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गोरखपुर में कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम ध्वस्त; न बेड मिल रहा न आक्सीजन- अस्पताल की तलाश में उखड़ रही सांस

गोरखपुर में मरीजों को न तो अस्पताल में बेड मिल रहा है और न ही घर में इलाज के लिए आक्सीजन का ही जुगाड़ हो पा रहा है। मरीज को लेकर स्वजन एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 02 May 2021 08:02 AM (IST)Updated: Sun, 02 May 2021 06:42 PM (IST)
गोरखपुर में कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम ध्वस्त; न बेड मिल रहा न आक्सीजन- अस्पताल की तलाश में उखड़ रही सांस
कोरोना हेल्‍प डेस्‍क पर मदद की आस में पहुंचे परिजन। - जागरण

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए अच्छी व्यवस्था के भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। मरीजों को न तो अस्पताल में बेड मिल रहा है और न ही घर में इलाज के लिए आक्सीजन का ही जुगाड़ हो पा रहा है। मरीज को लेकर स्वजन एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे हैं। हर जगह उन्हें जगह न होने की जानकारी देकर तत्काल जाने को कह दिया जा रहा है। परेशान स्वजन को समझ में नहीं आ रहा है कि क्यों करें। प्रशासन की ओर से जारी हेल्प लाइन नंबरों पर फोन करने पर कोई राहत नहीं मिल रही है। कंट्रोल रूम के कर्मचारी बहुत मानवीयता दिखा रहे हैं तो मरीज का नाम और स्वजन का मोबाइल नंबर लेकर इंतजार करने को कह रहे हैं। 

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आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे अधिकारी

बैठकों में अफसरों के सामने अच्छी व्यवस्था के आंकड़े पेश किए जा रहे हैं। मरीज मरे और स्वजन परेशान रहे तो अपनी बला से। यही आंकड़े शासन को भेजकर लाशों के बीच अफसर कम मौत और कम संक्रमितों का दावा पेश कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। शनिवार को दैनिक जागरण टीम ने शहर में कोरोना संक्रमितों के इलाज की व्यवस्था की पड़ताल की। अस्पतालों के बाहर खड़े होकर कई लोग आक्सीजन की व्यवस्था करने की गणित में परेशान दिखे तो कोई मजबूर बेटा अपने पिता की उखड़ती सांसों को थामने के लिए वेंटिलेटर की व्यवस्था के लिए अस्पतालों की चौखट के सामने सिर पटकता दिखा।

पिता के लिए वेंटिलेटर वाला बेड तलाश रहे राजू

शनिवार को शहर के गोरखनाथ के जाहिदाबाद निवासी राजू अपने 56 वर्षीय कोरोना संक्रमित पिता हशमुद्दीन के लिए वेंटिलेटर युक्त बेड की तलाश में भटकते मिले। पिता के शरीर में आक्सीजन का स्तर लगातार नीचे की ओर जा रहा था। दोपहर 12:30 बजे वेंटिलेटर वाले बेड की तलाश में राजू फातिमा अस्पताल पहुंचे। गेट पर बाइक लगाकर अंदर गए तो चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। पूछने पर बताया कि कोरोना संक्रमित उनके पिता 26 अप्रैल से जेल बाइपास रोड स्थित एक अस्पताल में भर्ती हैं।

रात से आक्सीजन का स्तर नीचे आ रहा है। डाक्टरों ने तत्काल वेंटिलेटर वाले बेड की व्यवस्था करने को कहा है। वह कई अस्पतालों का चक्कर लगाकर फातिमा अस्पताल में इस उम्मीद से पहुंचे थे कि शायद वेंटिलेटर वाला बेड मिल जाए, लेकिन यहां भी कोई बेड खाली नहीं है। राजू बताते हैं कि जिला प्रशासन व लखनऊ स्थित कोविड कंट्रोल रूम के कई नंबरों पर फोन कर चुके हैं, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई है। आंखों में आंसू लिए राजू ने कहा अब तो खुदा का ही सहारा है।

अब हम आक्सीजन कहां से लाएं

जब बड़े-बड़े लोगों को आक्सीजन नहीं मिल रही तो हम कहां से लाएं आक्सीजन। जब यही करना था तो भर्ती करने की क्या जरूरत थी। आर्यन हास्पिटल के सामने एक खड़ी बाइक पर बैठकर एक युवक परेशान हाल बड़बड़ाता मिला। अस्पताल में आक्सीजन की कमी पर सवाल पूछने पर उसके आंखों में आंसू आ गए। बोला, उसके पिताजी अस्पताल में भर्ती हैं। आक्सीजन का स्तर काफी कम हो गया है। कई अस्पतालों में जगह नहीं मिली तो पिता को लेकर आर्यन पहुंचा। यहां उन्हें भर्ती कर लिया गया तो अब आक्सीजन का झमेला है।

पिपराइच के रहने वाले युवक विश्वंभर ने बताया कि अस्पताल में आक्सीजन कम है और मरीज ज्यादा। परेशानी की यही सबसे बड़ी वजह है। आक्सीजन के लिए जब अस्पताल के लोगों पर दबाव बन रहा है तो वहां के कर्मचारी यह कहकर हड़का दे रहे हैं कि जाओ तुम्हीं कहीं से आक्सीजन ले आओ। हमें तो जितना मिल रहा है, उतना दे रहे हैं। बातचीत चल ही रही थी कि पास खड़े एक बुजुर्ग भी वहां आ गए। बोले, आक्सीजन न मिलने के चलते सुबह से ही लोग परेशान हैं।

अस्पताल में मौत से जंग, सड़क पर अच्छी खबर का इंतजार

प्रशासन की ओर से लेवल तीन का कोविड अस्पताल बनाए गए पनेशिया सुपर स्पेशियलिटी के बाहर शनिवार दोपहर अपेक्षाकृत शांति दिखी। आधे घंटे में दो मरीजों को एंबुलेंस और एक मरीज को अपनी कार से लेकर स्वजन पहुंचे। बेड मिलने की उम्मीद में गाड़ी खड़ी होते ही सभी रिसेप्शन की ओर दौड़ लगा रहे थे। गेट पर गार्ड से मरीज को भर्ती करने की गुहार लगाई तो बताया गया कि बेड खाली नहीं है। स्वजन ने मरीज की गंभीर होती स्थिति का हवाला देते हुए अपनी परेशानी बताई तो गार्ड ने बेड न रहने की मजबूरी बताकर कहीं और देखने के लिए बोल दिया। इस बीच कुछ लोग हाथ में झोला लेकर पहुंचे तो गार्ड ने रख लिया। पता चला कि अस्पताल में भर्ती मरीज के कपड़े और कुछ खाने का सामान लेकर लोग पहुंचे थे। इधर, अस्पताल से कुछ दूरी पर सड़क के दूसरी तरफ छाए में कुछ लाेग लेटे मिले। पूछने पर बताया कि उनका मरीज अस्पताल में भर्ती है। मरीज का हर समय कुशलक्षेम जानने के लिए सभी सड़क के किनारे पड़े हैं।

थोड़ा मिल रहा इसलिए मरीजों को थोड़ा-थोड़ा दे रहे

तारामंडल रोड पर डिसेंट अस्पताल है। इसे कोविड अस्पताल का दर्जा मिला है। प्रशासन का सारा दावा इस अस्पताल पर आकर फेल हो जा रहा है। अफसर दावा करते हैं कि सभी कोविड अस्पतालों को पर्याप्त आक्सीजन मिल रही है लेकिन यहां मरीजों को इतनी आक्सीजन दी जा रही है कि वह बस जिंदा रहें। स्वजन से कह दिया गया है कि वह खुद आक्सीजन की व्यवस्था करें नहीं तो मरीज को लेवल तीन के अस्पताल में लेते जाएं। कहीं जगह नहीं है इसलिए स्वजन 25 से 30 हजार रुपये में ब्लैक में बड़ा आक्सीजन सिलेंडर खरीदकर अस्पताल में लेकर आ रहे हैं। आक्सीजन खत्म होने के पहले इसे रीफिल कराना भी स्वजन की ही जिम्मेदारी है। आलम यह है कि वेंटिलेटर पर जाने वालों को भी पूरी आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। स्वजन व्यवस्था को कोस रहे हैं लेकिन अस्पताल प्रबंधन से विरोध भी दर्ज नहीं करा पा रहे हैं। डर है कि ज्यादा बोलने पर मरीज को कहीं रेफर न कर दिया जाए।

हे प्रभु संकट से उबारो, ऐसी विपत्ति दुश्मन पर भी पड़े

गांधी गली स्थित लेवल तीन के गर्ग हास्पिटल में अंदर मरीज तो बाहर सड़क किनारे उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करते स्वजन भटकते दिख जाएंगे। कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया के रहने वाले संजय कुमार को परेशान देखकर पता चल गया कि उनका कोई स्वजन कोरोना संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती है। पूछने पर बताया कि उनके रिश्तेदार चार दिन से भर्ती थे। शनिवार को निधन हो गया। चार दिन तक परिवार के सदस्य सड़क किनारे ही डेरा जमाए रहे।

संक्रमण से अचानक हालत खराब हो गई तो कुछ समझ में नहीं आया। कुशीनगर से गोरखपुर के लिए भेजा गया तो बाबा राघवदास मेडिकल कालेज पहुंचे। वहां बेड खाली नहीं था तो किसी ने गर्ग हास्पिटल के बारे में बताया। एक मरीज के तीमारदार अश्वनी कहते हैं कि इस हास्पिटल में अब तक आक्सीजन की कमी जैसी कोई बात नहीं सामने आयी है लेकिन कोरोना का संक्रमण इतना तेजी से बढ़ रहा है कि मौत की संख्या बेकाबू होती जा रही है। रिसेप्शन से मरीज की हालत जानकर बाहर निकले एक बुजुर्ग आसमान की ओर देखते हैं और कहते हैं कि हे प्रभु इस संकट से उबारो। ऐसी विपत्ति दुश्मन पर भी न आए।


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