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हिम्मत न हारें, हारेगा कैंसर ; डर रहे हैं तो इनसे सीखें Gorakhpur News

विश्व कैंसर दिवस पर हावर्ड स्कूल ऑफ मेडिकल हेल्थ के तत्वावधान में आयोजित वेबीनार में संगीता गुप्ता ने अपने संघर्ष की दास्तां सुनाई तो हर शख्स उनके हौसले का मुरीद हो गया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 12:30 PM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 12:30 PM (IST)
हिम्मत न हारें, हारेगा कैंसर ; डर रहे हैं तो इनसे सीखें  Gorakhpur News
हिम्मत न हारें, हारेगा कैंसर ; डर रहे हैं तो इनसे सीखें Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। संगीता के आत्मविश्वास और उनकी हिम्मत ने कैंसर को लाइलाज मानने वाली धारणा बदल दी है। कभी बच्‍चेदानी के कैंसर की मरीज रहीं संगीता आज न केवल पूरी तरह से स्वस्थ और खुशहाल हैं बल्कि अपने जैसी दूसरी मरीजों को कैंसर के खिलाफ जंग को जीतने का तरीका भी समझा रही हैं।

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'वेबीनार' में सुनाई संघर्ष की दास्तां

विश्व कैंसर दिवस पर हावर्ड स्कूल ऑफ मेडिकल हेल्थ के तत्वावधान में आयोजित 'वेबीनार' में संगीता गुप्ता ने अपने संघर्ष की दास्तां सुनाई तो हर शख्स उनके हौसले का मुरीद हो गया। संगीता ने बताया कि पहले तो उन्होंने दर्द व रक्तस्राव को सामान्य समझा, लेकिन इसके बढऩे पर वह अपने रिश्तेदार के साथ नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल पहुंची। वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ ने जांच कराई तो बच्‍चेदानी के कैंसर की पुष्टि हो गई। डाक्टर की सलाह पर ऑपरेशन, दवा और नियमित जांच से उम्मीद जगी कि बीमारी ठीक हो जाएगी। मगर नियति को अभी और कड़ी परीक्षा लेनी थी। कुछ माह बाद ही रक्तस्राव एक बार फिर शुरू हो गया। जांच में पता चला कि स्थिति बिगड़ रही है।

डगमगा गई थी हिम्‍मत

संगीता स्वीकारती हैं कि एकबारगी तो उनकी हिम्मत भी डगमगा गई। घरवाले दुखी और गुमशुम रहने लगे। परिवार की निराशा ने उन्हें झकझोर दिया और उन्होंने बीमारी को हराने की ठान ली। सबसे पहले अपना नजरिया बदला। बीमारी से हटाकर अपना ध्यान इलाज पर लगाया और जुट गईं अपने रोजमर्रा के काम में। 15 साल की लंबी लड़ाई के बाद कैंसर अब इतिहास हो गया है।

डरने की बजाय साहस जुटाएं

संगीता बताती हैं कि सबसे पहले कैंसर से डरने की बजाय उसे दूर भगाने का साहस जुटाएं। आपकी यह हिम्मत दवाओं को और असरदार बनाती है। बीमारी की बजाय इलाज और अपने काम पर ध्यान लगाएं। परिवार और दोस्तों का मनोबल बहुत महत्वपूर्ण है। मरीज बहुत से बातें परिवार को इसलिए नहीं बता पातीं कि वह लोग परेशान होंगे। ऐसे में डॉक्टरों को चाहिए कि वह मरीज से दोस्ताना व्यवहार करें। एचपीवी के बारे में पहले उन्हें नहीं पता था लेकिन जब मालूम हुआ तो सबसे पहले अपनी बेटियों को वैक्सीन लगवाया। हर मां अपनी बेटी को यह वैक्सीन जरूर लगवाएं। 

बेटियों को जरूर लगवाएं वैक्सीन : डा. नीरजा

एम्स नई दिल्ली की स्त्री व प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. नीरजा बाटला ने बताया कि दुनिया में हर साल 5 लाख 69 हजार 847 महिलाएं इससे पीडि़त होती है। इसमें 96 हजार 922 भारत की हैं। हर साल लगभग 60 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। 9 से 14 साल की बच्चियों को इसका टीका लगवाने पर जोर दिया जा रहा है। जिनको टीका नहीं लगा है उनको एक से ज्यादा डोज लगवाना पड़ सकता है। सबसे बड़ी बात कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कई सवालों के जवाब दिया। भारत में भी दो से तीन साल के भीतर यह वैक्सीन बनने लगेगा।


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