कोरोना ने बदल दी दुकानदार की जिंदगी, ग्राहकों से बने संबंध
लाकडाउन के दौरान प्रमोशन के लिए फेसबुक इंस्टाग्राम और वाट्सएप का प्रयोग किया गया। ग्राहकों को उपलब्ध सामानों की सूची भेजी गई। आर्डर पर पहले से ही ग्राहकों का सामान पैक कर दुकान में रखवा देते थे। इससे दोनो का संबंध भी बना रहा।
सिद्धार्थनगर, जेएनएन। जीवन में सफलता की गारंटी तब होती है जब कोई संघर्ष करता है। पढ़ाई लिखाई के साथ तकनीकी ज्ञान भी आज समय की जरूरत है। नई तकनीक की मदद से श्रीकृष्ण चौरसिया ने मुश्किल वक्त में भी ग्राहकों से संवाद बनाए रखा। ग्राहकों ने भी हौसला दिया। इसका असर रहा कि कोरोना काल में भी व्यवसाय ठप नहीं हुआ। डिजिटल निर्भरता बढ़ी है। डिजिटल लेनदेन का प्रसार अभी तक प्रत्येक व्यक्ति तक नहीं होने से भी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार तो नुकसान भी उठाना पड़ता है।
प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर करने के लिए लीक से हटकर चलना पड़ता है। यदि कोई व्यवसाय कर रहा है तो अब बिना तकनीक के सफलता शायद ही पास आए। तकनीक है तो बेफिक्र होकर काम करें। ग्राहकों की कमी नहीं है। अब आपके पास ग्राहकों के परखने का आइडिया होना चाहिए। ग्राहक क्या चाहता है। उसकी पसंद क्या है, इसे आपको देखना ही होगा। इन्हीं सब तकनीक के बदौलत चौरसिया के व्यवसाय का पहिया लाकडाउन से अनलाक पांच तक घूम रहा है। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद नौकरी नहीं मिली तो चौरसिया ने किराने की दुकान खोल ली। आज उनके पास मकान, गाड़ी आदि सुविधाएं सब कुछ मौजूद हैं। मौजूदा संसाधनों का उपयोग कर के ही कारोबार को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे है। इसके लिए ग्राहकों व भीड की पंसद के बारे में जानकारी जुटाकर आगे की रणनीति तय कर कार्ययोजना बनाकर काम करने की तैयारी है। जिससे कि कारोबार को आसान बनाने के साथ ही फायदेमंद बनाया जा सके।
उनका कहना है कि लाकडाउन के दौरान गूगल पे के इस्तेमाल से कारोबार जारी रखा, जरूरतमंद वाह्सएप के माध्यम से अपनी मांग भेजते जिसके आधार पर ही उनकी जरूरत का सामान उनके घर पर पहुंचा दिया जाता था। बदले में वह गूगल पे, पे फोन व अन्य आनलाइन माध्यमों से पैसा भेज देते थे। इससे जीवन की गाड़ी जैसे तैसे चलती रही। इतना ही नहीं पैसा जमा करने भी बैंक नहीं पड़ा। क्योंकि कुछ लोगों को कैस भी जरूरत पड़ती ऐसे जो कैस होता उसे आनलाइन ट्रांसफर कर जरूरतमंद को कैस दे दिया जाता। तकनीकी का इस्तेमाल कर कारोबार को बढ़ाने का उपाय भी इस दौरान सूझा। जिसका उपयोग अभी भी किया जा रहा है। हर के क्षेत्र के लोगों को तकनीकी का इस्तेमाल करना चाहिए। लाकडाउन के दौरान जिसने भी तकनीकी का इस्तेमाल किया, उसे लाकडाउन प्रभावित नहीं कर सका।
सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा साझा किए जाने वाले उनके अनुभवों के आधार पर ही ग्राहकों को उनकी जरूरत के आधार पर प्लान बनाकर कार्य करने की जरूरत को बढ़ावा मिला। इससे दुकानदारों को भी नए आइडिया आए जिसके सहारे ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने में काफी आसानी हुई। इसे कायम रखते हुए आज कारोबार को बढ़ाना पड़ रहा है। लाकडाउन में जिसने भी थोडी समझदारी के साथ तकनीकी का सहारा लिया वह निश्चित ही आगे बढ़ा। बिना संघर्ष के कुछ हासिल नहीं हो सकता है, ऐसे में आगे बढऩे के लिए संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। उन्होंने कहा कि लाकडाउन में कुछ ऐसा ही किया। जिसका परिणाम है कि अब वाट्एसप पर डिमांड लेना व लोगों के घरों तक सामान पहुंचाना आसान लगता है।
सोशल मीडिया से मिली मदद
लाकडाउन के दौरान प्रमोशन के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप का प्रयोग किया गया। ग्राहकों को उपलब्ध सामानों की सूची भेजी गई। आर्डर पर पहले से ही ग्राहकों का सामान पैक कर दुकान में रखवा देते थे। जब ग्राहक आते थे, सामान लेकर जाते हैं। पैसे का भुगतान नकद या वायलेट पर करते हैं। चौरसिया कहते हैं कि लाकडाउन के दौरान समाजसेवियों बहुत फोन आए। रोज शाम को भाजपा जिलाध्यक्ष गोविंद माधव, समाजसेवी राजन द्विवेदी, समाजसेवी देवेश मणि त्रिपाठी सामानों की लिस्ट दे देते थे, रात में घर-परिवार मिलकर झोले में सामग्री भरता था। काम बढ़ा था और जज्बा भी। परिवार के बच्चों में भी उत्साह था। उत्साह इसे लेकर था कि चलिए इस समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो गरीबों के मददगार न हों। खरीद रेट पर मैंने इन्हें सामग्री मुहैया कराई। कमाई के बारे में नहीं सोचा। क्योंकि मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता