अवाइड मत करिए, आपके बच्चे हो रहे बहरेपर के शिकार, अब ऊंची आवाज में ही सुनते हैं बात Gorakhpur News
ध्वनि प्रदूषण का मासूमों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे अक्सर पटाखों के करीब रहते हैं। पटाखों से निकलने वाली ध्वनि सीधे उनके कान में पहुंचती है।
गोरखपुर, जेएनएन। स्कूल में बच्चों का शोर, रास्ते में गाडि़यों का शोर और समय-समय पर पटाखों के शोर के कारण बच्चे धीमी आवाज नहीं सुन पा रहे हैं। यह कुछ और नहीं बहरेपन की निशानी है। अभी सचेत हो जाइए, अन्यथा पछताना पड़ेगा। लगातार ध्वनि प्रदूषण बच्चों के अति नाजुक कान के पर्दे पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। दीपावली में पटाखों का धमाल सेहत पर भारी पड़ सकता है। सिलसिलेवार तेज धमाका होने से ध्वनि प्रदूषण तो बढ़ ही जाता है। कभी-कभी तो पटाखों की गूंज श्रवण शक्ति को भी बाधित कर देती है। तीव्र ध्वनि के पटाखों से परहेज ही समझदारी है।
सबसे ज्यादा असर बच्चों पर
ध्वनि प्रदूषण का मासूमों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे अक्सर पटाखों के करीब रहते हैं। पटाखों से निकलने वाली ध्वनि सीधे उनके कान में पहुंचती है। तीव्रता अधिक होने पर कान के परदे पर बल पड़ता है। ऐसे में तेज धमाका वाले पटाखे बच्चों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होता है। यद्यपि सभी के कान के पर्दे काेमल होते हैं पर बच्चों के कान के पर्दे काफी नाजुक होते हैं। इसलिए इससे बच्चों को बचना बहुत जरूरी है। छोटे बच्चे ध्वनि की अत्यधिक तीव्रता के शिकार बन जाते हैं। तेज ध्वनि कान के परदे से सीधे टकराती है तो उनके कान का परदा फट सकता है। वह बहरेपन का शिकार हो सकते हैं।
ध्वनि का असर मस्तिष्क पर भी
निश्चित पैरामीटर के ध्वनि में निर्मित पटाखों का उपयोग होना चाहिए। अक्सर पटाखों की गूंज से दुर्घटना का लोग शिकार बनते हैं। इस बार दीपावली में पटाखों की जगह सजावट, फूलों की वर्षा एवं अन्य इंतजाम किए जाएं। पटाखों के तेज धमाकों से अचानक ध्वनि प्रदूषण बढ़ जाता है। श्रवण शक्ति कमजोर होती है। यदि इससे बच गए तो तीव्र ध्वनि मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है। फुसफुसाहट वाली आवाज 30 डेसिबिल में होती है। सामान्य बातचीत हम 60 डेसिबिल की ध्वनि में करते हैं। जब किसी को तेज आवाज में डांटते हैं तो अमूमन यह 90 डेसिबिल की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके बाद 130 डेसिबिल तीव्रता वाली ध्वनि कान में दर्द पैदा कर देती है। इससे अधिक तीव्रता की ध्वनि से कान का परदा फट जाता है।