Research: हर मरीज में नहीं बन रही कोरोना वायरस की एंटीबाडी
बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग में दोबारा संक्रमित हुए तीन मरीजों पर शोध में पता चला है कि एक मरीज में एंटीबाडी बनी ही नहीं। दूसरे में नाममात्र की थी जो कोरोना से लड़ने में सक्षम नहीं थी।
गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। आपको लगता है कि कोरोना संक्रमित होकर स्वस्थ होने के बाद आपके शरीर में कोरोना की एंडीबाडी बन गई होगी। आप दोबारा संक्रमित नहीं होंगे, तो ऐसा सोचना गलत होगा। बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग में दोबारा संक्रमित हुए तीन मरीजों पर शोध में पता चला है कि एक मरीज में एंटीबाडी बनी ही नहीं। दूसरे में नाममात्र की थी, जो कोरोना से लड़ने में सक्षम नहीं थी। वहीं तीसरे के फेफड़े में खून का थक्का मिला, लेकिन एंडीबाडी नहीं थी। निष्कर्ष निकला कि सभी मरीजों में एंटीबाडी नहीं बन रही है। ऐसे मरीजों के दोबारा संक्रमित होने की आशंका प्रबल है। इस शोध को अमेरिका के इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इम्यूनोलाजी में प्रकाशित होने के लिए भेजने की तैयारी है।
गोरखपुर मंडल के कोरोना संक्रमण के नमूनों की जांच मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग में होती है। यहां तैनात तीन लैब टेक्नीशियन जुलाई में पाजिटिव हुए। संक्रमणमुक्त होने के एक माह बाद वह पुन: अगस्त में भी संक्रमित हो गए। विभागाध्यक्ष डॉ.अमरेश सिंह ने कारणों की तलाश के लिए तीनों का डेटा मंगाकर शोध शुरू किया। लैब टेक्नीशियनों के शरीर में एंटीबाडी की जांच की गई। एक में तो एंटीबाडी बिल्कुल नहीं मिली। दूसरे में 1.56 एस/सी यूनिट (कोरोना इंडेक्स) मिला, जो सुरक्षा की दृष्टि से बहुत कम था। तीसरे में एंटीबाडी पर्याप्त बनी थी, लेकिन उसके फेफड़े में क्लाटिंग (रक्त के थक्के) हो गई थी। इस वजह से वह दोबारा संक्रमित हुआ।
एंटीबाडी बनी या नहीं, ऐसे पता चलता है
कोरोना संक्रमित व्यक्ति में एंटीबाडी का 1.40 इंडेक्स न्यूनतम हैं। इससे कम होने पर पता भी नहीं चलेगा कि व्यक्ति को कोरोना हुआ था। इतनी कम मात्र में एंटीबाडी सुरक्षा की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। छह से ज्यादा इंडेक्स ही व्यक्ति को दोबारा संक्रमित होने से सुरक्षित रख सकता है।
दोबारा संक्रमित हुए तीन लोगों पर यह शोध किया गया है। इसका दायरा बढ़ाया जाएगा। इन तीन लोगों पर हुए शोध से यह बात सामने आ चुकी है कि सभी में एंटीबाडी नहीं बन रही है। कुछ में इतनी कम है कि वह सुरक्षा की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। फेफड़े में क्लाटिंग भी दोबारा संक्रमित होने का कारण हो सकता है। - डा.अमरेश सिंह, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलाजी, बीआरडी मेडिकल कालेज