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अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा शुरू, मैली मनोरमा में स्नान कर आगे बढ़े श्रद्धालु

बस्ती जिले के मखौड़ा धाम से चौरासी कोसी परिक्रमा शुरू हो गई है। इसी नदी में प्रतीक स्वरूप स्नान किया जबकि नदी का पानी काला हो गया है।

By Edited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 06:13 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 11:45 AM (IST)
अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा शुरू, मैली मनोरमा में स्नान कर आगे बढ़े श्रद्धालु
अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा शुरू, मैली मनोरमा में स्नान कर आगे बढ़े श्रद्धालु
गोरखपुर, जेएनएन। चैत्र पूर्णिमा को बस्ती जनपद के मखौड़ा धाम से अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा शुरू हो गई है। इस बार 19 अप्रैल से यात्रा प्रारंभ हुई है। परिक्रमा के एक दिन पूर्व ही संत व श्रद्धालु गृहस्थ मखौड़ा धाम में पहुंच गए थे। रात्रि विश्राम के बाद सुबह मनोरमा नदी में स्नान करने के बाद यात्रा प्रारंभ हो गई। मनोरमा का पानी काला चौरासी कोसी परिक्रमा बस्ती के मखौड़ाधाम से तब शुरू की जाती है जब साधु-संत और श्रद्धालु मनोरमा नदी में स्नान करते हैं। इस नदी को हर मनोकामना पूरी करने वाला बताया गया है।
यही कारण है कि लोगों ने स्नान किया और परिक्रमा के लिए प्रस्थान किया। मनोरमा नदी का जल काला पड़ चुका है। देख कर ही पानी प्रदूषित लगता है। ऐसे में श्रद्धालु कैसे स्नान किए होंगे यह तो वही जानते हैं। नदी की तलहटी उथली होने तथा पानी में प्रवाह न होने की वजह से इसका पानी स्पर्श करने लायक भी नहीं रह गया है। हालांकि मंदिर परिसर में जलापूर्ति के लिए एक इंडिया मार्क हैंडपंप व पानी का मोटर लगाया गया है।
जो श्रद्धालुओं के स्नान के काम आएगा। मुख्यमंत्री ने शुरू कराया था सफाई अभियान दुखद बात तो यह है कि नदी की सफाई के लिए स्वयं मुख्यमंत्री ने 28 जनवरी को कार्य प्रारंभ कराया था। कुछ जगहों पर नदी की सफाई का अभियान भी चला लेकिन वह सफल नहीं हो सका। नदी की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। यह नदी बस्ती जिले की सीमा में पिपरही घाट, नकटा घाट कुसमौर घाट से होकर आगे बढ़ती है।
कुसमौर घाट से आगे हरिगांव, नागपुर, हरनहवा तक मनोरमा नदी में पानी का नामोनिशान नहीं है। रात से ही साधु-संतों का आगमन हो गया था शुरू चौरासीकोसी परिक्रमा के लिए मखौड़ाधाम में श्रद्धालुओं के जुटने का क्रम गुरुवार की रात से शुरू हो गया था। यात्रा में संत, गृहस्थ बड़ी संख्या में शामिल हैं। श्रद्धाजलुओं की सेवा के लिए रास्ते भर स्थानीय लोग भोजन व जलपान का इंतजाम किए हुए हैं। चौरासी कोसी की यह परंपरा इस क्षेत्र में सदियों से चली आ रही है।

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