राष्ट्रहित के लिए गृहस्थ जीवन में प्रेम व सौहार्द का वातावरण होना जरूरी : मोरारी बापू Gorakhpur News
कुशीनगर में प्रख्यात कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि मानस कथा हम सबके लिए निर्वाण यात्रा है। जिसे बोध प्राप्त हो गया हो उसका क्रोध व विरोध समाप्त हो जाता है। ज्ञान में क्रोध नहीं होता। अधिक क्रोधी मृत व्यक्ति के समान है।
गोरखपुर, जेएनएन : कुशीनगर में प्रख्यात कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि मानस कथा हम सबके लिए निर्वाण यात्रा है। जिसे बोध प्राप्त हो गया हो उसका क्रोध व विरोध समाप्त हो जाता है। ज्ञान में क्रोध नहीं होता। अधिक क्रोधी मृत व्यक्ति के समान है। मोरारी बापू भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र कुशीनगर में चल रहे नौ दिवसीय मानस निर्वाण रामकथा के सातवें दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि अति संघर्ष से चंदन की लकड़ी से भी अग्नि पैदा हो जाती है। यह जगत जिसको राममय दिखने लगता है, वह किसी का भी विरोध नहीं कर सकता।
क्रोध और विरोध दोनों समाप्त हो गए थे बुद्ध के जीवन में
भगवान बुद्ध को क्रोध नहीं आया। बुद्ध के जीवन में क्रोध व विरोध दोनों समाप्त हो गए थे, क्योंकि उन्हें बोध प्राप्त हो गया था। बुद्ध के विरोधी भी कहते थे कि वह मेरे लिए ही आए हैं। अयोध्या में जब राम आए तो अयोध्यावासियों को भी यही लगा कि वह मेरे लिए ही आए हैं। बुद्ध के जीवन में आंसू कम दिखते, महावीर स्वामी के आंखों में और भी कम, लेकिन जिन्होंने उनको देखा उसकी आंखें डबडबा गईं। रोना ही उसकी साधना बन गई। बुद्ध के एक सूत्र में किसा गौतमी के कथा के माध्यम से हीन धर्म की चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि बुद्ध पुरुषों को भी इस लोक से जाना पड़ता है। वे कहते हैं कि धर्म शरीरवादी नहीं, धर्म मनोमयी है। आज्ञा, आशा, अश्रु और आयुष बुद्ध पुरुष को याद रखती हैं। ऊपर धर्म और भीतर अधर्म हो, किसी के प्रभाव में आकर गतिविधि करना, असत्य को सिद्ध करने का प्रयास करना हीन धर्म है। साथ ही जो धर्म श्रद्धा को गवां दे और प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करे वह भी हीन धर्म है। बुद्ध पहले भी थे और वे आते भी रहेंगे। काश हम उन्हें पहचान पाएं। बुद्ध आज भी हमारे साथ हैं। वे आते हैं तो आनंद भी आता है।
भगवान का क्रोध भी निर्वाण प्राप्त कराता है
मारीच की कथा कहते हुए बापू ने कहा कि भगवान का क्रोध भी निर्वाण प्राप्त कराता है। शिव विवाह और राम प्राकट्य कथा कहते हुए बापू ने कहा कि शिव का उपहास करने से विचारहीन तत्व हमें शिव से दूर करते हैं। बापू ने कहा कि धर्म वह है, जिससे जीवन में बदलाव आ जाए। शिव तत्व हमारे घर में ही रहते हैं। इसका रहस्य गुरु ही समझा सकता है। यदि विधाता का लिखा मां-बाप बदल दें तो कभी किसी की बेटी दुखी नहीं रहेगी। भारतीय नारी पति को हमेशा खुश देखना चाहती है। जिस परिवार में नारी की पूजा नहीं होती, वहां देवताओं की कभी कृपा ही नहीं होती। परिवार में कोई संशय हो तो उसे दूर कर लेना चाहिए। बापू ने कहा कि यह कलयुग नहीं, कथायुग है। कथा सुनने से पाप दूर हो जाते है, प्रेम से पुकारने पर भगवान प्रकट हो जाते हैं। स्त्री अपने पति को प्यार दे और पति स्त्री को आदर, सम्मान दे, वहां भगवान राम प्रकट होते हैं। आजकल गृहस्थ आश्रम बिगड़ने लगा है। राष्ट्रहित के लिए गृहस्थ जीवन में प्रेम व सौहार्द का वातावरण होना जरूरी है। कथा श्रवण से इसमें सुधार आएगा। आदर और प्यार का रिश्ता हो जाएगा। सनातन संस्कृति व परंपरा में भारतीय मां, ईश्वर को भी मनुष्य बनाने को सिखाती है।