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Ayodhya : राममंदिर के लिए 33 की उम्र में छोड़ दी नौकरी, वर्दी में ही बन गए थे आंदोलन का हिस्‍सा Gorakhpur News

Ayodhya परदेसी राम राममंदिर निर्माण के लिए 33 साल की उम्र में पीएसी की नौकरी छोड़ दी और मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए गोरखनाथ मंदिर के होकर रह गए।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 10:12 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 11:42 AM (IST)
Ayodhya : राममंदिर के लिए 33 की उम्र में छोड़ दी नौकरी, वर्दी में ही बन गए थे आंदोलन का हिस्‍सा Gorakhpur News
Ayodhya : राममंदिर के लिए 33 की उम्र में छोड़ दी नौकरी, वर्दी में ही बन गए थे आंदोलन का हिस्‍सा Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। रामजन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करने वालों की फेहरिस्त लंबी है, लेकिन इन सबके बीच परदेसी राम की राम कहानी जुदा है। मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने न केवल महज 33 साल की उम्र में पीएसी की नौकरी छोड़ दी बल्कि मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए गोरखनाथ मंदिर के होकर रह गए। राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रफुल्लित परदेसी कहते हैं कि आखिरकार उनका मिशन पूरा हुआ पर इस बात का अफसोस है कि इस ऐतिहासिक पल को श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अगुवा के अध्यक्ष महंत अवेद्यनाथ अपने रहते नहीं देख सके।

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महंत अवेद्यनाथ का मिला आर्शीवाद

देवरिया जिले के पिपरा खेमकरन के मूल निवासी परदेसी की राम मंदिर के प्रति समर्पण की कहानी दिलचस्प है। 1981 में पीएसी में सिपाही की नौकरी शुरू करने वाले परदेसी की 1988 में प्रयागराज में संत सम्मेलन के दौरान तैनाती थी। सम्मेलन में राम मंदिर निर्माण की चर्चा उन्हें खूब भाई और उन्होंने मन ही मन आंदोलन से जुडऩे की ठान ली। रामजन्मभूमि के शिलान्यास की तारीख जब नौ नवंबर 1988 को तय हुई तो उसमें हिस्सा लेने के लिए वह बिना छुट्टी लिए बावर्दी अयोध्या पहुंच गए। वहीं उन्हें पहली बार महंत अवेद्यनाथ का स्नेह मिला।

राष्‍ट्रद्रोह का दर्ज हुआ मुकदमा

30 अक्टूबर 1990 के मंदिर निर्माण आंदोलन में परदेसी गिरफ्तार भी हुए। बावर्दी आंदोलन में शामिल होने पर उनके खिलाफ पीएसी कमांडर ने राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दिया। उसके बाद परदेसी ने घर छोड़ दिया और छिप-छिप कर आंदोलन में हिस्सा लेने लगे। छह दिसंबर 1992 के आंदोलन में उन्होंने बतौर कारसेवक हिस्सा लिया। 1993 में उन पर दर्ज राष्ट्रद्रोह के मुकदमे को साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिया गया। उसके बाद परदेसी ने नौकरी से त्यागपत्र देकर खुद को पूरी तौर पर मंदिर आंदोलन को समर्पित कर दिया। इसके लिए वह गोरखनाथ मंदिर की आंदोलन टीम का हिस्सा हो गए। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो परदेसी बेहद खुश नजर आए।


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