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शिक्षा का हिस्सा बनें संस्कृति के मूलतत्व : अतुल कोठारी

गोरखपुर : हम उस आध्यात्मिक संस्कृति के वारिस है, जिसने कण-कण में परमात्मा का वास तथा सभी

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Sep 2017 01:01 AM (IST)Updated: Thu, 07 Sep 2017 01:01 AM (IST)
शिक्षा का हिस्सा बनें संस्कृति के मूलतत्व : अतुल कोठारी
शिक्षा का हिस्सा बनें संस्कृति के मूलतत्व : अतुल कोठारी

गोरखपुर :

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हम उस आध्यात्मिक संस्कृति के वारिस है, जिसने कण-कण में परमात्मा का वास तथा सभी प्राणियों में उस परमात्मा का अंश माना है। ऐसे में जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद सहित नारी-पुरुष, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच जैसे भेदभाव हमारी संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा नहीं हो सकते। क्योंकि यह तत्व समरसता के विरोधी है और समरसता हमारी संस्कृति की आत्मा है।

यह बातें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री अतुल भाई कोठारी ने बुधवार को बतौर मुख्य वक्ता ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ पुण्यतिथि समारोह के तहत 'सामाजिक समरसता भारतीय संस्कृति का प्राण है' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कहीं। गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने आगे कहा कि आज की शिक्षा व्यवस्था भी सामाजिक विषमता पैदा करने वाली है। समरसता को तोड़ने वाली है। इसके लिए जरूरी है कि भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को भारतीय शिक्षा पद्धति का हिस्सा बनाया जाए। जब तक ऐसा नहीं होगा भारत के विश्वगुरु बनने का सपना अधूरा रहेगा। उन्होंने आग्रह किया कि सामाजिक समरसता को व्यवस्था परिवर्तन का हिस्सा बनाना होगा और इसके लिए शिक्षण संस्थाओं को अभियान के तौर पर आगे आना होगा।

अतुल कोठारी ने छुआछूत की भावना और धार्मिक संकीर्णता को अभिशाप बताते हुए कहा कि इससे राष्ट्र और समाज कमजोर होता है। अगर इससे बचना है तो 'छुआछूत मिटाओ और देश बचाओ' का मंत्र फूंकना होगा। उन्होंने साफ किया कि सनातन ¨हदू धर्म में किसी ऊंच-नीच, छुआ-छूत, नारी-पुरुष जैसी विषमताओं का कोई स्थान नहीं है। यह मध्यकाल की देन है। मध्यकाल में ऐसी कई विकृतियां उत्पन्न हुई, जो कालांतर में रूढि़ बन गई। इन रूढि़यों के पुरजोर विरोध का नेतृत्व आज भी गोरक्षपीठ कर रहा है और समूचा संत समाज उनके साथ है। प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि हिन्दू समाज को अपने व्यवहार से यह सिद्ध करना होगा कि हम दुनिया के श्रेष्ठतम समाज की पुनस्र्थापना में सक्षम है। विशिष्ट वक्ता प्रो. दिग्विजय नाथ मौर्य ने कहा कि हमारे धर्माचार्यो ने सामाजिक समरसता के लिए निरंतर प्रयास किया है। महंत दिग्विजयनाथ व अवेद्यनाथ ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई है। संगोष्ठी का संचालन डा. अविनाश प्रताप सिंह ने किया।

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रूढि़यों की वजह है धार्मिक संकीर्णता : महंत सुरेशदास

दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महंत सुरेशदास ने कहा कि दुनिया की श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति, हिन्दू जीवन पद्धति और श्रेष्ठतम सामाजिक व्यवस्था में जाति आधारित ऊंच-नीच की भावना और छुआछूत कोढ़ की तरह है। यही वजह है कि देश के संत-महात्मा और धर्माचार्यो ने स्वतंत्रता के बाद से ही सामाजिक समरसता का अभियान छेड़ दिया। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ और महन्त अवेद्यनाथ ने तो इस विषय को लेकर व्यापक जनजागरण अभियान चलाया लेकिन वोट बैंक के लिए तुष्टीकरण की राजनीति के चलते जातीय वैमनस्यता की खाई और चौड़ी होती गई। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज अपनी संस्कृति के शाश्वत पक्ष को पहचाने, संस्कृति को स्वीकारे और सामाजिक विकृति का त्याग करे। भारत माता का हर वह पुत्र जो भारतीय परम्परा का वाहक है, वह एक समान है, एक जैसा है, न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा।

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सामाजिक क्रांति का नाम है गोरक्षपीठ

विशिष्ट वक्ता अरैल, प्रयाग से पधारे स्वामी गोपाल जी ने कहा कि राष्ट्रीय एकता-अखंडता और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए आवश्यक है समरसता अथवा छुआछूत विहीन समाज की रचना। गुरु गोरक्षनाथ ने छुआछूत के खिलाफ हजारों वर्ष पहले सामाजिक क्रांति का उद्घोष किया था। आज भी गोरक्षपीठ सामाजिक क्रांति की उस परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटी हुई है। भेदभाव और छुआछूत भारत की संस्कृति नहीं विकृति है।

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समरसता के प्रतीक है भगवान श्रीराम

बड़े भक्तमाल अयोध्या से पधारे श्रीरामतीरथदास जी ने कहा कि भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक है। उन्होंने केवट को सम्मानित किया, शबरी के जूठे बेर खाए, जटायु को तारा।

यह महज एक प्रसंग नहीं है बल्कि संदेश है सामाजिक समरसता का, जिसे भगवान श्रीराम ने अपने जीवन प्रसंग के माध्यम से दिया। ऐसी ही सामाजिक समरसता से मुक्त हिन्दू समाज की पुर्नप्रतिष्ठा करके हम समृद्ध और समर्थ भारत का निर्माण कर सकते है।

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संकीर्णता ने पूरी दुनिया को नुकसान पहुंचाया

अयोध्या से पधारे रामशकरदास जी ने कहा कि भारत की जातपात और छूआछूत की व्यवस्था ने न केवल भारतीय समाज बल्कि पूरी दुनिया की मानवता को नुकसान पहुंचाया है। समाज के इन्हीं रूढि़ग्रस्त व्यवस्थाओं ने हमें भी कमजोर किया है। उन्होनें आगे कहा कि हम एक श्रेष्ठ संस्कृति और श्रेष्ठ परम्परा के वाहक हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम' का संदेश देने वाली भारतीय संस्कृति में जाति आधारित ऊंच-नीच व छुआछूत एक विकृति है।

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पुण्यतिथि समारोह में आज

सुबह 10:30 बजे : 'भारतीय संस्कृति में गो-सेवा का महत्व' विषय पर संगोष्ठी

शाम 3 बजे : वाल्मीकि रामायण पर आधारित 'श्रीराम कथा' का आयोजन।


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