पर्यावरण संरक्षण के लिए यायावर बन गए भुवनेश्वर Gorakhpur News
पर्यावरण के लिए कुछ करने की ठानकर वह गोरखपुर लौट आए। इसके बाद उन्होंने खुद पौधा रोपण करने के साथ ही लोगों को इस मुहिम से जोडऩा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना शुरू किया। इसके लिए पदयात्रा की।
गोरखपुर, जेएनएन। बशारतपुर के रहने वाले भुवनेश्वर नाथ पांडेय ने पर्यावरण की दृष्टि से अपने नाम को चरितार्थ कर रहे हैं। अपनी भगीरथ तपस्या से वह समूचे भुवन को हराभरा बनाने के सतत अभियान पर लगे हुए हैं। उनका सामान्य सा जीवन पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष बन गया। उन्होंने खुद तो देश भर में घूम-घूमकर पौधे लगाए ही हैं, साथ ही हजारों किसानों को भी पौध रोपण और उसके संरक्षण के अभियान से जोड़ा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए यायावरी को उन्होंने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है।
शहर के बशारतपुर मोहल्ले के रहने वाले कृषि स्नातक भुवनेश्वर नाथ पांडेय आगे की पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए 1982 में कोलकाता पहुंचे तो पर्यावरण संरक्षण का सूत्र उनके हाथ लग गया। कोलकाता में एक दिन घूमते समय उनकी नजर दीवार पर लिखे सामाजिक वानिकी से जुड़े स्लोगन, 'वृक्षारोपण का कार्य महान, एक वृक्ष दस पुत्र समान पर पड़ी। इसके बाद उन्होंने वहां चल रही वन विभाग की संयुक्त वन प्रबंध परियोजना से जुड़कर वृक्षों के महत्व को जाना और समझा। यहीं से वह पौधा रोपण के लिए प्रेरित हुए और अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया।
पर्यावरण के लिए कुछ करने की ठानकर वह गोरखपुर लौट आए। इसके बाद उन्होंने खुद पौधा रोपण करने के साथ ही लोगों को इस मुहिम से जोडऩा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना शुरू किया। 1990 से 2010 के बीच गोरखपुर, बस्ती व आजमगढ़ मंडल के लगभग चार हजार गांवों की पदयात्रा किया। इस दौरान हर गांव में किसानों के बीच गोष्ठी कर उन्हें पौधों का महत्व उन्हें बताया। पौधा रोपण की अपनी मुहिम के तहत उन्होंने अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर का भ्रमण किया। इस दौरान पुलिस वालों को इस मुहिम से महाराष्ट्र के थाने जिले में और उत्तराखंड के धनवल्टी इलाके में थाने के साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर नवग्रह वाटिका भी स्थापना कराई। इस सिलसिले में वह पड़ोसी देश नेपाल की भी यात्रा कर चुके हैं।
अकेले शुरू की थी मुहिम
भुवनेश्वर नाथ पांडेय, पर्यावरण को बचाने के लिए पौधा रोपण की मुहिम अकेले शुरू की थी। इसके लिए उन्होंने न तो कोई संस्था बनाई है और न ही किसी से किसी भी तरह की मदद लेते हैं। लोगों, खासकर किसानों से मिलते हैं। उन्हें पौधा रोपण के फायदे के बारे में बताते हैं और समझाते हैं कि कैसे पौधा रोपण कर वह खुद की समृद्धि के साथ ही पर्यावरण को भी समृद्ध बनाने में योगदान करेंगे। उनकी इस मुहिम से प्रभावित होकर लोग उनसे जुड़ते रहते हैं।
विशेष कार्य
1983 में सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज ब्लाक के भड़रिया बाजार में एक हजार किसानों के जरिए 10 हजार एकड़ में वृहद पौधरोपण कराया। आज वहां बाग हो गई है। बाग में प्रत्येक बुधवार को सब्जी मंडी, गल्ला मंडी व पशु बाजार लगता है। हर साल जुलाई के प्रथम सप्ताह में यहां वन महोत्सव मनाया जाता है। 1986 में बस्ती जिले के वाल्टरगंज में एक किसान से दो सौ पौधे लगवाए। इससे प्रेरणा पाकर वहीं के एक किसान ने चार हजार व दूसरे ने छह हजार पौधे लगाए। किसानों ने जब वृक्ष बेंचकर अपनी लड़की की शादी की, घर बनवाया तो आसपास के किसान भी प्रेरित हुए और आज बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र के किसानों ने पौधरोपण किया है।
मिल चुके हैं कई प्रतिष्ठित सम्मान
सन 2000 में टाटा इनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट नई दिल्ली ने दस हजार रुपये का नगर पुरस्कार दिया। 2003 में राज्यपाल ने लखनऊ के मौलश्री प्रेक्षागृह में सम्मानित किया। जनवरी 2015 में भारत सरकार ने उन्हें स्वच्छ भारत सिटिजन नेटवर्क का सदस्य बनाया। कोरोना के प्रकोप के बाद नए सिरे से मुहिम शुरू करने की तैयारी : कोरोना का प्रकोप शुरू होने के साथ ही हर तरह की गतिविधियों पर विराम लग गया था। भवनेश्वर नाथ पांडेय की मुहिम पर भी इसका प्रभाव पड़ा। पौधा रोपण के उनके अभियान में ठहराव आ गया था। संक्रमण का प्रभाव कम होने के बाद वह नए सिरे से अपनी मुहिम शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं।
प्रकृति के अनुसार पौधों के रोपण पर देते हैं जोर
पौधा रोपण के अपने मुहिम में भुवनेश्वर नाथ पांडेय किसी क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार पौधों के रोपण पर जोर देते हैं। जैसे गोरखपुर में पहले पनियाला बड़ी मात्रा में पाया जाता था, अब लुप्तप्राय है। कोरोना के बाद के अपने अभियान में इसके पौधे का रोपण पर विशेष जोर देंगे। इसके अलावा इस अंचल में आसानी से होने वाले नीम, बेल, आंवला, बरगद, पीपल, शीशम, साल, बरगद, पाकड़, गुलर आदि के पौधों के रोपण पर विशेष जोर देने की उनकी योजना है।