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कुशीनगर का एक युवक, जिसकी राह में आड़े नहीं आता मजहब

वार्ड शहीद भगत सिंह नगर (रामनगर) निवासी शाहरुख खान ने भजन-कीर्तन गायकी में महारत हासिल कर यह सिद्ध कर दिया है कि श्रद्धा में मजहब आड़े नहीं आता है। खान विगत पांच वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Wed, 25 Aug 2021 08:10 PM (IST)Updated: Wed, 25 Aug 2021 08:10 PM (IST)
कुशीनगर का एक युवक, जिसकी राह में आड़े नहीं आता मजहब
भजन-कीर्तन गायकी में महारत हासिल किया शाहरुख खान ने। फाइल फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता : नगर पालिका परिषद, कुशीनगर के वार्ड शहीद भगत सिंह नगर (रामनगर) निवासी शाहरुख खान ने भजन-कीर्तन गायकी में महारत हासिल कर यह सिद्ध कर दिया है कि श्रद्धा में मजहब आड़े नहीं आता है। खान विगत पांच वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं। खान के पिता स्व. हबीबुल्लाह खान ढोलक बजाकर भजन-कीर्तन गाते थे और आल्हा भी सुनाते थे। वे इस फन में काफी माहिर थे। लोग उन्हें मास्टर कहकर बुलाते थे । पिता का निधन हुआ तो खान लगभग डेढ़ वर्ष के थे। घर में पिता का वाद्य यंत्र था। एक भाई को पिता ने सिखाया था। वह घर पर बजाते थे तो खान गाते थे। माता व भाई से पिता की गायकी के बारे में सुनकर खान को गायन की प्रेरणा मिली।

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खान की प्रतिभा को पहचान कर किशो‍र सिंह ने उन्‍हें सिखाया

22 वर्षीय खान की बगल के गांव मधवापुर के किशोर सिंह से मुलाकात हुई। सिंह गांव के ही मंदिर में प्रति मंगलवार को कार्यक्रम करते थे। खान वहां जाने लगे। सिंह ने खान की प्रतिभा को पहचान कर अपने साथ रखा और सिखाया। खान, सिंह को गुरु मानते है। बताया कि गुरु के स्वर्गवासी हो जाने के बाद वह प्रति मंगलवार को मधवापुर में कीर्तन कराते हैं। माता नाजमा खातून के चार बेटों में शाहरुख सबसे छोटे हैं। दो भाई सऊदी रहते हैं, जबकि एक भाई साथ रहकर गृहस्थी संभालते हैं। इनके इस कार्य में परिवार भी पूरा साथ देता है, जाति-मजहब की बात नहीं करता। मां भी अपने बेटे से नियमित भजन सुनती हैं। अगल -बगल बेटे का कार्यक्रम होता है तो भी सुनने जरूर जाती हैं। शाहरुख को मंदिर जाने से भी कोई गुरेज नहीं है।

देवी-देवताओं की करता है विधि-विधान से पूजा

हिंदू देवी- देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा करता हैं तो इनके प्रति अटूट विश्वास भी है। कहते हैं कि सभी धर्म मानवता की सीख देते हैं, बांटने का कार्य तो इंसान करते हैं ।


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