बांसगांव नगर पंचायत अध्यक्ष का अधिकार फिर किया गया सीज Gorakhpur News
वाहनों की खरीद में गड़बड़ी की शिकायत सही पाए जाने पर बांसगांव नगर पंचायत अध्यक्ष वेद प्रकाश शाही के वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार फिर सीज कर दिए गए हैं। अध्यक्ष को नोटिस देकर जवाब भी मांगा गया है।
गोरखपुर, जेएनएन : वाहनों की खरीद में गड़बड़ी की शिकायत सही पाए जाने पर बांसगांव नगर पंचायत अध्यक्ष वेद प्रकाश शाही के वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार फिर सीज कर दिए गए हैं। अध्यक्ष को नोटिस देकर जवाब भी मांगा गया है। फिलहाल बांसगांव के एसडीएम/ज्वाइंट मजिस्ट्रेट अनुराज जैन को नगर पंचायत अध्यक्ष का कार्यभार भी दिया गया है। बगैर गाड़ियां खरीदे ही नगर पंचायत के खाते से 18 लाख का भुगतान कर दिया गया। इससे पहले जुलाई 2020 में भी नगर पंचायत अध्यक्ष का अधिकार सीज किया जा चुका है।
वाहनों की खरीद में अनियमितता की हुई थी शिकायत
अध्यक्ष के खिलाफ वाहनों की खरीद में अनियमितता की शिकायत की गई थी। एसडीएम ने जांच की तो शिकायत सही निकली। नगर पंचायत के बैंक खाते से करीब 18 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया था, लेकिन गाड़ियां नहीं खरीदी गईं थीं। सख्ती होने के बाद कुछ धनराशि खाते में जमा की गई थी। कुछ और मामलों में वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाए गए थे। पूर्व एसडीएम को इस मामले की जांच सौंपी गई थी।
पिछली बार एक महीने बाद मिल गया था चार्ज
जुलाई, 2020 में अधिकार सीज होने के एक महीना बाद ही अगस्त में उन्हें चार्ज सौंप दिया गया था। 16 अगस्त, 2020 को उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था। इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से पूरी जांच रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। इस बार माना जा रहा है कि उनपर और सख्ती की जा सकती है।
वित्तीय अनियमितता के मामले में सीज किया गया अधिकार
एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेश कुमार सिंह ने कहा कि बांसगांव नगर पंचायत अध्यक्ष का वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार वित्तीय अनियमितता के मामले में सीज कर दिया गया है। इस संबंध में उन्हें नोटिस भी दिया गया है। बांसगांव के एसडीएम/ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को नगर पंचायत अध्यक्ष का कार्यभार सौंपा गया है।
नहीं की गई अनियमितता : वेद प्रकाश शाही
नगर पंचायत अध्यक्ष वेद प्रकाश शाही ने कहा कि उन्होंने किसी प्रकार की अनियमितता नहीं की है और न ही उनकी जानकारी में ऐसा है। निदेशालय से गठित टीम की ओर से नोटिस भी नहीं मिला है। जो आरोप लगाए गए हैं, उसमें अधिशासी अधिकारी एवं लिपिक का जिक्र न करना, इस ओर इशारा करता है कि उन्हें बचाने की कोशिश हो रही है। शासनादेश का पालन अधिकारी की जिम्मेदारी होती है, अध्यक्ष की नहीं। शासन को 15 दिन के बाद जवाब दे दिया जाएगा।