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जेल में पोषण की अलख जगा रहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा

शहरी बाल विकास परियोजना कार्यालय से जुड़ीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा मल्ल पिछले पांच साल से नियमित रूप से जेल परिसर में जाती हैं और वहां रह रही गर्भवती धात्री महिलाओं एवं बच्‍चों को पोषाहार उपलब्ध कराती हैं। महिलाओं के साथ समय बिताकर उन्हें पोषण के प्रति जागरूक भी करती हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 02:11 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 02:11 PM (IST)
जेल में पोषण की अलख जगा रहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा
जेल में पोषण की अलख जगा रहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। जिले में बच्‍चों को कुपोषण से मुक्त बनाने के अभियान के साथ ही उन महिलाओं एवं उनके साथ रह रहे बच्‍चों का भी ध्यान रखा जा रहा है, जो जिला जेल में बंद हैं। शहरी बाल विकास परियोजना कार्यालय से जुड़ीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा मल्ल पिछले पांच साल से नियमित रूप से जेल परिसर में जाती हैं और वहां रह रही गर्भवती, धात्री महिलाओं एवं बच्‍चों को पोषाहार उपलब्ध कराती हैं। महिलाओं के साथ समय बिताकर उन्हें पोषण के प्रति जागरूक भी करती हैं।

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जेल जाने को तैयार नहीं थीं आगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा ने भरी हामी

करीब 10 साल पहले आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम की शुरूआत करने वाली निशा शहरी क्षेत्र में नियमित रूप से घर-घर जाकर लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक करती रही हैं। शहरी बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव के कार्यभार संभालने के बाद जेल में पोषाहार पहुंचाने की योजना बनी। शुरू में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इस काम से हिचकिचा रही थीं लेकिन निशा सहर्ष तैयार हो गईं। निशा का कहना है कि शुरूआती समय में कुछ चुनौतियां जरूर आयीं लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य हो गया। जेल परिसर के भीतर प्रोटोकाल के पालन के चलते शुरू में वहां के अधिकारी भी सहज नहीं थे लेकिन समय बीतने के साथ ही जब परिणाम अच्‍छे आने लगे तो वहां आना-जाना सामान्य हो गया। निशा बताती हैं कि जेल में जाने से पहले मोबाइल जमा करा लिया जाता है।

जेल में हैं दो गर्भवती, 10 छोटे बच्‍चे

निशा ने बताया कि इस समय जेल में दो गर्भवती महिलाएं, एक धात्री महिला एवं 10 छोटे बच्‍चे हैं। रिहाई एवं नए अभियुक्त के जेल में आने से समय-समय पर इस संख्या में परिवर्तन होता रहता है। निशा बताती हैं कि महिलाओं एवं तीन साल तक के बच्‍चों के लिए पोषाहार के रूप में दाल, दलिया और रिफाइंड दिया जाता है। तीन से छह साल तक के बच्‍चों के लिए दाल और दलिया दी जाती है। महिलाओं को पोषाहार से पूड़ी, हलुआ और अन्य पौष्टिक व्यंजन खाने की सलाह दी जाती है।

जेल में बंद महिलाओं व बच्‍चों को उलब्‍ध कराया जा रहा है पोषाहार

जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत कुमार सिंह ने कहा कि शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही जेल में बंद महिलाओं एवं ब'चों के लिए भी पोषाहार उपलब्ध कराया जा रहा है। नियमित रूप से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जेल में जाकर उन्हें पोषण के लिए जागरूक करती हैं और पोषाहार का वितरण करती हैं।


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