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ब्रजेश के ढ़‍िगरी मशरूम की बाजार में है धाक, डेढ़ साल पहले शुरू किया था काम Gorakhpur News

संतकबीर नगर जिले के मेंहदावल ब्लाक के ग्राम तुलसीपुर निवासी ब्रजेश साहनी के ढ़‍िगरी नस्ल के मशरूम की धाक जम चुकी है। तीन वर्ष पहले देवरिया के बीआरडी पीजी कालेज से बीएससी कृषि की डिग्री प्राप्त करने के बाद ब्रजेश वर्तमान में बीटीसी कर रहे हैं।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 03:10 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 03:10 PM (IST)
ब्रजेश के ढ़‍िगरी मशरूम की बाजार में है धाक, डेढ़ साल पहले शुरू किया था काम  Gorakhpur News
तुलसीपुर गांव में उगी मशरूम की फसल । जागरण

गिरिजेश पति त्रिपाठी, गोरखपुर : कुछ करने का जज्बा हो तो किसी कार्य को करने के लिए हर स्तर से सहयोग मिलने ही लगता है। यही हाल है संतकबीर नगर जिले के मेंहदावल ब्लाक के ग्राम तुलसीपुर निवासी ब्रजेश साहनी का। इस समय जनपद के बाजारों में उनके ढ़‍िगरी नस्ल के मशरूम की धाक जम चुकी है। तीन वर्ष पहले देवरिया के बीआरडी पीजी कालेज से बीएससी कृषि की डिग्री प्राप्त करने के बाद ब्रजेश वर्तमान में बीटीसी कर रहे हैं। शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षण के दौरान उनके मन में खुद का कारोबार करने की सूझी। डेढ़ वर्ष पहले उन्होंने मशरूम का उत्पादन शुरू कर दिया, इसमें उन्होंने सबसे उम्दा प्रजाति उगाने का निर्णय लिया।

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पौष्टिकता में उत्तम, सुखाकर भी रखने में समस्या नहीं

ब्रजेश बताते हैं कि ढ़‍िगरी प्रजाति की मशरूम सबसे अधिक पौष्टिक होती है। इसका वानस्पतिक नाम फ्लोरिडा तेजस है। इसे सुखाकर भी लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है।

घर से आकर खरीद ले जाते हैं लोग

एक के बाद एक करके जानकारी फैलने के बाद अब तो लोग उनके घर पर आकर ही मशरूम खरीद ले जाते हैं। दो सौ रुपये प्रति किग्रा के भाव से वह बिक्री करते हैं। इससे लगभग 40 हजार रुपये महीने में आमदनी करके वह न सिर्फ अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, बल्कि परिवार को भी सहयोग कर रहे हैं।

बीएससी करने के दौरान लिया प्रशिक्षण

देवरिया में कृषि से बीएससी करने के दौरान ब्रजेश ने मशरूम उगाने का प्रशिक्षण लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनके मन में अपने स्तर से कारोबार करने का विचार आया। उनके पिता मजदूरी करते हैं।

छप्पर डालकर घर के पीछे उगाते हैं मशरूम

मशरूम उगाने के लिए ब्रजेश गेहूं व सरसों के भूसा के साथ ही पराली का प्रयोग करते हैं। इसे बोरी में भरकर मशरूम का कल्चर डाल देते हैं । एक बार बोरी में बनाया गया पैड लगभग सात बार उत्पादन के लिए उपयुक्त रहता है। मेंहदावल के ही एक महाविद्यालय में वह बीटीसी का प्रशिक्षण लेने के साथ सुबह-शाम घर के पीछे अपनी मशरूम की खेती का देखभाल भी कर लेते हैं। हर दिन उनके यहां से औसतन 30 किग्रा मशरूम की बिक्री होती है।

पर्यावरण सुरक्षा में भी दे रहे सहयोग

मशरूम उगाने के लिए भूसे का बनाया गया पैड खराब होने के बाद पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। वह धान की पराली व गेहूं आदि के भूसे को खरीदकर स्टाक कर लेते हैं। इससे पराली जलाने से पर्यावरण की क्षति भी रूकती है।

आधा दर्जन युवकों ने शुरू की खेती

ब्रजेश की प्रेरणा से मेंहदावल के नवदरी निवासी जितेंद्र, बेलौली के अनिल, बघौली ब्लाक के गोविंद चौधरी, मेंहदावल कस्बे के सर्वेश मणि त्रिपाठी आदि भी मशरूम उगा रहे हैं।

किसान गोष्ठी में अधिकारियों ने की सराहना

चार दिन पूर्व जिले के हर विकास खंडों में किसान गोष्ठी हुई। इसमें खलीलाबाद ब्लाक पर आयोजित प्रदर्शनी में ब्रजेश के मशरूम को देखकर जिलाधिकारी दिव्या मित्तल समेत अनेक अधिकारियों ने सराहना की।


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