग की बात कही गई थी। शिकायत पर हरकत में आए साहब ने व्यवसाय पर बंदी की मुहर लगा दी, पर भवन का मालिक भी धाकड़ निकला, बवाल करा दिया। मामला बड़े साहब तक पहुंचा, उन्होंने इस तरह से कार्रवाई पर नाराजगी जताई। अब कार्रवाई करने वाले साहब दुखी होकर कह रहे हैं 'ईमानदारी से काम करो और नाराजगी झेलो....ये क्या बात होती है साहब?
चर्चा में बड़े साहब की 'परछाई
'पॉवर सप्लाई वाले विभाग के एक बड़े साहब अपनी 'परछाईÓ को लेकर चर्चा में है। यह धूप या प्रकाश से उपजी परछाई नहीं बल्कि उनके खासमखास आदमी की बात है। विभाग के ऑफिस में साहब का कमरा हो या उनकी गाड़ी, 'परछाई अधिकतर समय उनके साथ नजर आती है। मातहतों के बीच तो काफी पहले से यह बात चर्चा में है, लेकिन किसी काम से कार्यालय जाने वाले बाहरी लोग भी अब इस नजदीकी को समझने लगे हैं। साहब से उनकी 'परछाई की बातचीत का अंदाज भी कुछ ऐसा है कि सुनने वाला हर आदमी उसके बारे में जानना चाहता है। लोगों की पड़ताल में सामने आया कि इस खास व्यक्ति की रोजी-रोटी विभाग से ही चलती है। साहब से नजदीकी के चलते अब उनके मातहत भी उससे बेहतर संबंध रखने में ही भलाई समझ रहे हैं। कभी मिलने पर उसकी तारीफों के पुल बांधने में पीछे नहीं रह रहे।
दूसरों को ऐसे बीमार तो न करिए
शहर में सुनियोजित तरीके से विकसित कई कॉलोनियों में वर्षों से खाली पड़े प्लॉट दिख जाते हैं। गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने भी कई कॉलोनियां विकसित की हैं। प्लॉट आवंटन कराने के बाद कुछ लोगों ने भवन का निर्माण करा लिया है लेकिन कई ने व्यवसायिक दृष्टि से जमीन खाली छोड़ दी है। कई गुना अधिक लाभ की लालसा में आवंटन से अब तक जस के तस छोड़े गए प्लॉटों में वर्षभर या तो गंदा पानी भरा रहता है या झाडिय़ां उगी होती हैं। गंदगी के कारण आसपास के लोगों पर बीमारी का खतरा मंडराता रहता है। पड़ोसी प्राधिकरण में शिकायत करते रहते हैं, लेकिन राहत नहीं मिलती। ऐसे में प्लॉट मालिकों को भी जिम्मेदारी समझनी होगी कि उनके फायदे की कोशिश में दूसरे बीमार न हों। यह इसलिए भी जरूरी है कि पड़ोसी खड़ा हो गया तो उसे नुकसान पहुंचाने की आशंका में मुकदमा भी दर्ज हो सकता है।