एजेंट खरीद ले रहे टिकट फिर वसूल रहे मुंह मांगी कीमत
मुंबई पूना तक बिना परमिट जा रही बसें शहरों की ओर वापस प्रवासी मजदूर लौटने लगे।
सिद्धार्थनगर, जेएनएन : प्रवासी मजदूरों की किस्मत भी इम्तिहान ले रही है, इसकी कोई सीमा नहीं। कोरोना संकट के बीच तीन-तीन, चार-चार हजार रुपये किराया देकर डीसीएम, ट्रक, कंटेनर से गांव आए, महीना-दो महीना बीता तो फिर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। वापसी में भी इनकी मुसीबत कम होती नहीं दिख रही हैं। ट्रेनें कम चल रही हैं, जो चल रही हैं, उसमें फिजिकल डिस्टेंस के कारण कम यात्री सफर कर पा रहे हैं। यही वजह है कि ज्यादातर लोग बस से ही वापस लौट रहे हैं। जाने के लिए बढ़ती संख्या को देख अचानक दर्जनों प्राइवेट बसें भी पता नहीं कहां से सड़क पर उतर आई हैं। बस भी ऐसी, जिसकी सारी टिकट एजेंट खरीद लेते हैं और फिर उन्हें मुंहमांगी कीमत पर मजदूरों के हाथ बेच रहे हैं। आश्चर्य तो यह है कि सारी बसें बिना परमिट फर्राटा भर रही हैं, ओवरलोड गाड़ियों में मजदूरों को ठूस-ठूसकर भरा जाता है, जहां फिजिकल डिस्टेंस का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है। जिम्मेदार हैं, कि आंख मूंदे बैठे हैं। इन दिनों इटवा से लेकर डुमरियागंज से प्रतिदिन दो दर्जन बसें मुंबई, पूना जा रही हैं। वैसे तो सवारी भरकर इतनी दूरी तक बस संचालन के लिए इनके पास कोई परमिट नहीं होती है, बावजूद इसके तीन-चार राज्यों की सीमा पार करके बसें आती और जाती हैं। जिनकी कोई जांच नहीं होती है। कोरोना संक्रमण में परिवहन निगम की गाइडलाइन है, जिसमें सवारियों को दूर-दूर बैठना होता है, परंतु इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। सवारियां इस तरह सटकर बैठाई जाती है कि कोई डिस्टेंस ही नहीं रहता है। प्रति सवारी 2800 व 3000 हजार वसूले जाते हैं। ओवरलोड गाड़ियों में सवारियां तकलीफ तो झेलती हैं, जान भी जोखिम में रहती है। कोई बस डबल टेकर होती हैं। आरटीओ विभाग लेकर जिला प्रशासन का रवैया उदासीन है। -- सवारी ढोने के लिए बसों की परमिट जारी नहीं की जाती है। कोरोना संकट में बु¨कग की गाड़ियां होती हैं, उसमें भी गाइडलाइन यानी डिस्टेंस रखने के निर्देश हैं। यदि मुंबई, पूना के लिए नियम दरकिनार कर बसें चलती हैं, तो इसकी जांच कराते हैं, पीटीओ को भी निर्देशित करते हैं। ऐसे वाहनों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। प्रवेश कुमार सरोज, एआरटीओ, प्रवर्तन