बेसहारा लोगों को शरण देकर उनकी सेवा कर रहे अनिरुद्ध Gorakhpur News
मेलानगरीकुशीनगर के अनिरुद्ध मौर्य शिक्षा के साथ-साथ वह समाज को इंसानियत का पाठ पढ़ा रहे हैं। बेसहारा लोगों को घर लाना उनकी देखभाल करना उनके जीवन का हिस्सा है। सड़क पर लाचार दिखीं तीन महिलाओं को वे अब तक अपने यहां शरण दे उनकी सेवा कर चुके हैं।
मनोज कुमार शुक्ल, गोरखपुर : अपनों के लिए तो सभी करते हैं। विरले ऐसे लोग होते हैं जो दूसरों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। मेलानगरी,कुशीनगर के अनिरुद्ध मौर्य इन्हीं लोगों में से एक हैं। शिक्षा के साथ-साथ वह समाज को इंसानियत का पाठ पढ़ा रहे हैं। बेसहारा लोगों को घर लाना, उनकी देखभाल करना उनके जीवन का हिस्सा है। सड़क पर लाचार दिखीं तीन महिलाओं को वे अब तक अपने यहां शरण दे उनकी सेवा कर चुके हैं। तलाश में जुटे स्वजन ढूंढते हुए जब उनके घर पहुंचे तो अपनों को देख उनकी आंखें खुशी से छलक उठीं। शहर में मिली एक नवजात बच्ची का भी वे पालन-पोषण कर रहे हैं। आज वह आठ माह की हो चुकी है। घर के लोग भी उसका अपनों की तरह ख्याल रखते हैं।
जरूरतमंदों की सेवा करना स्वभाव
पडरौना नगर से सटे गांव जंगल चौरिया के निवासी अनिरुद्ध मौर्या उच्च प्राथमिक विद्यालय सरपतही खुर्द में प्रधानाध्यापक हैं। जरूरतमंदों की मदद करना उनका स्वभाव है। अक्टूबर,2018 में पडरौना नगर के बावली चौक पर एक बुजुर्ग महिला को भटकते देख उन्होंने आस-पास के दुकानदारों से बात की तो पता चला कि महिला कई दिनों से यहां रह रही है। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। वे उन्हें घर ले गए। एक महीने बाद उनके स्वजन ढूंढते उनके घर पहुंचे और उसे अपने साथ ले गए। महिला बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के गांव धनहा पखनहा की थी। मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के चलते ट्रेन में सवार होकर पडरौना आ गई थी। मार्च, 2019 में भी एक महिला भटक कर गांव सरपतही खुर्द पहुंच गई थी। महिला को इधर-उधर भटकता देख वे उसे अपने साथ ले गए। 20 दिन बाद महिला के स्वजन को उसके जंगल चौरिया में होने की जानकारी मिली तो वे उसे घर ले गए। वह नेबुआ नौरंगिया थाने के गांव कोहरगड्डी की रहने वाली थी। बीते शनिवार को भी कसया थाने के गांव बतरडेरा निवासी महिला को अपने घर में उन्होंने शरण दी थी। दो दिनों से वह पडरौना नगर की सड़कों पर भटक रही थी। परेशान स्वजन को इसकी जानकारी हुई तो वे अनिरुद्ध के स्कूल पहुंचे। अपनों को देख महिला की आंखें छलक आईं। घर के लोगों ने बताया कि पति की मौत के बाद इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। गोरखपुर में एक निजी डाक्टर के यहां इलाज चल रहा है। अनिरुद्ध ने महिला को वस्त्र व खोईछा (एक प्रकार की विदाई चावल व रुपये द्वारा) दे घर से विदा किया। यह रिवाज वह हर बार निभाते हैं।
परिवार भी करता है सहयोग
अनिरुद्ध के घर में पत्नी ऊषा के अलावे तीन बेटियां उपमा, आकृति अलकनंदा व बेटा सवितानंदन हैं। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। अप्रैल 2020 में पडरौना नगर में मिली एक नवजात बच्ची को घर ले जाकर उन्होंने पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठायी। आज वह आठ माह की हो चुकी है, उसका नाम उन्होंने सांभवी रखा है। घर के दूसरे सदस्य भी उसे अपनों की तरह दुलार करते हैं। अनिरुद्ध बताते हैं कि उन्होंने गरीबी को नजदीक से देखा है। अब जब कोई जरूरतमंद दिख जाता है तो मन उसकी मदद को तड़प उठता है। पढाई के दौरान भी अगर कोई पीडि़त दिख जाता था तो कालेज छोड़ उसकी मदद करना प्राथमिकता थी।