कोरोना में कारोबारा छूटा तो सब्जी की खेती को बनाया रोजगार का जरिया Gorakhpur News
सिद्धार्थनगर जिले के गागापुर निवासी जर्रार अली ने मुंबई जाकर समु्द्र से मछली लाकर उसे बेचने का कारोबार शुरू किया था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। तभी पिछले वर्ष कोरोना के चलते पूरे देश में लाकडाउन लग गया।
राज शुक्ला, गोरखपुर : सिद्धार्थनगर जिले के गागापुर निवासी जर्रार अली ने मुंबई जाकर समु्द्र से मछली लाकर उसे बेचने का कारोबार शुरू किया था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। तभी पिछले वर्ष कोरोना के चलते पूरे देश में लाकडाउन लग गया। मुंबई से वापस अपने गांव आए। परंपरागत खेती से अलग हटकर दो बीघा में टमाटर, तरोई, भिंडी, करेला, मिर्च, लौकी आदि सब्जी की खेती शुरू की। एक वर्ष में सब्जी की खेती उनके रोजगार का जरिया बन चुकी है।
तारकेश्वर व जरार ने साथ शुरू की खेती
गांव के ही स्नातक पास तारकेश्वर शुक्ला व जरार अली सारथी बने और उन्हें के खेत में एक साथ खेती प्रारंभ की। मौसम के हिसाब से तरबूज व खरबूज भी उगाने लगे। थोड़े खेत व कम लागत में यह अब बेहतर रोजगार साबित होने लगा है। इन दोनों की एक वर्ष में आमदनी दो लाख तक पहुंच गई। सब्जियां गांव के अलावा भनवापुर, इटवा, बिस्कोहर की मंडियों में भी जाने लगी हैं। खेती से लाभ देखकर केदारनाथ, नूर मुहम्मद, शमशेर, हमजा आदि किसान भी प्रभावित हुए। यह लोग भी परंपरागत खेती से अलग हटकर एक से दो बीघे के खेत में सब्जी की खेती करना शुरू कर चुके हैं।
लाकडाउन से बन गई थी बेरोजगारी की स्थिति
किसान जर्रार अली ने कहा कि मुंबई में मछली बेचने का छोटा-मोटा कारोबार ठीक-ठाक चल रहा था। लाकडाउन लगा तो बेरोजगारी की स्थिति बन गई। गांव लौट आए तो फिर अपने खेत में सब्जी की खेती शुरू की। एक वर्ष में अच्छा मुनाफा हुआ। इधर बढ़ते कोरोना के चलते व्यवसाय पर थोड़ा असर जरूरी पड़ा है, फिर भी आमदनी संतोषजनक हो रही है। किसान तारकेश्वर शुक्ल ने कहा कि कोरोना संक्रमण में दूसरे शहरों में जाकर रोजगार के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती है। परंतु अपने गांव व घर में इस प्रकार की खेती से न सिर्फ सुरक्षित रहा जा सकता है, बल्कि आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं। कम लागत में बेहतर रोजगार है यह, दूसरे किसान भी इससे जुड़कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।