रेलवे की बड़ी चूक : नए कोचों में महिला व दिव्यांग यात्रियों के लिए जगह नहीं
आधुनिक कोचों के निर्माण में रेलवे से एक बड़ी चूक हो गई है। रेलवे महिला और दिव्यांगों को ही भूल गया सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक इन वर्गों के लिए कोच लगाना अनिवार्य है।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 10:07 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 09:15 AM (IST)
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। आधुनिक कोचों के निर्माण में जर्मनी मॉडल को अपनाने के चक्कर में रेलवे से एक बड़ी चूक हो गई है। इन कोचों को बनाने में रेलवे महिला और दिव्यांगों को ही भूल गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक ट्रेन में इन दोनों वर्गों के लिए कोच लगाना अनिवार्य है। रेलवे को इस चूक का अहसास तब हुआ, जब गोरखधाम एक्सप्रेस में इन कोचों के लिए मारामारी की स्थिति पैदा हुई। अब इस गलती को सुधारने की दिशा में काम चल रहा है।
सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से रेलवे गाडिय़ों में नए अति आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) कोच लगा रहा है। इसके साथ ही परंपरागत कोचों का निर्माण पूरी तरह से बंद हो गया है। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर से गोरखधाम, हमसफर, गोरखपुर-ओखा और गोरखपुर-यशवंतपुर एक्सप्रेस सहित पांच प्रमुख ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में सभी ट्रेनों में यह कोच लगेंगे।
जानकारों के अनुसार एलएचबी कोच जर्मनी मॉडल के आधार पर तैयार हो रहे हैं। इनमें महिला व दिव्यांग कोचों का कोई कान्सेप्ट (अवधारणा) ही नहीं है। सुरक्षा और सुविधा को देखकर रेलवे ने इस कान्सेप्ट को स्वीकार तो कर लिया लेकिन भारतीय यात्रियों पर ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह हुई कि बिना महिला व दिव्यांग कोच के रेक तैयार होने लगे और ट्रेनों में इनका उपयोग भी शुरू हो गया। सर्वाधिक परेशानी बिहार, पूर्वांचल और पूर्वोत्तर रेलवे में हो रही है, जबकि भारतीय रेल में महिला वर्ष मनाया जा रहा है। इस संबंध में सीपीआरओ संजय यादव कहते हैं कि एलएचबी के जो कोच मिल रहे हैं उनका ही उपयोग किया जा रहा है।
बोगी नहीं मिली तो छलक पड़े दिव्यांग के आंसू
मंगलवार को अन्य महिलाओं के साथ नेत्रहीन महिला शशिकला भी दिव्यांग बोगी खोज रही थी। जब पता चला कि दिव्यांग बोगी नहीं है तो वह घबरा गईं। उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी। सुरक्षाकर्मियों ने स्थिति को संभाला और उन्हें पकड़कर जनरल बोगी में बैठाया।
अब खुली आंख
परंपरागत की तरह नए एलएचबी कोच के रेक में भी दो सीटिंग कम लगेज यान (एसएलआर) लगते है, लेकिन इन्हें पावर कार बना दिया गया है। जहां परंपरागत एसएलआर में महिला और दिव्यांग कोच संयुक्त होते हैं, वहीं एलएचबी के एसएलआर में लगेज और गार्ड यान के साथ जेनरेटर कक्ष होता हैं। हालांकि, रेलवे को अपनी गलती का अहसास हुआ है। पावर कार में महिला व दिव्यांग कोच बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार कारखाने में ऐसे दस कोच तैयार किए गए हैं। जिसमें 30 सीट महिला और छह सीट दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं। परीक्षण के बाद इनका निर्माण शुरू हो जाएगा।
सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से रेलवे गाडिय़ों में नए अति आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) कोच लगा रहा है। इसके साथ ही परंपरागत कोचों का निर्माण पूरी तरह से बंद हो गया है। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर से गोरखधाम, हमसफर, गोरखपुर-ओखा और गोरखपुर-यशवंतपुर एक्सप्रेस सहित पांच प्रमुख ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में सभी ट्रेनों में यह कोच लगेंगे।
जानकारों के अनुसार एलएचबी कोच जर्मनी मॉडल के आधार पर तैयार हो रहे हैं। इनमें महिला व दिव्यांग कोचों का कोई कान्सेप्ट (अवधारणा) ही नहीं है। सुरक्षा और सुविधा को देखकर रेलवे ने इस कान्सेप्ट को स्वीकार तो कर लिया लेकिन भारतीय यात्रियों पर ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह हुई कि बिना महिला व दिव्यांग कोच के रेक तैयार होने लगे और ट्रेनों में इनका उपयोग भी शुरू हो गया। सर्वाधिक परेशानी बिहार, पूर्वांचल और पूर्वोत्तर रेलवे में हो रही है, जबकि भारतीय रेल में महिला वर्ष मनाया जा रहा है। इस संबंध में सीपीआरओ संजय यादव कहते हैं कि एलएचबी के जो कोच मिल रहे हैं उनका ही उपयोग किया जा रहा है।
बोगी नहीं मिली तो छलक पड़े दिव्यांग के आंसू
मंगलवार को अन्य महिलाओं के साथ नेत्रहीन महिला शशिकला भी दिव्यांग बोगी खोज रही थी। जब पता चला कि दिव्यांग बोगी नहीं है तो वह घबरा गईं। उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी। सुरक्षाकर्मियों ने स्थिति को संभाला और उन्हें पकड़कर जनरल बोगी में बैठाया।
अब खुली आंख
परंपरागत की तरह नए एलएचबी कोच के रेक में भी दो सीटिंग कम लगेज यान (एसएलआर) लगते है, लेकिन इन्हें पावर कार बना दिया गया है। जहां परंपरागत एसएलआर में महिला और दिव्यांग कोच संयुक्त होते हैं, वहीं एलएचबी के एसएलआर में लगेज और गार्ड यान के साथ जेनरेटर कक्ष होता हैं। हालांकि, रेलवे को अपनी गलती का अहसास हुआ है। पावर कार में महिला व दिव्यांग कोच बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार कारखाने में ऐसे दस कोच तैयार किए गए हैं। जिसमें 30 सीट महिला और छह सीट दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं। परीक्षण के बाद इनका निर्माण शुरू हो जाएगा।
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