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अब और चमकदार होंगी गीताप्रेस की पुस्तकें

धार्मिक पुस्‍तकों की गुणवत्‍ता सुधारने के लिए गीता प्रेस ने नई मशीनों को मंगाया है। अब यहां की किताबें और चमकदार होंगी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 01:47 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 01:47 PM (IST)
अब और चमकदार होंगी गीताप्रेस की पुस्तकें

गोरखपुर, (गजाधर द्विवेदी)।  समय के साथ गीताप्रेस नई टेक्नोलॉजी से समृद्ध होता जा रहा है। पहले यहां ज्यादातर कार्य मैनुअल होते थे। अब लगभग सभी कार्यों के लिए अत्याधुनिक मशीनें आ गई हैं। पिछले दो साल में 14 करोड़ प्रोजेक्ट कास्ट की बाइंडिंग मशीन, 2.75 करोड़ की चार कलर छपाई मशीन, 40 लाख की गैदरिंग मशीन, 50 लाख की प्लेट बनाने वाली मशीनें आ चुकी हैं। इससे किताबों का उत्पादन व गुणवत्ता दोनों बेहतर होनी है। अब जर्मनी से 1.75 करोड़ की सिलाई मशीन आ रही है। पिछले दो साल में कुल मिलाकर गीताप्रेस ने लगभग 19 करोड़ का निवेश अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी पर किया है।

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गीताप्रेस ने अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ खड़ा होकर और दो साल में बड़ा निवेश करके उस अफवाह पर विराम लगा दिया है कि अब गीताप्रेस बंद होने के कगार पर है। जिस समय यह अफवाह उड़ी थी, उसी समय दिसंबर 2016 में 14 करोड़ के प्रोजेक्ट कास्ट की बाइंडिंग मशीन मंगाकर गीताप्रेस ने यह संदेश दे दिया था कि गीताप्रेस किसी तरह के वित्तीय संकट में नहीं है। इसके बाद क्रमश: जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी अपडेट होती गई, गीताप्रेस मशीनें मंगाता रहा। पिछली जनवरी में 2.75 करोड़ की छपाई मशीन जापान से और जुलाई में 40 लाख की गैदङ्क्षरग मशीन दिल्ली से मंगाई गई।

गीताप्रेस पुस्तकों की बेहतर सिलाई के लिए जर्मनी से 1.75 करोड़ की एक और मशीन मंगा रहा है। मशीन जर्मनी से 10 सितंबर को चल चुकी है, 16 अक्टूबर को कानपुर पहुंचेगी। अक्टूबर के अंत तक उसके गोरखपुर पहुंचने की संभावना है। एक दूसरी प्लेट बनाने वाली मशीन इसी माह गीताप्रेस पहुंची है जिसकी पेटी अभी खुली नहीं है। इसकी कीमत 35 लाख रुपये है।

1923 में हुई गीताप्रेस की स्थापना

गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की कहानी बड़ी रोचक व प्रेरित करने वाली है। लगभग 1921 में कोलकाता में सेठजी जयदयाल गोयंदका ने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे। शुद्धतम गीता के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस क्यों नहीं लगा लेते? गोयंदका ने इसे भगवान का आदेश मानकर इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। 1923 में उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लेकर वहीं से गीता का प्रकाशन शुरू कराया गया। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में धार्मिक पुस्तकों को पहुंचाने के लिए गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीता प्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था।

गीताप्रेस के प्रमुख प्रकाशन

- श्रीमद्भगवद्गीता

- श्रीरामचरितमानस

- श्रीमद्भागवत पुराण

- शिव पुराण

- कल्याण (मासिक पत्रिका)

नई टेक्‍नोलाॅजी को महत्‍व

गीताप्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य पुस्तकों की गुणवत्ता सुधारना तथा समय व वेस्टेज बचाना है। गीताप्रेस सदैव नई टेक्नोलॉजी को महत्व देता रहा है। हर विभाग में नई टेक्नोलॉजी की मशीन लगाई गई है ताकि कम से कम मूल्य पर धार्मिक पुस्तकें पाठकों तक पहुंचाई जा सकें।


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