गो-सेवा आयोग के अध्यक्ष ने कहा-भारतीय संस्कृति की प्राण है गाय Gorakhpur News
गोरखनाथ मंदिर में महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ के पुण्यतिथि समारोह में आयोजित संगोष्ठी का पांचवां दिन।
गोरखपुर, जेएनएन। उत्तर प्रदेश गो-सेवा आयोग के अध्यक्ष श्यामनंदन सिंह ने कहा है आज जब दुनिया के बहुत से देश अपनी संस्कृति को भुलाते जा रहे हैं और भारतीय संस्कृति करीब 1200 वर्षों के संघर्ष के बाद भी कायम है तो इसके मूल में कहीं न कहीं गाय है। गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। प्राचीन काल से ही गाय भारतीय संस्कृति व परंपरा का मूलाधार रही है। श्यामनंदन सिंह शुक्रवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व अवेद्यनाथ के सात दिवसीय पुण्यतिथि समारोह के पांचवें दिन गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। भारतीय संस्कृति एवं गो-सेवा विषय पर संगोष्ठी में हुआ मंथन
भारतीय संस्कृति एवं गो-सेवा विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता ने गाय के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गंगा, गोमती, गीता, गोविंद की भांति शास्त्रों में गाय भी अत्यंत पवित्र मानी गई है। गोपालन व गो-सेवा तथा गोदान की हमारी संस्कृति में महान परंपरा रही है। गो-सेवा भी सुख व समृद्धि का एक मार्ग है। वेद-पुराण, स्मृतियां सभी गो-सेवा की उत्कृष्टता से ओत-प्रोत हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थों का साधन भी गौमाता ही रही हैं। दरअसल भारत की संस्कृति मूल रूप से गो-संस्कृति कही जाती है। ऋग्वेद का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि गाय श्रद्धा के साथ-साथ हमारी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है।
गो-सेवा आयोग का गठन भी इसी सरकार की देन
गीता प्रेस के उत्पाद प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी ने भी बतौर विशिष्ट वक्ता ऋग्वेद की उन ऋचाओं का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि जिस स्थल पर गाय का निवास होता है, वह स्थल तीर्थस्थल बन जाता है। डॉ. तिवारी ने महामना मदन मोहन मालवीय के उस वक्तव्य की भी चर्चा की, जिसमें उन्होंने गाय को मानव मात्र के लिए पूज्यनीय और वंदनीय बताया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान प्रदेश सरकार ने गो-रक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाया है। गो-सेवा आयोग का गठन भी इसी सरकार की देन है।
अध्यक्षीय संबोधन में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि यह प्रसन्नता का विषय है कि गोरक्षपीठ जिस गोरक्षा के विशेष उद्देश्य के लिए स्थापित हुई थी, उसे लेकर निरंतर आगे बढ़ रही है। संगोष्ठी में गो-सेवक वरुण वर्मा वैरागी ने अपनी कविता तैंतीस कोटि देवताओं की वंदनीय गो-माता है का सस्वर गायन कर गाय की महत्ता बताई। इस दौरान गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, देवीपाटन शक्तिपीठ के महंत मिथिलेशनाथ, डॉ. प्रदीप राव, डॉ. शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ. अरुण प्रताप सिंह, विनय गौतम, डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी आदि मौजूद रहे। संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
देश को विश्वगुरु बनाने के लिए करें गो-सेवा
दिगम्बर अखाड़ा अयोध्या के महंत सुरेश दास ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए चार वस्तुओं की आवश्यकता होती है- शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात व संस्कृति। यही वजह है कि गोरखनाथ मंदिर में शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति पर विशेष ध्यान दिया गया है। गो-सेवा को संस्कृति का आधार बताते हुए सुरेश दास ने कहा कि जिस दिन हम गो-सेवा को अपना पहला कर्तव्य मान लेंगे, उसी दिन देश का विश्वगुरु के पद पर फिर से स्थापित होना तय हो जाएगा।