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पति-पत्नी के बीच 'वो' बढ़ा रहा संबंधों में दूरियां

घरेलू हिंसा के ज्‍यादातर मामलों में मोबाइल ही मुख्य कारण बन रहा है। मोबाइल पर देर तक बातें करना या इंटरनेट मीडिया पर चैटिंग करना भी संबंधों में दरार पैदा कर रहा है। देर रात तक मोबाइल देखना भी दांपत्‍य जीवन में समस्याओं को जन्म दे रहा।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 07:10 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 09:40 PM (IST)
पति-पत्नी के बीच 'वो' बढ़ा रहा संबंधों में दूरियां
पति-पत्‍नी में विवाद का कारण बन रहा मोबाइल फोन। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता : घरेलू हिंसा के ज्‍यादातर मामलों में मोबाइल ही मुख्य कारण बन रहा है। मोबाइल पर देर तक बातें करना या इंटरनेट मीडिया पर चैटिंग करना भी संबंधों में दरार पैदा कर रहा है। लोगाें का इंटरनेट मीडिया पर शार्ट वीडियो बनाना या देर रात तक देखते रहना भी कहीं ना कहीं दांपत्‍य जीवन में समस्याओं को जन्म दे रहा है। साथ ही लोगों में घट रही सब्र व सहनशीलता भी हिंसा को बढ़ावा दे रही है।

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एक माह में थाने पर आए घरेलू हिंसा के 50 फीसद मामलों का कारण मोबाइल

पिछले एक माह में महिला थाने पर आए घरेलू हिंसा के लगभग 280-300 मामलों में लगभग 48 प्रतिशत मामलों में मोबाइल ही कारण रहा। ज्यादातर मामलों में पति-पत्नी द्वारा देर तक मोबाइल पर बात करना, चैट करना या मोबाइल का पासवर्ड सीक्रेट रखना विवाद का कारण बन रहा है। पत्नी द्वारा मायके में भी देर तक बात करना बढ़ी समस्‍या बन रही है। 55 प्रतिशत घरेलू हिंसा के मामले शादी के एक वर्ष के अंदर के हैं, जबकि 35 प्रतिशत मामले विवाह के चार-पांच वर्ष बाद के हैं।

एक-दूसरे पर संदेह के ज्‍यादातर मामले

ज्यादा तर मामले एक दूसरे पर संदेह को लेकर आ रहे है। कुछ मामले ऐसे भी हैं, जहा पत्नी की स्वतंत्रता की बात पति को नागवार लगती है और उसके साथ गलत व्यवहार और मारपीट करने लगता है, जिससे परेशान होकर महिला को कानून का सहारा लेना पड़ता है। कई मामले ऐसे भी हैं, जिसमें पत्नी को नौकरी पर जाना पति को पसंद नहीं है। इस कारण दोनों में विवाद बढ़ गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया हो। लगभग 10 प्रतिशत मामले ऐसे भी हैं, जिसमें पति के शराब पीकर मारने-पीटने के कारण मामला तलाक तक पहुंच गया है।

70 प्रतिशत मामलों को निपटा दिया जाता है समझौता कराकर

महिला थाना प्रभारी अर्चना सिंह ने बताया कि 70 प्रतिशत मामले में थाने स्तर पर ही समझौता हो जाता है, तीन प्रतिशत मामलों में मुकदमा दर्ज किया जाता है जबकि 27 प्रतिशत मामले कोर्ट में चले जाते है।


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